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सदाशिव दीक्षित।
2) गोविंद। पिता- पुरुषोत्तम ।
3) ले.- नारायणभट्ट । पिता- रामेश्वर । ई. 16 वीं शती। लक्ष्मणाभ्युदयम् - ले.- गणेशराम शर्मा । झालवाडा (राजस्थान) स्थित राजेन्द्र महाविद्यालय में संस्कृत के प्राध्यापक। डुंगरपुर के राजा लक्ष्मणसिंह का चरित्र-वर्णन इस काव्य का विषय है। लक्ष्मीकल्याणम् (समवकार)- ले.- रामानुजाचार्य । लक्ष्मीकल्याणम् (नाटिका)- ले.- सदाशिव दीक्षित। 18 वीं शती। विषय- पृथ्वी पर कन्या के रूप में अवतार लेकर लक्ष्मी का विष्णु के साथ विवाह। अंकसंख्या- चार। यह रचना कुमारसम्भव से प्रभावित है। लक्ष्मीकुमारोदयम् - कवि- रंगनाथ। कुम्भकोणम् के लक्ष्मीकुमार ताताचार्य नामक सत्पुरुष का चरित्र इसमें वर्णित है। लक्ष्मीतन्त्रम् - नारदपंचरात्र के अन्तर्गत। श्लोक - 3000। अध्याय 50। विषय - विष्णु की शक्ति लक्ष्मी की सविस्तर पूजा और स्तुति । लक्ष्मी-देवनारायणीयम् - ले.- श्रीधर। अठाहवीं शती का पूर्वार्ध। अम्पलप्पुल (त्रावणकोर) के राजा देवनारायण को नायक बनाकर की हुई रचना। अंकसंख्या-पांच। देवनारायण द्वारा आयोजित विचित्र-यात्रा के उत्सव में अभिनीत । रूपगोस्वामी के नाटकों से प्रभावित। प्रस्तावना के स्थान पर "स्थापन" शब्द का प्रयोग। प्राकृतिक वर्णनों की बहुलता। कथासारनन्दपुर निवासी दिनराज की पुत्री लक्ष्मी पर नायक देवनारायण लुब्ध हैं। वारिभद्रा नदी के तट पर स्थित वासुदेव के मन्दिर में नायक नायिका को प्रेमपत्र भेजती है। नायक उसे भद्रनन्दन प्रदेश में बुलाता है। नायक भद्रनन्दन से राक्षसराज को निष्कासित करता है। राक्षसराज प्रतिज्ञा करता है कि वह नायक की पत्नी का हरण करेगा।
लक्ष्मी नायक से मिलने वहां पहुंचती है। राक्षस वनगज का रूप धारण कर पूरी भूमि उजाड डालता है। ज्यों ही नायक उसे मारने दौडता है, राक्षस लक्ष्मी का अपहरण करता है। राक्षक तथा नायक में युद्ध होता है जिसमें राक्षस मारा जाता है परंतु प्रेमिका के वियोग में नायक विह्वल होता है। तब आकाशवाणी होती है कि नायिका अपने पिता के पास सकुशल है। अन्ततो गत्वा नायक देवनारायण नायिका लक्ष्मी के साथ विवाहबद्ध होता है। लक्ष्मीधरप्रतापम् - ले.- शिवकुमार शास्त्री। काशीनिवासी। जन्म इ. स. 1848। मृत्यु 1919। दरभंगा राजवंश का समग्र वर्णन इस काव्य में किया है। लक्ष्मीनारायणचरितम् - ले.- वरदादेशिक । पिता - श्रीनिवास । ई. 17 वीं शती। लक्ष्मीनारायणपंचांगम्- रुद्रयामल के अन्तर्गत । श्लोक- 500।
लक्ष्मीनारायणा_कौमुदी- ले.- शिवानन्द गोस्वामी। 15 प्रकाशों में पूर्ण। लक्ष्मीनृसिंहविधानम् (सटीक) - श्लोक - लगभग 586 । लक्ष्मीनृसिंहशतकम् - ले.- पारिथीयूर कृष्ण। 19 वीं शती । लक्ष्मीनृसिंहसहस्राक्षरीमहाविद्या - श्लोक-100। लक्ष्मीपंचागंम् - ईश्वरतन्त्रम् में उक्त। श्लोक-658 । लक्ष्मीपटलम् - श्लोक- 1401 लक्ष्मीपद्धति - डामरतन्त्रान्तर्गत। श्लोक-751 लक्ष्मीपूजनम् - श्लोक - 701 (लक्ष्मीयन्त्रसहित) लक्ष्मीलहरी - ले.- जगन्नाथ पण्डितराज। ई. 16-17 वीं शती। 41 श्लोकों का स्तोत्रकाव्य। लक्ष्मीविलासम् - ले.- विश्वेश्वर पाण्डेय। पाटिया (अलमोडा जिला) ग्राम के निवासी। ई. 18 वीं शती (पूर्वार्ध)। लक्ष्मीवासुदेवपूजापद्धति - श्लोक- 200। लक्ष्मीव्रतम् (लक्ष्मीचरितम्) - ले.-श्रीराम कविराज । अध्याय51 लक्ष्मीश्वरचम्पू - ले.- अनन्तसूरि । लक्ष्मीसपर्यासार - ले.- श्रीनिवास। लक्ष्मीसहस्रम् - ले.-वेंकटाध्वरी। ई. 17 वीं शती। (विश्वगुणादर्शचंपूकार) एक रात्रि में रचित, अलंकारयुक्त और भक्तिरसपूर्ण स्तोत्रकाव्य। 2) लेखिका- त्रिवेणी। प्रतिवादिभयंकराचार्य की पत्नी। लक्ष्मीस्वयंवरम् (अपरनाम विबुधानन्दम्) - ले.-प्रधान वेङ्कप्प। ई. अठारहवीं शती। श्रीरामपूर के निवासी। प्रथम अभिनय श्रीरामपूर में तिरुवेङ्गलनाथ के महोत्सव में। अंकसंख्यातीन। प्रत्येक अंक के पहले विष्कम्भक है। प्रधान रस शृङ्गार। कथासार - प्रणयकलह के कारण लक्ष्मी ने समुद्रकन्या के रूप में पुनर्जन्म लिया है। समुद्र उसका स्वयंवर कराते हैं। राक्षस, विद्याधर, इन्द्र, अग्नि, यम, निक्रति, वायु तथा कुबेर को नकार कर लक्ष्मी विष्णु के गले वरमाला डालती है। विष्णु सभी देवों को पारितोषिक देते हैं और नवदम्पती को सभी अमरता का आशीर्वाद देते हैं। लक्ष्मीस्वयंवरम् - ले.-डॉ. वेंकटराम राघवन्। सन 1959 में लक्ष्मीव्रत के अवसर पर आकाशवाणी मद्रास से प्रसारित । प्रेक्षणक (ओपेरा)। समुद्र-मंथन से लेकर लक्ष्मी के विष्णु से विवाह तक की कथावस्तु । लक्ष्मीहृदयम् (लक्ष्मीहृदयस्तोत्रम्)- अथर्वरहस्य से गृहीत । श्लोक 1061 लक्ष्यसंगीतम् ( श्रीमल्लक्ष्यसंगीतम्)- ले.-विष्णु नारायण भातखण्डे। लग्नसारिणी - ले.- दिनकर ।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 313
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