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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगे पश्चिम में जाकर श्ररिहर में सर्व पृथ्वी पत्थर के टुकड़ों से व्याप्त है । मासवान डीह का बहुत बड़ा टीला है जोकि ज़हूरगंज के उत्तर करीब १ मील में है । जब चीनी यात्री हुइनसांग यहां आया तब इस देश का नाम युधपतिपुर, युधरामपुर, तथा गुर्जुपतिपुर प्रसिद्ध था । गाज़ीपुर के प्राचीन स्थान । (१) औंरिहर - गाजीपुर से २६ मील। यहां बहुत पुराने खंडहर हैं । (२) वारा - तहसील जुमनिया । गहमर से ३ मील । यह एक प्राचीन स्थान है । प्राचीन नाम वीरपुर है। पश्चिम की तरफ करीब १ मील तक एक बड़ा टीला और बहुत से भन मकान दिखलाई पड़ते हैं । (३) भितरी - तहसील सैदपुर । गाज़ीपुर से २ मील । यह बहुत प्राचीन स्थान है। बहुत से टीले हैं। किले के भीतर एक पाषाण के ऊपर एक लाल पत्थर का प्रसिद्ध स्तंभ है । यह २८ || फुट ऊंचा है । इस स्तम्भ पर एक लेख है जिसमें राजा स्कन्दगुप्त का वर्णन है, जो कुमारगुप्त के पीछे राजा हुए। इस स्तंभ के नीचे की तरफ़ खुदाई करने से कुछ बड़ी ईंटें मिली हैं देखो जर्नल एसियाटिक सोसाइटी बंगाल छठा भाग एक, और जर्नल बायल एसि० स० बम्बई जिल्द १० वीं सफा ५६ और १६ वीं सफा ३४६ For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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