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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वामकेश्वरतन्त्र टिप्पणी - टिप्पणी का नाम है अर्थरत्नावली, और लेखक हैं, विद्यानन्द। श्लोक 1600। वामकेश्वर-तन्त्र-दर्पणः - ले.- विद्यानन्दनाथ । वामकेश्वर तन्त्र टीका - ले.- मुकुन्दलाल। वामकेश्वर तन्त्र टीका - ले. - सदानन्द। वामकेश्वर तन्त्र विवरणम् - ले.- जयद्रथ । श्लोक- 725 । वामनकारिका - स्वादिरगृह्यसूत्र पर आधारित एक श्लोकबद्ध विशाल ग्रंथ। वामनपुराणम् - अठारह महापुराणों में से परंपरानुसार 14 वां पुराण। पुलस्त्य ऋषि ने यह सर्व प्रथम नारद को सुनाया। बाद में नारद ने नैमिषारण्य में अन्य ऋषियों को सुनाया। विद्वानों के मतानुसार इसका निर्माणकाल इ.स. 100-200 वर्ष रहा होगा किन्तु डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल इसका निर्माण काल इ.स. सातवीं शती मानते हैं। उनके मतानुसार हर्षवर्धन के काल देश के विभिन्न सम्प्रदायों की स्थिति का वर्णन तथा गुप्तकालीन भौगोलिक व धार्मिक स्थिति एवं सामाजिक रीति-रिवाजों का इस पुराण में विशेष विवेचन किया गया है। इसकी रचना प्रायः कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई होगी क्योंकि इसमें उस प्रदेश के अनेक तीर्थ-स्थलों की महत्ता भी बताई गई है। प्रस्तुत पुराण में 10 सहस्र श्लोक एवं 92 अध्याय हैं, तथा पूर्व व उत्तर भाग के नाम से दो विभाग किये गए है। इस पुराण में 4 संहिताए हैं : माहेश्वरी संहिता, भागवती संहिता, सौरी संहिता और गाणेश्वरी संहिता। इसका प्रारंभ वामनावतार से होता है, तथा कई अध्यायों में विष्णु के अन्य अवतारों का वर्णन है। विष्णुपरक पुराण होते हुए भी इसमें साम्प्रदायिक संकीर्णता नहीं है। इसी लिये विष्णु की अवतार गाथा के अतिरिक्त इसमें शिव-माहात्म्य, शैवतीर्थ, उमा-शिव विवाह, गणेश का जन्म तथा कार्तिकेय की उत्पत्ति की कथाएं दी गई है। इस पुराण में वर्णित शिव-पार्वती आख्यान का "कुमारसंभव" के साथ विस्मयजनक साम्य है, अतःकुछ विद्वानों का कहना है कि कालिदास के कुमारसंभव से प्रभावित होने के कारण इसका रचनाकाल कालिदासोत्तर युग है। वेंकटेश्वर प्रेस से प्रकाशित प्रति में नारदपुराणोक्त विषयों की पूर्ण संगति नहीं दीखती। पूर्वार्ध के विषय तो पूर्णतः मिल जाते हैं, किन्तु उत्तरार्ध की 4 संहिताएं इस प्रति में नहीं हैं। इन संहिताओं की श्लोकसंख्या 4 सहस्र है। प्रस्तुत पुराण की विषय सूचि इस प्रकार है :- कूर्मकल्प के वृत्तांत का वर्णन, ब्रह्माजी के शिरश्छेद की कथा, कपाल-मोचन-आख्यान, दक्ष-यज्ञ-विध्वंस, मदन-दहन, प्रह्लाद-नारायण युद्ध, देवासुर संग्राम, सुकेशी तथा सूर्य की कथा, काम्यव्रत का वर्णन, दुर्गाचरित्र, तपतीचरित्र, कुरुक्षेत्र का वर्णन, पार्वती की कथा, जन्म व विवाह, कौशिकी उपाख्यान, कुमारचरित, अंधक-वध, सांध्योपाख्यान, जाबालिचरित, अंधक एवं शंकर का युद्ध, राजा बलि की कथा, लक्ष्मीचरित्र, त्रिविक्रम चरित्र, प्रह्लाद की तीर्थयात्रा, धुंधु-चरित, प्रेतोपाख्यान, नक्षत्रपुरुष की कथा, श्रीदामाचरित- उत्तरभाग-माहेश्वरी संहिता, श्रीकृष्ण व उनके भक्तों का चरित्र। भागवती संहिता- जगदंबा के अवतार की कथा। सौरी संहिता- सूर्य की पापनाशक महिमा का वर्णन । गाणेश्वरी संहिता- शिव एवं गणेश का चरित्र । वामनशतकम् - मूल तेलगु काव्य का अनुवाद। अनुवादकचिट्टीगुडुर वरदाचारियर। वामाचारमतखण्डनम् - ले.-भडोपनामक काशीनाथभट्ट। पिता जयराम भट्ट। श्लोक- 206 | विषय- द्विजों के किए वामाचार कदापि पालनीय नहीं है, अपितु शूद्रों को ही इसका पालन करना चाहिये, यह सिद्ध करने के लिए आकर ग्रंथों के प्रमाण वचन इसमें उद्धृत किये गये हैं। वामाचारसिद्धान्त- ले.-महेश्वराचार्य। पिता- विश्वेश्वर। विषयकुलधर्मों के अनभिज्ञ शिष्य के लिए कुलधर्म-पद्धति प्रदर्शित की गई है। वामाचार-सिद्धान्तसंग्रह - ले.-ब्रह्मानन्दनाथ। भडोपनामक काशीनाथ ने वामाचारमतखण्डन नाम का जो ग्रंथ वामाचार खण्डन के विषय में लिखा है, उसका खण्डन करते हुए वामाचार-सिद्धान्त की पुष्टि इसमें की गई है। वायुपुराणम् - कुछ विद्वान् इसकी गणना अठारह महापुराणों में नहीं करते। विष्णुपुराण में दी गई पुराणों की सूची के अनुसार इसका चौथा क्रमांक है, जब कि कुछ विद्वानों के अनुसार शिवपुराण का क्रमांक चौथा है। मतभेदों के बावजूद यह निर्विवाद है कि शिव तथा वायु दोनों पुराण अलग हैं तथा दोनों के प्रतिपाद्य विषय भी अलग हैं। वायु द्वारा कथन किये जाने के कारण इसका नाम वायुपुराण पडा किन्तु शैवतत्त्वों का प्रतिपादन होने से इसका अन्तर्भाव शैव पुराणों में होता है। इसमें 24 हजार श्लोक हैं। वायुपुराण का उल्लेख "द्वादश साहस्री संहिता" के रूप में भी किया गया है। तात्पर्य यही है कि मूल ग्रंथ में 12 हजार श्लोक रहे होंगे और बाद में अनेक अध्याय इसमें जोडे गये। इसमें 112 अध्याय चार खंडों में विभाजित हैं जिन्हें (1) प्रक्रिया (2) अनुषंग (3) उपोद्धात व (4) उपसंहार-पाद कहते हैं। अन्य पुराणों की भांति इसमें भी सृष्टि क्रम के विस्तारपूर्वक वर्णन के पश्चात् भौगोलिक वर्णन है, जिनमें जंबू द्वीप का विशेष रूप से विवरण तथा अन्य द्वीपों का कथन किया गया है। तदनंतर अनेक अध्यायों में खगोल, युग, ऋषि, तीर्थ तथा यज्ञ इत्यादि विषयों का वर्णन है। इसके 60 वें अध्याय में वेद की शाखाओं का विवरण है, और 86 व 87 वें अध्यायों में संगीत का विशद विवेचन किया गया है। इसमें कई राजाओं के वंशों का वर्णन है तथा प्रजापति वंश-वर्णन, कश्यपीय, प्रजासर्ग व ऋषिवंशों के अंतर्गत प्राचीन बाह्य वंशों का इतिहास दिया गया है। इसके संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/327 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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