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( ५ ) उत्साह व खोजकों की चमत्कारिक सफलता को देखकर 'लार्ड कर्जन' ने 'पार्किलाजिकल सर्वे' अर्थात् पुरातत्त्व अनुसन्धान नामक एक सरकारी महकमा खोल दिया । तब से खोज का काम और भी सावधानी और बुद्धिमत्ता से चलने लगा। इससे देश की ऐतिहासिक अन्धकारता बहुत कुछ दूर हो चली है। ___इस खोज से जैन धर्म के इतिहास पर जो विशेष प्रकाश पड़ा है उसका यहां पाठकों को संक्षिप्त परिचय करा देना हम उचित समझते हैं। ___ (१) अशोक सम्राट ( ईस्वी पूर्व २७५ वर्ष ) के दिल्ली के स्तम्भ पर की आठवीं प्रशस्ति में निर्ग्रन्यों ('निगन्थ') का उल्लेख आया है । सम्राट ने अन्य पन्थों के अनुसार निर्ग्रन्थ पन्थ के लिये भी धर्म-महामात्य अर्थात् धर्माध्यक्ष नियुक्त किये थे । जैन, बौद्ध व ब्राह्मण ग्रन्थों से यह सिद्ध हो चुका है कि प्राचीन काल में जैन साधु सर्वथा परिग्रह रहित दिगम्बर रहने के कारण निर्ग्रन्थ कहलाते थे। यह नाम अब भी जैनियां में प्रचलित है। महाराज अशोक ने इनके लिये धर्माध्यक्ष नियुक्त किये । इससे अनुमान किया जा सक्ता है कि निर्ग्रन्थ मत उनके समय में भी बहुत प्रचलित और प्रबल था। कोई नया निकला पंथ नहीं था। डा० जैकोबी ने प्राचीन-तम जैन और बौद्ध ग्रन्थों की छान बीन कर सिद्ध किया है कि निम्रन्थ मत बहुत पुराना है। महात्मा बुद्ध के
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