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रुक्मांगदम् (रूपक) - ले.-कणजयानन्द । ई. 18 वीं शती। कीर्तनिया परम्परा की रचना। गीतों से भरपूर । संस्कृत प्राकृत तथा मैथिली गीतों की प्रचुरता इसमें है। रुक्मांगदचरितम् (नाटक) - ले.- रामानुजाचार्य। रुक्मिणीकल्याणम् - ले.- राजचूडामणि। दस सर्गो का महाकाव्य। रुक्मिणीकल्याणम् - ले.-प्रा. सुब्रह्मण्यसूरि । रुक्मिणीकृष्णविवाहम् - कवि-तंजौर के नायकवंशीय राजा रघुनाथ। रुक्मिणीपरिणयम् - ले.-रमापति उपाध्याय। ई. 18 वीं शती। पल्ली-निवासी। दरभंगा के राजा नरेन्द्रसिंह की कमलेश्वरी स्थान यात्रा के अवसर पर प्रथम अभिनय। अंकसंख्या- छह । प्रस्तावना में आश्रयदाता नरेन्द्रसिंह का विस्तृत वर्णन है। यह एक किरतनिया नाटक है।इसमें निवेदन प्रायः पद्यात्मक मैथिली बोली में है। उच्च पात्रों का निवेदन संस्कृत तथा मैथिली एकोक्तियों का प्रचुर प्रयोग है। नाट्योचित शब्दावली, छोटे छोटे वाक्य, गद्यात्मक संवादों में मैथिली का प्रयोग नहीं। स्त्रियों के संवाद शौरसेनी प्राकृत में और कहीं कहीं संस्कृत में भी है। रुक्मिणी के स्वयंवर तथा विवाह की कथा अंकित की है। तीरभुक्ति 1, एलेनगंज रोड, इलाहाबाद से प्रकाशित। अन्य विशेषताएं- नयो पारिभाषिक शब्दावली। प्रवेशक के स्थान पर "प्रस्तावना", अङ्क समाप्ति के स्थान पर "अङ्कस्थान", भूमिका के स्थान पर "विष्कभक" शब्दों का प्रयोग। पंचम अङ्क में लक्ष्मी का प्रवेश मूक पात्र के रूप में है। जो संवादों द्वारा नहीं अपि तु नेपथ्य से सूचना पाकर चलते हैं ऐसे दृश्य रंगपीठ पर लाये हैं। सूत्रधार तथा नटी के निर्गमन के पश्चात् उनके द्वारा प्रवर्तित प्रियवंद तथा उसकी पत्नी मंजु के संवादों में भूमिका प्रस्तुत है। ये सूत्रधार के सहकर्मी, परन्तु नाटक कथा के पात्र नहीं हैं। द्वितीय अंक में केवल वर्णन, दृश्य का सर्वथा अभाव है (2) लेरामवर्मा। 1757-1765 ई.। श्रीकृष्ण -रुक्मिणी के विवाह की कथा निबद्ध। अंकसंख्या पांच। रूपक तथा उत्प्रेक्षाओं का प्रचुर प्रयोग। अनुप्रास का विशेष प्रयोग। 3) ले.- विश्वेश्वर पांडे। 4) ले.- लक्ष्मण गोविंद। 5) ले.- आत्रेय वरद। ई. 19 वीं शती। रुक्मिणीपरिणयचंपू - रचयिता अम्मल (या अमलानंद) और वेंकटाचार्य। ये दोनों प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य थे। इस चंपू-काव्य में रुक्मिणी के विवाह की कथा अत्यंत प्रांजल भाषा में वर्णित है जिसका आधार “हरिवंशपुराण" एवं "श्रीमद्भागवत" की तत्संबंधी कथा है। (2) कवि- रत्नखेट श्रीनिवास दीक्षित । ई. 16-17 वीं शती। 3) ले.- चक्र कवि, अम्बालोकनाथ के पुत्र। 4) ले.- गोवर्धन । घनश्याम के पुत्र । रुक्मिणीपाणिग्रहणम् • ले.- गोविन्द रत्रवाणी।
रुक्मिणीवल्लभपरिणयचम्पू - ले.- नरसिंह तात। रुक्मिणीविजयम् - ले.- वादिराज। कर्नाटक निवासी। रुक्मिणीस्वयंवरम् (नाटक) - ले.- रामकिशोर। ई. 19 वीं शती। अंकसंख्या- सात। रुक्मिणीस्वयंवर-प्रबन्ध - ले.- कवि-येडवाथि कोडमानीय नम्बुद्रिपाद। रुक्मिणीहरणम् (महाकाव्य) - ले.-पं. काशीनाथ शर्मा द्विवेदी। बीसवीं शती के प्रसिद्ध महाकाव्यों में से एक । प्रस्तुत महाकाव्य का प्रकाशन 1966 ई. में हुआ है। इसमें श्रीमद्भागवत की प्रसिद्ध कथा के आधार पर श्रीकृष्ण व रुक्मिणी के परिणयन का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत महाकाव्य की रचना शास्त्रीय परिपाटी के अनुसार हुई है और इसमें विविध छंदों का प्रयोग किया गया है। इस में कुंडिनपुरनरेश राजा भीष्मक का वर्णन, रुक्मिणीजन्म, नारदजी का कुंडिनपुर जाना, रुक्मिणी के पूर्वराग का वर्णन, कुंडिनपुर में शिशुपाल का जाना, रुक्मिणी का हरण करना आदि घटनाओं का वर्णन है। इस महाकाव्य में 21 सर्ग हैं तथा वस्तु-व्यंजना के अंतर्गत समुद्र, प्रभात व षऋतुओं का मनोरम वर्णन किया गया है। 2) काव्य ले.- म.म. हरिदास सिद्धान्तवागीश। ई. 19-20 वीं शती। 3) रुक्मिणीहरणम् (काव्य)- ले.- हेमचन्द्र राय कविभूषण (जन्म 1881) 4) रुक्मिणीहरणम् (नाटक)- ले.- चिन्तामणि। ई. 16 वीं शती। इस नाटक का गुजराती पद्यानुवाद 1873 ई. में मुंबई से प्रकाशित । ब्रिटिश म्यूजियम में इसकी प्रति प्राप्त है। रुक्मिणीमाधवम् (एकांकी रूपक) - ले.- प्रधान वेंकप्प श्रीरामपुर के निवासी। ई. 18 वीं शती।। रुग्विनिश्चय (अपरनाम- निदान) - ले.- माधव। (या माधवकर) ई. 7 वीं शती। पॅथोलॉजी विषयक ग्रंथ। अरबस्तान के खलीफा मन्सूर (ई. 753-774) तथा खलीफा हारुन (786-708) द्वारा इसके अरबी संस्करण हुए। "विजयरक्षित" द्वारा लिखित इसका भाष्य सुविख्यात है। अन्य कतिपय भाष्य उपलब्ध हैं। रुद्रकलशस्थापनविधि - ले.- रामकृष्ण। नारायण के पुत्र । रुद्रकल्पदुम (या महारुद्रपद्धति) - ले.- अनन्त देव। काशी-निवासी। पिता- उद्धव द्विवेदी। रुद्रचण्डी (या रुद्रचण्डिका) - रुद्रयामल के अन्तर्गत हरगौरी-संवादरूप। श्लोक- लगभग 701 विषय- शिवकार्तिकेय के संवादरूप में रुद्रचण्डिका कवच, हर-गौरी संवाद में चण्डीरहस्य, शिव-दुर्गा के संवाद में साधनरहस्य। हर-गौरी संवाद में भिन्नभिन्न वारों में रुद्रचण्डिका की 'भैरवी आदि विभिन्न मूर्तियों के पूजन से भिन्न भिन्न फलों का प्राप्ति इ. । रुद्रचिन्तामणि (या रुद्रपद्धति) - ले.- शिवराम। पिता
310 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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