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सका और यह सिंहासन आकाश में उड गया। इस ग्रंथ के तथा सीता पुष्पक विमान में बैठ अयोध्या को प्रस्थान करते उत्तरी व दक्षिणी ऐसे दो भाग हैं। उत्तरी भाग के तीन अध्यायों हैं। अयोध्या में उनका राज्याभिषेक होता है। में एक गद्य रूप में है जिसके रचयिता क्षेमकर मुनि हैं। सीतारामदयालहरी - ले.- सीताराम शास्त्री। खण्ड काव्य । दूसरा बंगाली में है, और तीसरा लघु विवरणात्मक है।
सीतारामविहारम् - ले.- लक्ष्मण सोमयाजी। पिता- ओरगंटी ___ हस्तलिखितों के आधार पर इन कथाओं के रचयिता शंकर। आंध्रवासी। कालिदास ही थे, ऐसा कुछ विद्वानों का मत है किन्तु कुछ।
सीतारामाभ्युदयम्-ले.- गोपालशास्त्री। ई. 19-20 वीं शती। विद्वान् नंदीश्वर यागी, सिद्धसेन दिवाकर तथा वररुचि को इसके
सीतारामाविर्भावम् - ले.- नित्यानन्द। ई. 20 वीं शती। रचयिता मानते हैं।
सीतारामदास ओंकारनाथ देव की जयंती पर अभिनीत । अंकसंख्या __इसकी अनेक कथाएं गुणाढ्य के कथासरित्सागर से ली गई हैं।
तीन । प्रत्येक अंक का कथानक स्वतंत्र है। आंतरराष्ट्रीय सभ्यता सीताकल्याणम् (वीथी)- ले.- प्रधान वेंकप्प। ई. 18 वीं । और संस्कृति का आधुनिक नागरिक पर विषम प्रभाव विवेचित । शती। श्रीरामपुर के निवासी। इसकी प्रस्तावना में रूपक का
कथासार- प्रथम अंक- षड्रिपुओं के साथ चर्चा करके राजा नाम पहेली द्वारा प्रस्तुत है। प्रारम्भ शुद्ध विष्कम्भक से, जब कलि विवेक को बंदी बनाता है. स्त्रियों को व्यभिचारिणी और कि शास्त्रतः वीथी में विष्कम्भक वर्जित है। विषय- श्रीराम-सीता
ब्राह्मणों को लोभी बनने को उद्युक्त करता है। द्वितीय अंकपरिणय की कथा।
श्यामलाल और गुणधर नामक नास्तिकों में धर्मविमुक्ति पर 2) ले.- वेंकटरामशास्त्री। सन् 1953 में प्रकाशित । अंकसंख्या- . वार्तालाप होता है, तब तक समाचार मिलता है कि किसी ने पांच। श्रीराम के जन्म से विवाह तक की घटनाएं वर्णित। गुणधर की पत्नी को मार कर सारी सम्पत्ति चुरा ली। तृतीय 3) ले.- प्रा. सुब्रह्मण्य सूरि।
अंक - वैकुण्ठ में नारद और धर्म नारायण से कहते हैं कि सीताचम्पू- ले.- गुण्डुस्वामी शास्त्री ।
पृथ्वी लोक में धर्मग्लानि हो रही है। नारायण आश्वासन देते सीतादिव्यचरितम् - ले.- श्रीनिवास। ई. 17 वीं शती।
है कि अब वे शीघ्र ही भारतवर्ष में अवतार ग्रहण करेंगे। सीता नेतृ-स्तुति- ले.- मंडपाक पार्वतीश्वर । ई.- 19 वीं शती। सीताविचारलहरी - अनुवादक- एन. गोपाल पिल्ले। सीतापरिणयम् -ले.- सूर्यनारायणाध्वरी । ई. 19-20 वीं शती। केरल-निवासी। मूल-मलयालम काव्य, (चिन्ताविष्टयाथ सीता) सीताराघवम्- ले.- रामपाणिवाद। ई. 18 वीं शती। कुमारन् आसनकृत। वंची मार्तड की पण्डितपरिषद् में प्रथम अभिनय। सन्
सीताविजयचम्पू - ले.- घण्टावतार । 1956 ईसवी में मुख्य उत्सव में पद्मनाभ मन्दिर में अभिनीत। सीतास्वयंवरम् - ले.- कामराज। ई. 19-20 वीं शती। अंकसंख्या-सात। कथासार- विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण सीतोपनिषद् - अथर्ववेद से संबंधित एक नव्य उपनिषद्। मिथिला पहुंचते हैं। एतदर्थ दशरथ से पहले ही अनुमति ले इसमें सीता के स्वरूप की चर्चा की गई है। इसमें बताया ली है। मारीच का शिष्य मायावसु वहां विघ्न डालने के लिए गया है कि सीता की उत्पत्ति ओंकार से हुई तथा वह ब्रह्मा दशरथ का रूप लेकर पहुंचता है। उसका सेवक कर्मम्भक की शक्ति व प्रकृतिस्वरूपा है वही व्यक्त प्रकृति को रूप प्रदान सुमन्त्र का रूप धारण करता है। परन्तु शतानन्द उन दोनों करती है। इस उपनिषद् में सीता शब्द के स.ई.ता इस प्रकार का कपट पहचानता है। धनुभंग के पश्चात् वे दोनों परशुराम तीन भाग बनाये गये हैं। 'स' यह सत्य व अमृत का प्रतीक से सहायता लेने चल देते हैं। रामादि चारों भाइयों का विवाह है, ईकार यह सर्व जगत् की बीजरूप विष्णु की योगमाया होने के पश्चात् राज्याभिषेक की तैयारी होती है। शूर्पणखा द्वारा अथवा अव्यक्त रूप महामाया है। ता अक्षर त् व्यंजन महालक्ष्मी नियोजित राक्षसी अयोमुखी मन्थरा का रूप धारण कर कैकेयी स्वरूप है, जो प्रकाशमय व सृष्टि का विस्तार करने वाले
को उकसाती है और कैकेयी उसकी बातों में आ जाती है। शक्तिपुंज से ओतप्रोत है। इस प्रकार सीता के तीन स्वरूप राम-सीता तथा लक्ष्मण के साथ वन चले जाते हैं। फिर माने गये हैं। उसका प्रथम रूप शब्दब्रह्मरूप व बुद्धिरूप है। मारीच का मरण, सीता का हरण, वालि की मृत्यु इ. घटनाओं दूसरा रूप सगण है जिसमें वह राजा सीरध्वज की कन्या के के बाद मायावसु चारण का रूप धारण कर बताता है कि रूप में प्रकट होती है, और तीसरा रूप महामाया का है, रावण ने सीता का वध किया, इन्द्रजित् ने हनुमान् को मार जिस रूप में वह जगत् का विस्तार करती है। डाला और अंगद प्रायोपवेशन करके मर गया। इतने में सुकुमारचरितम् - ले.- सकलकीर्ति। जैनाचार्य। ई. 14 वीं दधिमुख आकर सूचनावार्ता देता है कि हनुमान् सफल होकर
शती। पिता- कर्णसिंह। माता- शोभा। 9 सर्ग। लौटे हैं। मायावसु लज्जित होकर भाग जाता है।
सुकृत्यप्रकाश - ले.- ज्वालानाथ मिश्र। विषय- आचार, बाद में राम-रावण युद्ध में रावण की मृत्यु होती है। राम अशौच, श्राद्ध एवं असत्परिग्रह (दुर्जन लोगों से दान ग्रहण) ।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /411
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