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( २२ ) के शिला लेखों का अध्ययन किया है, पूर्णरूप से अपनी राय इसी पक्ष में दी है और मि० ही० स्मिथ भी अन्त में इस मत. की ओर मुके हैं। ___ इस प्रकार श्रवण बेलगुल के लेख जैन इतिहास के लिये बड़े महत्व और गौरव के प्रमाणित हुए हैं। उनके बिना महाराज चन्द्रगुप्त का जैनी होना सिद्ध करना असम्भव होता। __ यह केवल उन मुख्य २ प्राचीनतम लेखों का परिचय है जिनने जैन इतिहास पर विशेष प्रकाश डाल कर उसके अध्ययन में एक नये युगका प्रारम्भ कर दिया है व इतिहासज्ञों की सम्मति-धाराये बदल दी हैं। इनके अतिरिक्त विविध स्थानों में भिन्न २ समय के सैकड़ों नहीं सहस्रों जैन लेख व अन्य जैन स्मारक ऐसे मिले हैं जिनसे प्राचीन काल में जैन धर्म के प्रभाव व प्रचार का पता चलता है। वे सिद्ध कर रहे हैं कि जैन धर्म का भूतकाल जगमगाता हुआ रहा है । वह बहुत समय तक राज-धर्म रह चुका है। इसकी ज्योति क्षत्रियों ने प्रभावान् बनाई थी और क्षत्रियों द्वारा ही इसकी पुष्टि और प्रसिद्धि हुई थी। मगध के शिशुनाग वंशी व मौर्य वंशी नरेशों, व उड़ीसा के महाराजा खार बेल के अतिरिक्त दक्षिण के कदम्ब, चालुक्य, राष्ट्र कूट, रह, पल्लव, सन्तार आदि अनेक प्राचीन राजवंशों द्वारा इस धर्म की उन्नति और ख्याति हुई ऐसा लेखों से सिद्ध हो चुका है । पर यह सब ऐतिहासिक सामग्री
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