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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमीरपुर। - (१) वि० सं०८५७ नानक देव (२) सं० ८८२ वापति (३) सन् ८५० विजय (४) सन् ८७५ राहिल (५) सन् ६०० हर्ष देव (६) सं० ६८२ यशोवर्मा देव (७) सं० १०१० धंगदेव (८) सं० १०५६ गंददेव (8) सं० १०८२ विद्याधर देव (१०) सं० १०६७ विजयपाल देव (११) सं० ११.७ देववर्मा देव (१२) सं० ११२० कीर्तिवर्मा देव १३) सं० ११५५ हल्लक्षण वर्मा देव (१४) सं० ११६७ जयवर्मा देव (१५) सं० ११७७ हल्लक्षण वर्मा देव (१६) सं० ११७६ पृथ्वीवर्मा देव (१७) सं० ११८६ मदन वर्मा देव (१८) सं० १२२२ परमार्द्धिदेव या परमार जिसको पृथ्वी राज ने जीता (१६) सं० १२५६ त्रैलोक्य वर्मा देव (२०) सं० १२६७ वीरवर्मा १ (२१) सं० १३०६ भोजवर्मा (२२) सं० १३५७ वीरवर्मा २ (२३) सं० १३८७ शशांक भूप (२४) सं० १४०३ भीलमर्दन (२५) सं० १४४७ परमार्दी (२६) सन् १४२० यहां से ३० वां राजा सन् १५७७ कीरतसिंह। (४) खजराहा-प्राचीन नाम खजूरपुर-जंजाहुति की राजधानी । यह नाम गंददेव के सं० १०५६ के लेख में मिला है। सबसे स्पष्ट लेख घंटाई मन्दिर के स्तंभ पर नेमिचंद्र के नाम से है उसमें राजा धंगदेव का समय सं० १०११ या सन् १५० दिया है। यहां जो घंटाई का बड़ा जैन मंदिर है उससे पुराना दूसरा कोई मन्दिर नहीं है।(None of the standing temples are of older date than the great Jain temple of Ghantai.) इसी के लेख में नेमिचंद्र स्वस्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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