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सामामृतसिन्धु- ले.- पं. शिवदत्त त्रिपाठी। साम्बचरितम् - ले.- वृन्दावन शुक्ल । साम्बपंचाशिका-विवरणम् - ले.- क्षेमराज । सांबपुराणम् - एक उपपुराण। यह सौर पुराण है। सूर्योपासना इसका मुख्य विषय है। इसके मुख्यतः दो भाग हैं। ये दोनों भिन्न काल में, भिन्न व्यक्तियों ने, भिन्न प्रदेशों में रचे हैं। प्रथम ई. 500 से 800 के बीच व दूसरा सन 950 के बाद लिखा गया। दूसरे भाग में सांब का उल्लेख भी नहीं है। उडीसा के कोणार्क मंदिर संबंधी जानकारी इस पुराण में है। भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को नारदमुनि का शाप और सूर्योपासना से उसकी मुक्ति की कथा के द्वारा सूर्योपासना की जानकारी दी गई है। साम्बसंहिता- श्लोक-1200। साम्यतीर्थम् (नाटक)- ले.- जीव न्यायतीर्थ। जन्म 1884 । कलकत्ता से सन 1962 में प्रकाशित। रवीन्द्रनाथ टैगोर के निबन्धों पर आधारित। विषय-राष्ट्रीय एकता का प्रतिपादन । अंकसंख्या-पांच। साम्यसागर-कल्लोलम् - ले.- जीव न्यायतीर्थ । जन्म- 1894 । रूसनिष्ठ साम्यवादी नेताओं की पोल खोलने हेतु रचित । कथासार -साम्यवादी नेता गणनाथ और पुरातनपंथी यति में समाजोन्नति के विषय पर विवाद छिडता है। गणनाथ मिलमजदूरों की हडताल करवाता है और किसानों को उकसाता है। मिल बन्द पड़ने पर मजदूर तथा किसानों में ही आपस में मारपीट होती हैं। उग्र मजदूर दूकाने लूटते हैं। यति के
आश्रम पर धावा बोलते हैं परंतु अंत में नौकरी छूट जाने से कुण्ठित होकर गणनाथ को ही मारने को उद्यत होते हैं। ऐसे समय पर यति अपने प्राणों पर खेलकर गणनाथ को बचाता है। सामवतम् (रूपक) -ले.- अम्बिकादत्त व्यास। रचनाकालसन् 1880 ई.। प्रथम प्रकाशन मिथिलानरेश लक्ष्मीश्वरसिंह द्वारा। द्वितीय प्रकाशन सन् 1947 में, व्यास पुस्तकालय, मानमन्दिर, काशी से। अंकसंख्या छः। कथावस्तु- स्कन्दपुराण
के ब्रह्मोत्तर खण्ड के सामव्रत प्रकरण से गृहीत। अंगी रस-शृंगार, परन्तु अश्लीलता से दूर। लम्बे, नाट्यहानिकर संवाद तथा एकोक्तियों की भरमार । अन्यविशेष- नाटक में वर्जित वनयात्रा का दृश्य, राजा के स्थान पर नायक का ऋषिपुत्र होना, भूत-प्रेत तथा भगवती की भूमिकाएं, होलिकाक्रीडा, रंगमंच पर नौकावाहन, झंझावात तथा नौका का डूबना, नेपथ्य के पात्र के साथ मंच पर के पात्र का संवाद, स्त्रीरूपधारी नर्तक का नृत्य, धीवरों का मागधी भाषा में समूहगीत, गीतनृत्यों की प्रचुरता आदि। कथासार - अपने विवाह हेतु धन पाने के लिए सुमेधा और सामवान् विदर्भराज के पास जाते हैं। मार्ग में मदालसा नामक अप्सरा का गीत सुन वे इतने तल्लीन होते हैं कि पास खडे
दुर्वासा मुनि की आवाज वे सुन नहीं पाते। दुर्वासा सामवान् को शाप देते हैं कि शीघ्र ही स्त्री बन जायेगे परन्तु गीतरस में डूबे सामवान् को यह भी सुनाई नहीं देता।
विदर्भ की राजसभा में पहुंचने पर विदूषक वसन्तक उन्हें उकसाता है कि चन्द्रांगद महाराज की रानी प्रति सोमवार ब्राह्मणों को दान देती है, सो सामवान् स्त्रीवेष लेकर, सुमेधा की पत्नी बन दान स्वीकार करें। वे वैसा करते हैं। महारानी श्रद्धापूर्वक उन्हें दान देती है। रानी के भक्तिभाव के प्रभाव से सामवान् स्त्री बन जाता है।
सामवान् के पिता सारस्वत कृद्ध होते हैं कि इकलौता कुलाधार पुत्र राजा के परिहास के कारण स्त्री बन गया। राजा क्षमा मांगता है और उसे फिर से पुरुष बनाने के लिए देवी से प्रार्थना करता है। भगवती कहती है कि महारानी ने श्रद्धायुक्त मन से सामवान् को जो समझा, उसे कोई बदल नहीं सकता किन्तु सारस्वत की कुलवृद्धि हेतु उसे दूसरा पुत्र प्राप्त होगा। अन्त में सामवती (सामवान् का स्त्रीरूप) तथा सुमेधा का विवाह होता है और विदर्भराज उस विवाह का व्यय वहन करता है। सायनवाद- ले.- नृसिंह (बापूदेव शास्त्री) ई. 19 वीं शती। विषय- ज्योतिष शास्त्र। सारग्राहकर्मविपाक - ले.- कान्हरदेव। नागर ब्राह्मण । मंगलभूपाल के पुत्र दुर्गसिंह के मन्त्री कर्णसिंह के आश्रम में नन्दपद्रनगर में 1384 ई. में प्रणीत । लेखक का कथन है कि उसने मौलगिनृप (या कौलिनिगृप) के कर्मविपाक ग्रंथ पर अपने ग्रन्थ को आधृत किया है जिससे उसने 1200 श्लोक उदृत किये हैं। इस ग्रन्थ में 4900 श्लोक है। लेखक ने विज्ञानेश एवं बौद्धायन से क्रमशः 276 एवं 500 लिये हैं। ग्रन्थ में 55 प्रकरण एवं 45 अधिकार हैं। सारचिन्तामणि - ले.- भवानीप्रसाद । श्लोक-55441 विषयदीक्षा व्यवस्था, अकडम आदि चक्रों की विधि, नित्यानुष्ठान पूजा, मन्लोद्धार, विविध शक्तिविषयक अनुष्ठान आदि। सारदीपिका- ले.- कालीपद तर्काचार्य (1888-1962 ई.) जयकृष्ण की "सारमंजरी" की यह व्याख्या है। यह व्याकरण विषयक ग्रंथ है। सारबोधिनी- ले.- श्रीवत्सलांछन भट्टाचार्य। काव्यप्रकाश पर टीका। ई. 16 वीं शती। सारशतकम् - ले.- कृष्णराम। जयपुर के सभापण्डित। यह काव्य श्रीहर्ष के "नैषध" महाकाव्य का संक्षेप है। सारसंग्रह- ले.- भट्टारक अकुलेन्द्रनाथ। विषय- अनेक ग्रंथों का सार। इसमें इष्टोपदेश, शिवधर्मोत्तरसार, अकुलनाथ द्वारा उध्दत निर्वाणकारिका तथा निःश्वासकारिका का सार, वेदोत्तरसार, स्मृतिसार, कृष्णयोगसार, कुलपंचाशिकासार, महाज्ञानसार,
है।
406 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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