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मणिशर्मा ने स्वरचित संस्कृत टीका के साथ प्रकाशित किया था। राकागम - ले.- गागाभट्ट। ई. 17 वीं शती। पिता- दिनकर रसेन्द्रचिन्तामणि - ले.- रामचंद्र गुह। विषय- आयुर्वेद । भट्ट। जयदेवकृत चंद्रालोक पर टीका । रसेन्द्रचूडामणि - ले.- सोमदेव। ई. 12-13 वीं शती। यह रागकल्पद्रुम - ले.- पं. कृष्णानन्द व्यास। ई. 19 वीं शती। .
आयुर्वेदीय रस-शास्त्र का प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसके वर्णित विषय विषय- संगीतशास्त्र। हैं- रसपूजन, रसशाला-निर्माणप्रकार, रसशाला-संग्राहण, परिभाषा रागकल्पद्रुमांकुर - ले.- अप्पातुलसी (या काशीनाथ)। मूषापुटयंत्र, दिव्यौषधि, औषधिगण, महारस, उपरस, साधारण समय- ई. 19-20 वीं शती। विषय- संगीतशास्त्र। रस, यत्नधात् तथा इनके रसायनयोग एवं पारद के 18 संस्कार। रागतरंगिणी - ले.- लोचनपण्डित। विषय- संगीतशास्त्र । इस ग्रंथ का प्रकाशन लाहोर से संवत् 1989 में हुआ था। ..
रागतालपारिजात-प्रकाश - ले.- गोविन्द । विषय-संगीतशास्त्र । रसेन्द्रसारसंग्रह - ले.- म.म. गोपालभट्ट। ई. 13 वीं शती। .
रागतत्त्वावबोध - ले.- श्रीनिवासपण्डित । विषय- संगीतशास्त्र । यह आयुर्वेद रस-शास्त्र का अत्यंत उपयोगी ग्रंथ है। इसमें
रागनारायण - ले.- पुण्डरीक विट्ठल, जो हिंदुस्थानी तथा पारद का शोधन, पातन, बंधन, मूर्छन, गंधक, के शोधन
कर्नाटकी संगीत के बडे जानकार थे। ई. 16 वीं शती। मारण आदि का वर्णन है। इसकी लोकप्रियता बंगाल में अधिक है। इसके दो हिंदी अनुवाद हए हैं : 1) वैद्य धनानंद . रागमंजरी - ले.- विट्ठल पुंडरीक। संगीतशास्त्र से संबंधित कृत संस्कृत-हिंदी टीका और 2) गिरिजादयालु शुक्लकृत हिंदी
ग्रंथ। इस ग्रंथ की रचना राजा मानसिंग के आश्रय में हुई। अनुवाद।
इसके पूर्व बुरहानुपूर के राजा बुरहानखान आश्रय में श्री, रसोपनिषद् - श्लोक- 4001 अध्याय (विरतियाँ) 25।
पुंडरीक सद्रागचंद्रोदय नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे। विषय- रसोपनिषद् शास्त्र की शिष्य-परम्परा प्रतिपादन पूर्वक
इस ग्रंथ ने उत्तर हिन्दुस्तानी संगीतपद्धति में फैली अव्यवस्था
को दूर करते हुए, उसे अनुशासनबद्ध स्वरूप प्रदान किया रसायनविधि।
था ।परिणाम स्वरूप संगीतशास्त्रज्ञ के रूप में पुंडरीक की ख्याति रहस्यटीका - ले.-श्रीजयसिंह मिश्र। श्लोक- 345 ।
सर्वत्र फैली। अतः सन 1599 में अकबर बादशाह ने पुंडरीक रहस्यत्रयसाररत्नावली - ले.- रंगनाथचार्य ।
को अपने आश्रय में दिल्ली बुलवा लिया। वहां पर उन्होंने रहस्यदीपिका (अपरनाम-तिलक तथा जयरामी) - ले.
रागमाला तथा नृत्यनिर्णय नामक ग्रंथों की रचना की। इस जयराम न्यायपंचानन । ई.17 वीं शती । काव्यप्रकाश पर टीका।
प्रकार इन ग्रंथों के द्वारा जहां एक ओर संगीतशास्त्र व नृत्य रहस्यनामसहस्रविवृत्ति - ले.- बुद्धिराज। श्लोक- लगभग- कला की श्रीवृद्धि हुई, वहीं पुंडरीक विट्ठल को विपुल सम्मान 3001
भी प्राप्त हुआ। रहस्य-प्रकाश - ले.-जगदीश। ई. 16 वीं शती। काव्यप्रकाश रागमाला - ले.- ग्रंथकार पुंडरीक विट्ठल के इस ग्रंथ की पर टीका।
रचना, बादशाह अकबर के आश्रय में सन् 1599 में हुई। रहस्यातिरहस्यपुरश्चरण - श्लोक- 100 । विषय- श्मशान आदि इस ग्रंथ में विट्ठल पुंडरीक ने रागों के वर्गीकरण हेतु में विशिष्ट पुरश्चरण की विधि।
परिवार-राग-पद्धति अपनाई है। यह पद्धति रागों में दिखाई रहस्यामृतम् (महाकाव्य) - ले.- बाणेश्वर विद्यालंकार। ई. देने वाली स्वर-समानता के तत्त्व पर आधारित है। विद्वानों के 17 वीं शती। विषय- शिव-पार्वती विवाह का कथानक। मतानुसार इस प्रकार रागों के वर्गीकरण की पद्धति अन्य सर्गसंख्या- बीस।
तत्सम पद्धतियों की अपेक्षा अधिक सयुक्तिक है। दाक्षिणात्य रहस्यार्णव - ले.- वनमाली। त्रिगर्त (लाहोर) देशाधिपति
संगीत को ध्यान में रखते हुए पुंडरीक ने एक नवीन पद्धति जयचन्द्र नरेन्द्र की प्रेरणा से विरचित। गुरु- हृदयानन्द । पटल
का निर्माण किया। 2) ले.- क्षेमकर्ण । सन 1570 में रचना। 15, विषय- गुरुक्रमविधान । त्रिविध भाव निर्णय, कुमारीपूजन
3) ले.- कृष्णदत्त कविराज । ई. 16 वीं शती। 4) ले.- जीवराज । (कुमारिका-कल्प) कुचार (समयाचार), पीठपूजाविधि,
रागरत्नाकर - ले.- गंधर्वराज। निशीथपूजापद्धति, पाण्डवमहापूजापद्धति, द्रौपदी-संस्कार, रागलक्षणम् - ले.- रामकवि । पुरश्चर्याक्रम, चिसाडीपटल, बलिदानविधि, विभूति-धारणविधि, रागविबोध - ले.- सोमनाथ । इ.स. 1609 में रचित आर्यावृत्त अन्तर्याग विधि, योगवर्णन, रहस्योक्त, द्रव्यशोधनविधान इ.।। का अच्छा प्रबंध। वीणा के प्रकार तथा उन पर बजाने के विविध तंत्रों का अवलोकन कर यह ग्रंथ संगृहीत किया गया है। लिये रागों के विवरण इसका विषय है। रहस्योच्छिष्टसुमुखीकल्प (नामान्तर-रहस्योच्छिष्ट-गणपति रागविराग (प्रहसन) - ले.- जीव न्यायतीर्थ । जन्म 1894 । कल्प) - शिव-पार्वती संवादरूप। विषय- उच्छिष्टगणपति तंत्र रचनाकाल- सन 1959। कथासार - संगीतविद्वेषी राजा को के ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति का वर्णन।
जब विदित होता है कि संगीत के प्रभाव से राजकुमार पिता
296/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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