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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदि शब्दोंकी भी शक्ति मण्डूक शरीरसंबन्धी आत्माहीमें अंगीकार करनी चाहिये इस प्रकारके सिद्धान्तसे कर्मके वशसे नाना प्रकारकी जातिसे संबन्ध रखनेवाले जीवका जब कर्मके ही वशसे मण्डूकका जन्म प्राप्त होता है अर्थात् जब आत्मा अपने कर्मोंके आधीनसे मोर आदि अनेक योनियोंमें भ्रमते २ मण्डूकका शरीर धारण करते हुए मण्डूक शब्दसे कहा जाता है और युवतिमें पुनः जन्म मिलनेपर प्रत्यभिज्ञान होनेसे जो यह शिखण्डक था मोर शिखाधारी जीव था वही यह मण्डूक शरीरधारी जीव है । क्योंकि एक ही जीव नाना शरीर धारण करता है तो इस प्रकार मयूरदशामें शिखण्डके प्रसिद्ध होनेसे मेंडक दशामें मण्डूक शिखण्डके अस्तित्वका बोध होता है, और मण्डूक शरीरके साथ संबन्ध रखनेवाला जो आत्मा है, उसको मण्डूकका शरीर धारण करनेके समयमें केशका अभाव होनेसे मण्डूक शिखण्डका नास्तित्व भी प्रसिद्ध हो गया । और यदि देवदत्त उत्पन्न हुआ देवदत्त नष्ट होगया इत्यादि व्यवहारको देखकर देवदत्त आदि शब्द तथा मण्डूक आदि शब्द भी केवल देवदत्त आदि तथा मण्डूक आदि शरीरमात्रके ही वाचक हैं ऐसा मत है, तब भी अनादि कालसे बन्धके प्रतिशरीरके साथ एकता अर्थात् अभेदरूपताको प्राप्त जो जीव है उसीके बोधक देवदत्त आदि शब्द हैं, यही तात्पर्य शरीरवाचक दशामें भी है तब उस दशामें भी मण्डूकशरीरके आकारमें परिणत जो पुद्गल द्रव्य है, उस पुद्गल द्रव्यके अनादि अनन्त कालसे अनेक आकारमें परिणाम होते रहते हैं । तो इस परिणामके चक्रमें कदाचित् मण्डूकका शरीर नष्ट होके खेतमें मृत्तिका वा खात होके पुनः वही खात धान्य वा किसी शाकरूपमें परिणत होके वा स्त्री पुरुषका भोजन होके क्रमसे पुरुषके वीर्य तथा स्त्रीके शोणित रूपताको प्राप्त होता हुआ केश दशातक परिणत होके शिखण्डकी सिद्धि होनेसे मण्डूक शिखण्डकी अस्तिता, तथा जब मण्डूक शरीररूपमें परिणत जो पुद्गल द्रव्य है उस दशामें केशका अभाव होनेसे मण्डूक शिखण्डकी नास्तिता भी सिद्ध होगई । इसी रीतिके अनुसार वन्ध्यापुत्र, शश मनुष्य वा गर्दभ अश्व आदिके शृङ्ग तथा कर्मके आदिमें अस्तित्व नास्तित्वकी योजना करनी चाहिये तात्पर्य यह कि वन्ध्याशरीरधारी जीवके यद्यपि इस जन्ममें पुत्र नहीं है तथापि उसके शरीरके पुद्गल अवश्य ऐसे अनेक शरीररूपमें परिणत हुए थे जब उसके पुत्र हुये थे उस दशाको लेके वन्ध्यापुत्रमें अस्तित्व और वन्ध्या दशामें पुत्र न होनेसे नास्तित्व दोनों सिद्ध हैं, ऐसे ही शश मनुष्य तथा कूर्म आदि देहके साथ संबन्ध रखनेवाले जो जीव हैं उनका उन्ही शश आदि शरीरोंके पुद्गलोंसे रचित जो हरिण १ यह वह देवदत्त है जिसको हमने कहीं अन्य स्थानमें देखा था इस प्रकारका अनुभव तथा स्मरणसे उत्पन्न वा सादृश्यको जतलानेवाला ज्ञान अथवा प्रमाण. २ मोरजन्मके शरीरमें. ३ चोटी अथवा चूडा. ४ परिवर्तित अथवा बदलता हुआ अर्थात् एक आकारसे दूसरे आकारमें बदलता हुआ. ५ वस्तुका रूपान्तर होना जैसे भुक्त पदार्थका रस रुधिर तथा मेदा आदि परिणाम अथवा दुग्धका दधिरूप परिणाम. लोह. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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