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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ पर्यायका भान होता है ऐसे ही घटके पूर्व तथा उत्तरमें जो पर्याय हैं उनका भी भान होगा, और उन पर्याओंका भान तो घट दशामें लोकमें प्रसिद्ध नहीं है । और इसी प्रकार पिण्ड आदि दशामें घटकी सत्ता भी भासेगी तो जब पिण्ड कपाल आदि सब पर्यायोंमें घटका सत्त्व है तब पिण्ड पर्यायकी उत्पत्ति तथा अन्य पर्यायोंके नाशार्थ जो महा प्रयत्न किया जाता है वह सब व्यर्थ होगा। और इसी प्रकार यदि पिण्ड आदिसे लेके कपालान्त समुदायके मध्यमें जो घट पर्याय है उस पर्यायरूपसे भी यदि घटका नास्तित्वरूप मानोगे अर्थात् निजरूपसे नास्तित्वरूप मानो तो घटपर्यायरूपसे भी घट नहीं है यह सिद्ध हुआ, तो उस कालमें घटसे जलका आनयन तथा धारण कार्य होते हैं वे न होने चाहिये और जल आनयन आदि कार्य होते तो हैं, इससे यह निश्चय होता है कि घटपर्याय अपने रूपसे अस्तित्वका आश्रय है और अन्य पूर्वोत्तर पर्यायोंके रूपसे नास्तित्वका आश्रय है। __ अथवा-घटादौ प्रतिक्षणं सजातीयपरिणामो जायत इति तावत्सिद्धान्तसिद्धम् । तत्र ऋजुसूत्रनयापेक्षया वर्तमानक्षणवृत्तिघटपर्यायः स्वरूपम् , अतीतानागतघटपर्याय एव पररूपम् । तत्क्षणवृत्तिस्वभावेन सता घटोस्ति, क्षणान्तरवृत्तिस्वभावेन नास्ति, तथा प्रतीतेः । तत्क्षणवृत्तिस्वभावेनेव क्षणान्तरवृत्तिस्वभावेनाप्यस्तित्वे एकक्षणवृत्त्येव सर्व स्यात् । क्षणान्तरवृत्तिस्वभावेन तत्क्षणवृत्तिस्वभावेनाप्यस्तित्वाभावे घटाश्रयव्यवहारस्यैव विलोपापत्तिः । विनष्टानुत्पन्नघटव्यवहाराभावात् ।। ___ अथवा घट आदि सब पदार्थों में प्रत्येक क्षणमें सजातीय परिणाम होता रहता है, यह विषय सिद्धान्तसे सिद्ध है उसमें ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षासे वर्तमान क्षणमें रहनेवाला जो घटका पर्याय है वह घटका निजरूप है तथा भूत और भविष्य अर्थात् जो होगये और होंगे वे सब पर्याय घटके पररूप हैं । इसलिये उसी घटपर्यायदशाके वर्तमान क्षणमें रहनेवाला जो घटका स्वभाव है उस स्वभावसे घट है ॥ और वर्तमान क्षणसे भिन्न भूत वा भविष्य क्षणवृत्ति जो स्वभाव है उस रूपसे घट नहीं है क्योंकि अपने स्वभावसे सत्त्व और अन्यके स्वभावसे असत्त्व ही वस्तुका स्वरूप अनुभवमें आता है। और वर्तमान क्षणमें रहनेवाले स्वभावसे जैसे घटका अस्तित्व माना जाता है ऐसे ही यदि अन्य क्षणमें रहनेवाले स्वभावसे भी अस्तित्व मानो तो सब स्वभाव एक क्षणवृत्ति हो जायगा। क्योंकि सब क्षणमें रहनेवाले स्वभावसे जो अस्तित्व है वही अस्तित्व एक क्षणमें है तो कुछ भेद नहीं है, इसलिये सब स्वभाव एक क्षणमें रहनेवाले हो जाएंगे । तथा वर्तमान क्षणसे भिन्न अन्य क्षणमें रहनेवाले स्वभावरूपसे जैसे वर्तमान अस्तित्वका अभाव माना जाता है ऐसे ही १ पदार्थके स्वरूपका बदलना प्रत्येक पदार्थका निजस्वरूप प्रतिक्षण कुछ न कुछ रूपान्तर होता रहता है वही दूसरे रूपकी प्राप्तिका परिणाम है. २ केवल वर्तमान क्षणमें रहनेवाले पर्यायका ग्राही नय. ३ घटकी आगामी दशामें रहनेवाले. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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