SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विज नौर। इतिहास कहता है कि पुराना नगर गिर गया था तब मेरठ जिले के मुरारी के अग्रवाल बनियों ने १२ वीं शताब्दी में फिर से बसाया । उन अग्रवालों के नाम द्वारकादास और कटारमल था उनकी संतान अभी तक यहां के मुख्य निवासी हैं । इसी स्थान को चीनी यात्री हुइनसांग ने मोतीपला लिखा है । यह यात्री यहां ७ वीं शदी में आया था। यहां वौद्धगुरु सिंहभद्र का स्तूप है जो पहली शताब्दी का अनुमान किया जाता है। यही स्थान सिंहभद्र के शिष्य विमलमित्र का समाधि स्थान है । दूसरा बड़ा टोला है जिस पर ग्राम मंडी बसा है जो किले के उत्तर पूर्व १ मील के करीब है। मध्य में सन्दर ताल है जिसके चारों ओर बहुत से टीले हैं । लालपुर के ग्राम में गुणप्रभ का मठ है । ( नोट-यहां जैन चिन्हों की अच्छी तरह जांच होनी चाहिये। (३) मोरधज-पर्गना-तहसील नजीवाबाद । पुराना ध्वंश किला नाजीबाबाद से कोट द्वारा की सड़क के पूर्व नजीबाबाद से ६ मील है। चंदन बाला-ग्राम में है। वह बड़ा नगर था। बहुत ही पुरानी जगह है । खंडहरों में पुराने नमूने की बड़ो ईंटे हैं। इस स्थानकी इंटे नजीबाबाद के पास पथारगढ़ बनाने में लगी हैं। किले के भीतर शिगरी नाम का बड़ा टीला है-यह एक वौद्ध For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy