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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इटाबा। ६३ - में दो मूर्तियां पद्मासन खंडित हैं उन पर संवत् १२२३ है । ददराग्राम पास में है। वहां एक मोल पर १ पद्मासन प्रतिमा का मठ है जिस पर संवत १२३४ जेठ सुदी १२ है। आगे जाकर कुएं के ऊपर पानी भरने के स्थान पर १ खड़गासन मूर्ति ३॥ हाथ ऊंची है। हाथ खंडित है । लेख स० ११११ वैसाख सुदी ५ मूल संघ प्रादि है। ये सब मूर्तियां दिगम्बरी हैं । मालूम होता है कि ११ वी व १२ वीं शताब्दी में दिगम्बर जैनियों का यहां बहुत प्रभाव था। ____ डा० फुहरर की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि उसमें इस असाई खेड़ा का वर्णन दिया है कि यह जैनियों की एक खास जगह है। यहां संवत १०१८ से १२३० तक की जैन मूर्तियां मिली हैं जो लखनऊ अजायबघर में रक्खी हैं । महमूद मज़नवी ने सन् २०१८ में इस असाई किले पर हमला किया था। यह उसका भारत पर १२ वां हमला था इस पुराने किले को राजा चंदपाल ने बनाया था (२) ऐरवा--तहसील विधूना, इटावा से उत्तर-दक्षिण २७ मील । विधूना को जाती हुई सड़क पर ग्राम के दक्षिण पूर्व एक प्राचीन जैन "दिर के खंड है। यहां जैनियों का प्रसिद्ध नगर पालभी या श्रालभिया था ( डा० फुहरर)। हतकांत (भिंड ) में एक प्राचीन जैन मन्दिर है जिसकी मूर्तियां इटावा के लाला मुन्नालाल द्वारकादास के बनाये मन्दिर में विराजित है। यहां कहते हैं कि ५१ प्रतिष्ठाएं हो चुकी हैं । यहां १ भोयरा है जिसमें बहुत सी प्रतिमाएं व भंडार हैं-अभी तक उसके मुंह का पता नहीं लगा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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