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गोरखपुर ।
राज्ये शक्रोपमस्य तितिप-शत-पतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्तः वर्षे त्रिंशदशैकोत्तरक-शत-तमे ज्येष्ठ मासे प्रपन्ने ख्यातेऽस्मिन् ग्राम-रत्ने ककुभ इति जनै स्साधु-संसर्ग-पूते पुत्रो यस्सोमिलस्य प्रचुर-गुण निधेमहिसोमो महार्थ:३ तत्सूनू रुद्र-सोमः पृथुलमतियशा व्याघ्ररत्य न्य संज्ञो’ मद्रस्तस्यात्मजो-भूद्विज-गुरु यतिषु प्रायशः प्रीतिमान्यः । पुण्य-स्कन्धं स चक्रे जगदिदमखिलं संसरद्वीक्ष्य भीतो श्रेयोथं भूतभूत्यै पथि नियमवतामहतामादिकर्तृण । पञ्चेदानस्थापयित्वा धरणिधरमयान्सभिखातस्ततोऽयम् । शैलस्तम्भः सुचारुर्गिरिवर-शिखरामोपमः कोर्ति कर्ता। इसका भावार्थ यह है:
जिस राजा के रहने को पृथ्वी सैकड़ों राजाओं के मस्तकों के गिरने से लगी हुई हवा से पवित्र है (जिसका भाव यह होता है कि यहां सैकड़ों राजाओं ने राज्य किया है, अथवा यह भी हो सकता है कि सैकड़ों शत्रु राजाओं का जहां पतन हुआ है ) उस, गुप्तवंश में उत्पन्न, यशस्वो, सर्वोत्तम ऋद्धि
का. इ. इन्डी. में डा.. ल्फीट. के पाठः१ शान्ते । . मासि । ३ महात्मा। ४ व्याघ्र इत्यन्य संज्ञो।
५ डा० फ्लीट ने पहली पंक्ति का यह अर्थ किया है:- जिस राजा की सभा भूमि सैकड़ों राजाओं के नत-स्तकों से उत्पन्न हुई वायु से हिल जाती है' इत्यादि । दि-जैन डायरेक्टरी में इसका भावार्थ यों किया गया है "जिनके दरबार का आंगन प्रणत सैकड़ों राजाओं के नत मस्तकों से वीजित होता है" । यह अर्थ ठीक प्रतीत होता है।
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