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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir They are more likely to be found in Rajputana than elsewhere'. ___ 'मुझे निश्चय है कि जैन स्तूप अब भी विद्यमान हैं और यदि अन्वेषण किया जाय तो मिल सकते हैं। उनके पाये जाने की सम्भावना और स्थानों की अपेक्षा राजपताने में अधिक है। केवल पार्किलाजिकल सर्वे रिपोर्ट के सफे उलटने से ही पता चल जाता है कि जगह २, गांव २ में प्राचीन सभ्यता की झलके हैं । अगर लोगों में प्राचीन स्मारकों के खोज करने की रुचि भाजावे तो थोड़े ही समय में न जाने कितनी ऐतिहासिक सामग्री एकत्रित हो जावे और कितनी विवाद-ग्रस्त बातों का निर्णय हो जाय । कभी २ प्राचीन लेख की एक ही लकीर व प्राचीन मूर्ति के एक ही टुकड़े से बड़े २ महत्वपूर्ण प्रश्न हल हो जाते हैं। अव पाठकों को विदित हो गया होगा कि इन पुराने खंडहरों, टूटी फूटी भूर्तियों व अस्पष्ट अपरिचित लिपयों में लिखे हुए शिला लेखों आदि में कैसा रहस्य, कैसा ज्ञान का भंडार, कैसी गौरव और कीर्ति की कुंजियां छुपी हुई रहती हैं । अतः प्रत्येक समाज हितैषी,धर्म प्रेमी, इतिहास प्रेमी व देश प्रेमी का कर्तव्य है कि ऐसे स्मारकों का थोड़ा बहुत परिचय अवश्य रक्खें और अवसर पड़ने पर मूर्तियों पर के लेखों व उनकी प्राचीनता के चिह्न, व अन्य स्थानों पर के लेखों, पुरानी कारीगरी के नमूनों व मन्दिरों श्रादि के भग्रावशेषों पर For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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