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थे। इनमें जयपुर राज्य का संस्कृत वाङमय में योगदान अधिक मात्रा में रहा।
विद्यमान जयपुरनगरी के संस्थापक इतिहास प्रसिद्ध कछवाह वंशीय महाराज सवाई जयसिंह (द्वितीय) स्वयं विख्यात ज्योतिःशास्त्रज्ञ थे। उन्होंने अनेक यज्ञों के निमित्त विद्वानों के परिवार अपने राज्य में बसाए और जयपुर की कीर्ति वाराणसी से तुल्य गुण की । "वाराणसी वा जयपत्तनं वा" यह सूक्ति प्रचलित होने का श्रेय महाराजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) को ही है। उनके पश्चात् सवाई ईश्वरीसिंह (1743-50 ई.) सवाई माधवसिंह (1750-67), सवाई पृथ्वीसिंह (1767-78 सवाई प्रतापसिंह (1778-1803) सवाई जगतसिंह (1803-1818 ई.) सवाई जयसिंह (तृतीय) (1818-1834 ई.) इन विद्याप्रेमी नृपतियों द्वारा जयपुरराज्य में संस्कृत की स्पृहणीय श्रीवृद्धि निरंतर हुई। इन प्रशासकों के काल में ख्यातिप्राप्त विद्वानों के नामों की सूची इस परिशिष्ट में प्रस्तुत है
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काशीराम
केवलराम ज्योतिषराय गंगाराम पाँडरीक
गंगारामभट्ट पर्वतीकर
चक्रपाणि गोस्वामी
जगन्नाथ दीक्षित सम्राट् जनार्दन गोस्वामी
जयचन्द छाबडा
दीनानाथ सम्राट् द्वारकानाथ भट्ट (देवर्षि)
नयनसुख उपाध्याय भट्ट राना सदाशिव
भोलानाथ शुक्ल मथुरामल माथुर चतुर्वेदी महीधर
मायाराम गौड पाठक
रत्नाकर पौण्डरीक रामचन्द्र भट्ट पर्वतीकर
रामेश्वर पौण्डरीक
विश्वेश्वर महाशब्दे व्रजनाथ भट्ट दीक्षित शिवानन्द गोस्वामी
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श्यामसुन्दर दीक्षित
श्रीकृष्णभट्ट (कविकलानिधि)
श्रीनिकेतन गोस्वामी
सखाराम भट्ट पर्वतीकर
सदाशिव शर्मा दशपुत्र
सवाई जयसिंह (द्वितीय) महाराज
512 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
सीताराम भट्ट पर्वतीकर (30 ग्रंथों के लेखक )
सुधाकर महाशब्दे हरिलाल
हरिहर भट्ट हरेकृष्ण मिश्र
महाराना सवाई जयसिंह (द्वितीय) तथा उनके वंशजों द्वारा जयपुर में प्रवर्तित संस्कृत विद्या की उपासना तथा वाङ्मय निर्मिति की परंपरा आज तक, महाराजा संस्कृत कॉलेज, दिगंबर जैन संस्कृत कॉलेज, श्रीदाद महाविद्यालय, श्रीखण्डल महाविद्यालय सनातन धर्मसंस्कृत विद्यापीठ श्रीधर संस्कृत विद्यालय, जयपुर विश्वविद्यालय (संस्कृत विभाग), जैसे अध्यापन केंद्रों द्वारा तथा अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य संमेलन, राजसस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन, संस्कृत वाग्वर्धिनी परिषद्, वैदिक संस्कृति प्रचारक संघ, वैदिक साहित्य संसद् जैसी सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रश्रय में चल रही है। संस्कृत रत्नाकर और भारती इन जयपुरीय मासिक पत्रिकाओं का योगदान भी संस्कृत पत्रिकाओं की परंपरा में उल्लेखनीय है। इन उत्तरकालीन माध्यमों द्वारा जयपुर में अनेक स्वनामधन्य एवं मूर्धन्य संस्कृत लेखकों की परम्परा निर्माण हुई जिनमें कुछ नाम चिरस्मरणीय है। जैसे सर्वश्री गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, मधुसूदनजी ओझा, आशुकवि हरिशास्त्री, पट्टभिरामशास्त्री, कलानाथशास्त्री, गोपीनाथ धर्माधिकारी, नारायण शास्त्री कांकर, परमानन्द शास्त्री, सुरजनदासस्वामी, प्रभाकर शास्त्री एवं मण्डन मिश्र आदि नाम उल्लेखनीय है ।
जयपुर राज्य में महाराजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) से सवाई जयसिंह (तृतीय) तक (सन 1700-1743) के शासनकाल में निर्मित संस्कृत वाङ्मय की विषयानुसार सूची
काव्यग्रंथ
अभिलाषशतक
ईश्वरविलास महाकाव्य
कुलप्रबन्ध
गंगादीनाम् अष्टकानि (स्तोत्र )
गंगास्तुतिपद्धति (स्तोत्र )
गालवगीतम्
जयवंशमहाकाव्य
नलवंशमहाकाव्य
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नलविलासम्
नीतिशतकम् (मुक्तक) नृपविलासम्
पद्यतरंगिणी ( नीतिकाव्य)
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