SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मपूजा, पंचायतन-पूजा इ.। अनुवादक- आप्पाशास्त्री राशिवडेकर। ललितार्चनचन्द्रिका-रहस्यम् - श्लोक- 25001 लिखितस्मृति - ले.-जीवानन्द । आनन्दाश्रम द्वारा प्रकाशित । ललितार्चनपद्धति - ले.- चिदानन्दनाथ । गुरु- प्रकाशानन्दनाथ । इसमें वसिष्ठ एवं अन्य ऋषि, लिखित ऋषि से चातुवर्ण्यधर्म पूर्व और उत्तर दो परिच्छेदों में विभक्त है। एवं प्रायश्चित्तों के प्रश्न पूछते हुए उल्लिखित हैं। ललितार्चनविधि - ले.-निरंजनानन्दनाथ। श्लोक- 1325 । लिंगपुराणम् - पारंपारिक क्रमानुसार 11 वां पुराण। इसका 2) ले.- भासुरानन्दनाथ। श्लोक- 2800 । प्रतिपाद्य विषय है विविध प्रकार से शिवपूजा के विधान का ललितासहस्रनाम (सटीक) - ब्रह्मपुराण के अन्तर्गत। प्रतिपादन व लिंगोपासना का रहस्योद्घाटन। इस पुराण से श्लोक- 231। इसका एक संस्करण, निर्णय सागर प्रेस, मुंबई विदित होता है कि भगवान् शंकर की लिंग रूप में से पूजा से प्रकाशित हो चुका है। इस पर भास्करराय की व्याख्या उपासना करने पर ही अग्निकल्प में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष है। डॉ. इलपावलूरी पांडुरंगरावकृत हिंदी विवेचन के साथ की प्राप्ति होती है। अक्षरभारती (मोतीबाग नई दिल्ली) से इसका प्रकाशन हुआ है। _इस पुराण में श्लोकों की संख्या 11 सहस्र तथा अध्यायों ललितासहस्त्राक्षरीमन्त्र - श्रीपुराण से गृहीत । श्लोक- 100 । की संख्या 163 है। इसके 2 विभाग किये गये हैं- पूर्व ललितास्तवरत्नम् - ले.-दुर्वासा । (अध्याय 108) व उत्तर (अध्याय- 55)। पूर्व भाग में शिव द्वारा ही सृष्टि की उत्पत्ति का कथन किया गया है तथा ललितोपाख्यानम् - महालक्ष्मीतन्त्रान्तर्गत। श्लोक- 540।। वैवस्वत मन्वंतर से लेकर कृष्ण की उत्पत्ति का एवं कृष्ण के लवणमन्त्रप्रयोगविधि - ले.-सदाशिव दशपुत्र। पितामह समय तक के राजवंशों का वर्णन है। शिवोपासना की प्रधानता विष्णु। पिता- गदाधर। श्लोक- 3332 | विषय- प्रमाणों द्वारा होने के कारण इस में विभिन्न स्थानों पर उन्हें विष्णु से महान् शिवजी की श्रेष्ठता का प्रतिपादन । मूर्ति के भेद से देवता की सिद्ध किया गया है। प्रस्तुत पुराण में भगवान् शंकर के 28 मन्त्रव्यवस्था, शिव के अतिरिक्त अन्य देवताओं के भजन में अवतार वर्णित हैं तथा शैव तंत्रों के अनुसार ही पशु, पाश दोष। शिव-पूजा का माहात्य, लिंगमाहात्य, पद्मराग, काश्मीरज, और पशपति का वर्णन है। इस में लिंगोपासना के संबंध में पुष्पराग, तथा विद्रुमादिमय लिंगों की पूजा का भिन्न भिन्न एक कथा भी दी गई है कि किस प्रकार शिव के वनवास फल, पारद, बाण, हेम आदि लिंगों की क्रमशः ब्राह्मण आदि करते समय मुनि-पत्नियां उनसे प्रेम करने लगी और मुनियों के लिए मंगलप्रदता, अधिकारी भेद से अन्य प्रकार के लिंगों ने उन्हें शाप दिया। इसके 92 वें अध्याय में काशी का की आवश्यकता, कलियुग में पार्थिव लिंग की प्रधानता, विशद विवेचन है तथा उससे संबद्ध अनेक तीर्थों के विवरण भिन्न-भिन्न कामनाओं से लिंगपूजा मे विशेष इ.। दिये गये हैं। इसमें उत्तरार्थ के अनेक अध्याय गद्य में ही लवणश्राद्धम् - विषय- मृत्यु के उपरान्त चौथे दिन मृत को । लिखित हैं और 13 वें अध्याय में शिव की प्रसिद्ध अष्ट लवण की रोटियों का अर्पण। मूर्तियों के वैदिक नाम उल्लिखित हैं। लांगूलोपनिषद् - अथर्ववेद से सम्बन्धित गद्यात्मक उपनिषद् । इसमें तंत्रविद्या का विवेचन है। इसमें हनुमान् के अनेक इसकी रचना समय के बारे में अभी तक कोई सुनिश्चित मत स्थिर नहीं हो सका हैं। कतिपय विद्वान इसका रचनाकाल पराक्रमों का वर्णन देकर शत्रुनाश, स्वास्थ्यलाभ, दुःखनिवारण, विष-नाश, भूतप्रेतबाधा से मुक्ति के लिये हनुमान की आराधना 7 वीं या 8 वीं शती मानते हैं। इसमें कल्कि और बौद्ध की विधि बताई गयी है। अवतारों के भी नाम हैं तथा 9 वें अध्याय में योगांतरायों का जो वर्णन किया गया है वह योगसूत्र के "व्यासभाष्य" लाट्यायनसूत्रम् - सामवेद की कौथुम शाखा का एक श्रौतसूत्र । से अक्षरशः मिलता जुलता है। "व्यासभाष्य" का रचनाकाल इसके कुल दस अध्याय हैं जिनमें सोमयाग के सामान्य नियमों, षष्ठ शतक है। इससे भी लिंग पुराण के समय पर प्रकाश एकाहयाग, विविध यज्ञों तथा सत्रों का विवेचन है। रामकृष्ण पडता है। इसका निर्देश अलबेरुनी के ग्रंथ में तथा उसके दीक्षित, सायण व अग्निस्वामी ने इस पर भाष्य लिखे हैं। परवर्ती लक्ष्मीधर भट्ट के "कल्पतरु" में भी प्राप्त होता है। लालावैद्यम् - ले.-स्कन्द शंकर खोत। नागपुर से प्रकाशित । अलबेरुनी का समय 1030 ई. है। "कल्पतरु" में "लिंगपुराण' अंकसंख्या- तीन । प्रहसनात्मक रचना। कथासार- नायक लाला के अनेक उद्धरण प्रस्तुत किये गए हैं। इन्हीं आधारों पर वैद्य, पिता के पंजीयन प्रमाणपत्र से ही काम चलाता है। कतिपय विद्वानों ने "लिंगपुराण" का रचनाकाल 8 वीं और उसके साथी डुण्डुम वैद्य, जलवैद्य तथा भस्मवैद्य भी झूठी 9 वीं शती का मध्य स्वीकार किया है किंतु यह समय अभी दवाएं देकर पैसा बटोरते हैं। उनके अनेक हास्योत्पादक कृत्यों प्रमाणिक नहीं माना जा सकता। इस बारे में सम्यक् अनुलशीलन के पश्चात् अन्त में लाला वैद्य दण्डित होता है। अपेक्षित है। प्रस्तुत ग्रंथ शैव व्रतों व अनुष्ठानों का प्रतिपादन लावण्यमयी - बंकिमचंद्र कृत बंगाली उपन्यास का अनुवाद।। करने वाला अत्यंत महनीय पुसण है। इसमें शैवदर्शन के 316 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy