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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारकं । - रिये हैं । यह गांव बेतवा नदी के तट पर कुछ उंचाई पर है। इसके ऊपर ३०० फुट जाकर ऊंचे स्थान पर करनाली का पुराना किला है। इस किले की दक्षिणी दीवाल के नीचे वेतवा नदी बहुत ही सुन्दरता के साथ बहती है। देवगढ़ की पहाड़ी के चारों ओर कोट है जो पश्चिम की तरफ ढाल के ऊपर से दौड़ता हुआ, उत्तर की तरफ ढाल से कुछ दूर होता हुआ पूर्व की तरफ के किनारे को पार करता हुआ पश्चिम की तरफ ढालू स्थान से चढ़ाई पर गया है। आगे जाकर एक द्वार से माग है। इसके उत्तर पूर्व सोलह जैन मन्दिरों का समुदाय है। इनमें से कुछ सुरक्षित हैं और उनमें बड़ी सुन्दर कारीगरी है। दक्षिण की तरफ दो सीढ़ियां हैं जिनको राजघाटी और नहरघाटी कहते हैं जो चट्टान में से ही खोदी गई है जिन पर कुछ खुदाई की शिल्पकला है । यहां एक गुफा भी है जिसको सिद्ध गुफा कहते हैं यह पहाड़ में खुदी हुई है इसका मार्ग पहाड़ी के ऊपर से एक सीढ़ी द्वारा नीचे को है। यह सिद्ध गुफा यहां वहां से खुली हुई है। इसके तीन द्वार हैं दो स्तम्भों से छत रक्षित है । इस चट्टान के बाहर एक छोटा सा लेख गुप्त समय (तीसरी से पांचवीं छठी शताब्दी) का है। एक दूसरा लेख है जिसमें यह कथन है कि राजा वीर ने संवत् १३४५ (सन् ई० १२८८ ) में कुरार को जीता था। एक दूसरा लेख सम्वत १८०८ का है जो पढ़ा नहीं जाता। इसी For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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