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घर्घरकण्ठी पूछती है कि विवाह के बिना सन्तानोत्पत्ति कैसी। विनोद विज्ञान का हवाला देता है। दोनों के विवाद में घर्घरकण्ठी की सहायता हेतु महिला परिषद् की नेत्री जम्बालजिनी आकर अपनी दशसूत्री योजना सुनाती है। विनोद तथा घर्घरकण्ठी में गर्भधारण और सन्तान-पालन के प्रश्न को लेकर विवाद छिडता है। दोनों ही उसके लिए अनुत्सुक हैं। इतने में एक नपुंसक को शल्यक्रिया से सन्तानोत्पादन योग्य बनाने वाले डाक्टर से भेंट होती है यह जानकर कि ये दोनों गर्भधारण नही चाहते, डाक्टर प्रस्ताव रखता है कि दोनों में से किसी एक का प्रजनन अंग निकालकर उस नपंसक के शरीर में लगाया जायें। फिर दोनों डरके मारे कहते हैं कि उनका विवाह निश्चित हुआ है। ऑपरेशन से भयभीत नपुंसक भी उन्हीं के पक्ष में साक्षी देता है। डाक्टर प्रशासनिक विज्ञान अभ्युदय विभाग से आया है, अतः असत्य शीघ्र ही खुल जायेगा, इस भय से दोनों आपस में ही विवाह पक्का कर लेते हैं। नपुंसक उन्हें बधाई देता है। अन्त में भेद खुलता है कि विवाह योजक घटक ने नपुंसक वाली घटना झूठी गढी थी। विधिविवेक - ले.-मंडन मिश्र। ई. 7 वीं शती (उत्तरार्ध) विषय- मीमांसा दर्शन।
2) ले.- रामेश्वर। विधुराधानविचार - ले.-नीलकण्ठ चतुर्धर। पिता- गोविन्द । माता- फुल्लांबिका। विनायकपूजा - ले.-रामकृष्ण विनायक शौचे। रचना- ई. 1702 में। विनायक-वीरगाथा - ले.-डॉ. गजानन बालकृष्ण पळसुले। पुणे विश्वविद्यालय में संस्कृत प्राध्यापक। प्रस्तुत पुस्तक में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर के जीवन की वीरतापूर्ण कथाओं का संग्रह है। शारदा प्रकाशन, पुणे-301 विनायकवैजयन्ती (अपरनाम- स्वातंत्र्यवीरशतकम्) - ले.डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर। नागपुर निवासी। स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी की 75 वीं वर्षगांठ के महोत्सव प्रीत्यर्थ विरचित खंडकाव्य। मराठी अनुवाद सहित स्वाध्याय मंडल किलापारडी (गुजरात) द्वारा सन 1956 में प्रकाशित । विनायकशान्ति पद्धति - श्लोक- 1000। विनायकसंहिता - भार्गव-ईश्वर संवादरूप। आठ पटलों में पूर्ण। विषय- विनायक मंत्रों द्वारा स्तभंन , मोहन, मारण, उच्चाटन आदि तांत्रिक षट्कर्म । विनोदलहरी - कवि- माधव नारायण डाउ। विदर्भ में दिग्रस गांव के निवासी वकील। हरि-हर तथा उमा-रमा का परिहास गर्भ संवाद। सामान्य व्यक्ति के जीवन के सुख दुखों की गहराई का हृदयस्पर्शी चित्रण तथा सांसरिक जीवन सुखी करने का परस्पर आचारात्मक उपाय का वर्णन इसका विषय है।
काव्य के 5 तरंग हैं। सुहृत्प्रलाप, दर्पदलन, अनुताप, प्रियसंगम तथा उपशम। 300 श्लोक। शब्दालंकार नैपुण्य तथा उच्च कोटि का विनोद इसकी विशेषता। कवि के चचेरे भाई ने इस काव्य पर टीका लिखी है। विन्स्टन चर्चिल - ले.-श्री.वा.ना. औदुंबरकर शास्त्री। सुबोध संस्कृत गद्य में श्रीमान् विन्स्टन चर्चिल, जो द्वितीय महायुद्ध मे इंग्लैंड के प्रधानमंत्री थे, का चरित्र । शारदा प्रकाशन, पुणे- 30। विपरीतप्रत्यङ्गिरा - श्रीमहादेव वेदान्तवागीश द्वारा संगृहीत । विषय- कालिका की प्रलयकालीन मूर्ति के ध्यान, पूजापद्धति इ.। विप्रपंचदशी - ले.-पं. तेजोभानु । विबुधकण्ठभूषणम्- ले.-वेंकटनाथ । यह गृह्यरत्न पर टीका है। विबुधमोहनम् (प्रहसन)- ले.-हरिजीवन मिश्र। ई. 17 वीं शती। कथासार- सकलागमाचार्य की कन्या साहित्यमाला का विवाह अखण्डानन्द से निश्चित होता है। नायिका का भाई पिता की आज्ञानुसार राजसभा में उपस्थित होता है। वहां शास्त्रचर्चा में सभी दार्शनिकों को अखण्डानन्द परास्त करता है। विबुधानंदप्रबंध-चंपू- ले.-वेंकट कवि। पिता- वीरराघव । समय- 18 वीं शती के आसपास। ये वैष्णव थे। इन्होंने प्रस्तुत काव्य के आरंभ में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन करने वाले महाकवि वेदांतदेशिक की वंदना की है। इस चंपूकाव्य की कथा काल्पनिक है जिसमें बालप्रिय व प्रियवंद नामक व्यक्तियों की बादरिकाश्रम- यात्रा का वर्णन है जो मकरंद व शीलवती के विवाह में सम्मिलित होने जा रहे हैं। दोनों ही यात्री शुक हैं। विभागतत्त्वम् (या तत्वविहार)- ले.-रामकृष्ण। पितानारायणभट्ट । ई. 16 वीं शती। विषय- अप्रतिबंध एवं सप्रतिबंध दाय, विभागकाल, अपुत्रदायादक्रम, उत्तराधिकार इत्यादि । विवेचन इसमें मिताक्षरा पर आधारित है। विभागरत्नमालिका - ले.-गुरुराम। मूलेन्द्र। (उत्तर अर्काट जिला) के निवासी। ई. 16 वीं शती। विभागसार - ले.-विद्यापति । भवेश के पुत्र कंदर्पनारायण के आदेश से प्रणीत । विषय- दायलक्षण, विभागस्वरूप, दायानर्ह, अविभाज्य, स्त्रीधन, द्वादशविध पुत्र, अपुत्रधनाधिकार, संसृष्टिविभाग इत्यादि। विभूतिदर्पण - श्लोक- 500। विभूतिमाहात्म्यम् - ले.-प्रा. सुब्रह्मण्य सूरि। विमतभंजनम् - ले.-अप्पय्य दीक्षित । एदैय्यातुमंगलम् निवासी। विषय- वैष्णव दर्शन का खण्डन और शैवमत की स्थापना । विमर्शदीपिका- ले.-शिव उपाध्याय। यह विज्ञान भैरव की टीका है। विमर्शिनी - तन्त्रसमुच्चय की व्याख्या। श्लोक- 1500।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /337
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