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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५-पीलीभीत (गजेटियर छपा १६०६) इसकी चौहद्दी इस प्रकार है: पूर्व में खेरीजिला, उत्तर-पूर्व में नेपाल; उत्तर में नेनीताल, दक्षिण में शाहजहांपुर है। इसमें १३५० वर्गमील स्थान है। (१) देवरिया-तहसील विलासपुर । विलासपुर से १० मोल । यह बहुत प्राचीन खंडहर हैं बहुत टीले हैं (नोट-जांच होनी चाहिये। _(२) जहानावाद-यहां के खंडहर यहां प्राचीन समय की बस्ती को बताते हैं। (३) मरौरी-तहसील विलासपुर। विलासपुर से १० मील । यह स्थान प्राचीन है। यहां यह कहावत है कि इसका बसाने वाला राजा मयूर ध्वज था। इस राजा का नाम विजनौर में मोरधज के प्राचीन किले में सुरक्षित है । यह पांडवों के समय में हुआ है। इस कहावत की सिद्धि खनौत नदी के तट पर स्थित बहुत से प्राचीन खंडहरों से होती है । ये सब बहुत ही प्राचीन सभ्यता के हैं। बहुत करके ये जैन मालूम होते हैं । परंतु अभी तक इनकी खोज नहीं की गई है। For Private And Personal Use Only
SR No.020653
Book TitleSanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherJain Hostel Prayag
Publication Year1923
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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