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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कदाचित् घटका रूप, फलकी मधुरता, पुष्पका सौगन्ध्य, जलकी शीतलता और वायुका स्पर्श इत्यादि वाक्योंमें गुणकी भी विशेषणता देख पड़ती है क्योंकि इन पूर्वोक्त वाक्योंमें घट, फलादि द्रव्योंका अन्वयरूप तथा मधुरता आदि गुणोंमें है. इससे द्रव्यकी भी विशेषणता सिद्ध हुई । ऐसी शङ्का करो तो सत्य है । तथापि समानाधिकरण वाक्यमें अर्थात् अवच्छेदक धर्म तथा वस्तुका गुण दोनों एक अधिकरणमें अन्वयजनक वाक्यमें जैसे नीलकमल शुक्लपट और सुगन्ध पवन इत्यादि स्थानोंमें द्रव्यवाचक कमल आदि शब्दको विशेष्यता तथा गुणवाचक नीलादि शब्दको विशेषणताका नियम है, इस हेतुसे द्रव्यवाचक शब्द प्रायः विशेष्य और गुणवाचक विशेषण होता है। ___ तत्र स्वरूपादिभिरस्तित्वमिव नास्तित्वमपि स्यादित्यनिष्टार्थस्य निवृत्तये स्यादस्त्येवेत्येवकारः। तेन च स्वरूपादिभिरस्तित्वमेव न नास्तित्वमित्यवधार्यते । तदुक्तम् प्रथम भङ्गमें जैसे स्वकीयरूप आदिसे अस्तित्वका भान होता है ऐसे ही नास्तित्वका भी कथञ्चित् भान हो इस अनिष्ट अर्थके निराकरणके लिये 'स्यादस्त्येव' यहां अस्ति पदके अनन्तर 'एव' पद दिया गया, इस हेतुसे 'स्यात् अस्ति एव' इस वाक्यसे यह अर्थ बोधित होता कि स्वरूप आदिसे घटका अस्तित्वही है न कि नास्तित्व अर्थात् अपने रूपसे है ही है. उसका असत्त्व निजरूपसे नहीं है । जैसा कि कहा भी है । " वाक्येऽवधारणं तावदनिष्टार्थनिवृत्तये । कर्तव्यमन्यथानुक्तसमत्वात्तस्य कुत्रचित् ॥” इति ॥ 'स्यात अस्ति एव घटः कथञ्चित् घट है ही है इत्यादि वाक्यमें अवधारण अर्थात् निश्चयवाचक 'एव' शब्दका प्रयोग अनिष्ट असत्त्वादि अर्थकी निवृत्तिकेलिये अवश्य कर्त्तव्य है. ऐसा न करनेसे अकथितके तुल्य कदाचित् कहीं उसकी प्रतीति हो जाय । ननु नानार्थस्थले गौरेवेत्यादौ सत्यप्यवधारणेऽनिष्टार्थनिवृत्तेरभावात् , गामानयेत्यादावसत्यप्यवधारणे प्रकरणादिनानिष्टार्थनिवृत्तेर्भावाञ्च, नावधारणाधीनाऽन्यनिवृत्तिः। किञ्चअन्यनिवृत्तिं कुर्वन्नेवकार एवकारान्तरमपेक्षते वा ? न वा ? आयेऽनवस्थापत्तिः । द्वितीये यथैवकारप्रयोग एवकारान्तराभावेऽपि प्रकरणादिनाऽन्यनिवृत्तिर्लभ्यते तथा सर्वशब्दप्रयोगेऽपि प्रकरणादिनाऽन्यनिवृत्तेर्लाभसम्भवादेवकारप्रयोगोऽनर्थक इति ॥ कदाचित् यह कहो कि नाना अर्थवाचक शब्दोंमें जैसे 'गौः एव' केवल गौ इत्यादिमें निश्चयवाचक एव शब्दके रहनेपर भी अनिष्ट अर्थकी निवृत्तिका अभाव है । गो शब्द पशु इन्द्रिय तथा किरण आदि कई अर्थोंका वाचक है तो अवधारणवाचक रहनेपर भी सब ही अर्थोंकी उपस्थिति होगी और 'गाम् आनय गौ लाओ, यहांपर अवधारणवाचक एव शब्दके न रहनेपर भी प्रकरण आदिसे अनिष्ट अर्थकी निवृत्ति है । क्योंकि दुग्धादिके प्रकरणसे पशुरूपका आनयनरूप अर्थका ज्ञान इस वाक्यसे होता है न कि अन्यका । १ खुशबू. २ सफेद कपड़ा. ३ अनेक. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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