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टीकाओं के साथ प्रकाशित हो चुका है। षट्चक्रप्रकाश - ले.- पूर्णानन्द। श्लोक- 160। षट्चक्रप्रभेद - ले.- पूर्णानन्द। विषय मूलाधारादि षटचक्रों के विवरण के साथ तन्त्रानुसार षट्चक्रादि के क्रम से निःसृत परमानन्द का निरूपण। षट्चक्रभेदटिप्पणी- ले.- गौडभूमिनिवासी श्रीशंकराचार्य । इन्होंने विविध तन्त्र ग्रंथ रचे हैं। श्लोक 330, विषय- शरीरस्थित मूलाधारादि षट्चक्र, उनके अधिष्ठाता देवता आदि का निरूपण करने वाले षट्चक्रभेद नामक ग्रंथ का अर्थ विषद किया गया है। षट्चक्रविचार - श्लोक- 175। अकथहचक्र इसके आदि में
और अकडमचक्र अन्त में है। षट्चक्रविवरणम् - ले.- पूर्णानन्द । श्लोक- 1401 षट्चक्रविवृत्ति-टीका - ले.- श्री विश्वनाथ भट्टाचार्य। पितावामदेव भट्टाचार्य। श्लोक- 468। यह षटचक्रविवृत्ति नामक ग्रंथ की टीका है। विषय- शरीरस्थित स्वाधिष्ठान आदि षट्चक्रों का विवरण। षट्संदर्भ- ले.- जीव गोस्वामी। ई. 16 वीं शती। षट्तंत्रीसार - ले.- नीलकंठ चतुर्धर । पिता- गोविंद। माताफुल्तांबा। ई. 17 वीं शती।
सुप्रसिद्ध उपनिषद्। इसके छह अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में अपने मत की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये अन्य मतों व आत्मवाद की आलोचना कैसे की जाये, इसके नियम दिये गये हैं। दूसरे में योग का सुन्दर वर्णन है। तीन से पांच अध्यायों में सांख्य व शैव दर्शन का विवेचन है। पांचवें अध्याय के दूसरे श्लोक में कपिल शब्द की व्युत्पत्ति दी गई है। छठे में ईश्वर के सगुण रूप का वर्णन है। इस पर शंकराचार्य तथा विश्वास भिक्षु का भाष्य है। श्वेताश्वतरशाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय)- श्वेताश्वतरों का मन्त्रोपनिषद् प्रसिद्ध है।इसके अतिरिक्त दूसरा मन्त्रोपनिषद् भी था। उसका एक मन्त्र “अस्य वामीय" सूक्त के भाष्यकार आत्मानन्द ने 16 वें मन्त्र के भाष्य में उद्भत किया है। षट्कर्मचन्द्रिका - ले.- चरुकूरि तिम्मयज्वा। लक्ष्मणभट्ट के पुत्र । संन्यासी हो जाने पर रामचन्द्राश्रम नाम हुआ। षट्कर्मदीपिका - ले.- मुकुन्दलाल। (2) श्रीकृष्ण विद्यावागीश भट्टाचार्य । श्लोक 1000। उद्देश-91 षट्कर्मविवेक - ले.- हरिराम। षट्कर्मव्याख्यानचिन्तामणि - ले.- नित्यानंद। यजुर्वेद के पाठकों के लिए विवाह एवं अन्य पंचकर्मो के समय प्रयुक्त वाक्यों के विषय में निरूपण। षट्कर्मोल्लास - ले.- पूर्णानन्द परमहंस। गुरु- ब्रह्मानन्द ।। उल्लास 12। विषय- विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, स्तंभन, मारण, मोहन, इन षट्कर्मों के विषय में तिथि, नक्षत्र तथा आसनों के नियम । माला का नियम, कुण्डनिर्णय, नायिकासिद्धि, वीरसाधना, शान्तिविधान और षक्रियाओं की पृथक्-पृथक दक्षिणा। षट्कर्म - उड्डीशमतान्तर्गत। पटल- लगभग 24। विषयमारण, मोहन, उच्चाटन, विद्वेषण स्तम्भन, संमोहन ये छह तान्त्रिक क्रूर कर्म नहीं कहे गये हैं। जलस्तम्भन, अग्निस्तम्भन, पादप्रचार, केशरंजन, रसायनाधिकार, राज्यकरणयोग, स्त्रीयोगमाला इ. विविध विषयों का विवरण। षट्चक्रकर्मदीपिका - ले.- रामभद्र सार्वभौम। षट्चक्रदीपिका (श्रीतन्त्रचिन्तामणि के अन्तर्गत) - ले.पूर्णानन्द। इस पर नन्दराम तर्कवागीश की टीका है। षट्चक्रदीपिका- ले.- रत्नेश्वर तर्कवागीश। श्लोक 4701 षट्चक्रदीपिका (टीका) - पूर्णानन्द विरचित षट्चक्र पर यह रामनाथ सिद्धान्त कृत टीका है। यह कौलोपासना से सम्बद्ध तन्त्र ग्रंथ है। षट्चक्रनिरूपणम् - ले.- पूर्णानन्द। ये श्रीतत्त्वचिन्तामणि के आरम्भिक छह अध्याय हैं। इस पर दो टीकाएं हैं। (1) चक्रदीपिका, रामवल्लभ (नाथ)कृत, (2) षट्चक्रक्रमदीपिनी, श्रीनन्दरामकृत। यह कालीचरण, शंकर, और विश्वनाथ विरचित
षट्पदी - ले.- विट्ठल दीक्षित । षट्पद्यमाला - ले.-श्रीरामराम भट्टाचार्य। विषय- 108 शार्दूलविक्रीडित छन्दों से नाडियों के नाम, स्थान और वर्ण आदि का वर्णन। षट्शाम्भवरहस्यम् - श्लोक- लगभग 2210। षट्संदर्भ - ले.-जीव गोस्वामी। चैतन्य मत के एक मूर्धन्य आचार्य। भक्ति-शास्त्र के मौलिक तत्त्वों का प्रतिपादन करने वाला एक उत्कृष्ट कोटि का यह ग्रंथ है। भागवत विषयक 6 प्रौढ निबंधों का यह अति उत्कृष्ट समुच्चय है। इस पर स्वयं ग्रंथकार (जीव गोस्वामी) ने ही "सर्वसंवादिनी" नामक पांडित्यपूर्ण व्याख्या लिखी है। षडशीति (या आशौचनिर्णय) - ले.-कौशिकादित्य यल्लंभट्ट । जनन-मृत्यु के अशौच पर 86 श्लोक एवं सूतक, सगोत्राशौच, असगोत्राशौच, संस्काराशौच एवं अशौचापवाद पर 5 प्रकरण । टीका- अघशोधिनी, लक्ष्मीनृसिंह द्वारा। (2) शुद्धिचन्द्रिका, नन्दपण्डित द्वारा। षडाम्नायमंजरी - श्लोक- 1500। षऋतुवर्णनम् - ले.-विश्वेश्वर । षड्दर्शनचिन्तनिका - यह पत्रिका संस्कृत-मराठी में मुंबई-पुणे से सन 1877 से प्रकाशित की जाती थी। इस पत्रिका का प्रचार पाश्चात्य देशों में भी था। इसमें प्राचीन दार्शनिक पद्धतियों का विवेचन प्रकाशित किया जाता था।
386/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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