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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से ईसा की तीसरी शताब्दी तक माना गया है। युक्तिषष्टिका - ले.- नागार्जुन। विषय - शून्यवाद की 60 याज्ञवाल्क्यस्मृति के टीकाकार - (1) अपरार्क । (2) युक्तियों का प्रतिपादन। इसके उद्धरण अन्याय बौद्ध रचनाओं कुलमणि, (3) देवबोध, (4) धर्मेश्वर, (5) विश्वरूप कृत __ में प्राप्त होते हैं। बालक्रीडा, (6) विज्ञानेश्वरकृत मिताक्षरा, (7) रघुनाथभट्ट, युक्त्यनुशासनम् - ले.-समन्तभद्र। जैनाचार्य। ई. प्रथम शती। (8) मथुरानाथकृत मिताक्षरा। विभावना और वचनमाला पिता- शान्तिवर्मा। उपटीकाएं हैं। युक्त्यनुशासनालंकार - ले.-विद्यानन्द। जैनाचार्य। ई. 8-9 यात्राप्रयोगतत्त्वम् - ले.- हरिशंकर। वीं शती। टीका-ग्रंथ। यादवराघवपाण्डवीयम् (व्यर्थी सन्धान-काव्य) - युगजीवनम् (रूपक) - लेखिका डॉ. रमा चौधुनी। प्रथम ले.-राजचूडामणि। इसमें श्लेष द्वारा कृष्ण, राम एवं पांडवों अभिनय सन 1967 में रामकृष्ण मठ (कलकत्ता ) में। की कथा का एकत्र वर्णन है। दृश्यसंख्या- दस। विषय- श्री रामकृष्ण परमहंस का चरित्र । (2) ले. -अनन्ताचार्य । उदयेन्द्रपुर (कर्नाटक) के निवासी। युगलाङ्गलीयम् (रूपक) - ले.-श्रीशैल ताताचार्य । ई. 19 यादवराघवीयम् (व्यर्थी सन्धान काव्य) - (1) ले. वीं शती। नरहरि। इसमें कृष्ण और राम की कथा श्लेषमय रचना में (2) ले.- कालीपद तर्काचार्य। निवेदित है। युधिष्ठिर (क्षमाशीलो युधिष्ठिरः) - ले.-ठाकुर ओमप्रकाश (2) ले.- वेंकटाध्वरी। शास्त्री। युधिष्ठिर के छात्र जीवन के तीन प्रसंग तीन दृश्यों यादवविजयम्- कवि - कुन्जुकुथानताम्बिरन्। ई. 18वीं शती। में प्रस्तुत । केरलवासी। युधिष्ठिर-विजयम् (महाकाव्य) - ले. वासुदेव कवि । यादवशेखरचम्पू - ले.-भाष्यकार । केरलनिवासी। यह यमक-काव्य है। इसके यमक क्लिष्ट न यामलाष्टकतन्त्रम्- श्लोक- 4200। अर्थरत्नावली के अनुसार होकर सरल एवं प्रसन्न हैं। यह महाकाव्य 8 उच्छ्वासों में अष्टक के अंतर्गत आठ यामलों के नाम है- (1) ब्रह्मयामल, विभक्त है। इसमें महाभारत की कथा संक्षेप में वर्णित है। (2) विष्णुयामल, (3) रुद्रयामल, (4) लक्ष्मीयामल, (5) इस पर काश्मीर निवासी राजानक रत्नकंठ की टीका प्रकाशित उमायामल, (6) स्कन्दयामल, (7) गणेशयामल और (8) हो चुकी है। टीका का समय 1672 ई. है। जयद्रथयामल। युद्धकाण्डचम्पू - ले.-घनश्याम । ई. 18 वीं शती। यामिनीपूर्णतिलकम् (रूपक)- ले.- पेरी काशीनाथ शास्त्री। युद्धकौशलम् - ले.-रुद्र । 19 वीं शती। युद्धचिन्तामणि - ले.- रामसेवक त्रिपाठी। युक्तिकल्पतरु - ले.-भोजदेव। विषय- शासन एवं राजनीति युद्धजयार्णवतन्त्रम् - ले.-भट्टोत्पल। पटल- 10। शिव-पार्वती के विषयों के अन्तर्गत-दूत, कोष, कृषिकर्म, बल, यात्रा, सन्धि, संवादरूप। विषय- स्वरोदय का प्रतिपादन । विग्रह, नगरनिर्माण, वास्तुप्रवेश, छत्र, ध्वज, पद्मरागादिरत्नपरीक्षा, युद्धजयोत्सव - ले.-गंगाराम। पांच प्रकाशों में पूर्ण । अस्त्र-शस्त्र-परीक्षा, नौका-लक्षण आदि विषयों की चर्चा । स्वयं युद्धजयप्रकाश - ले.-दुःखभंजन। भोज, उशना, गर्ग बृहस्पति, पराशर, वात्स्य, लोकप्रदीप, युद्धप्रोत्साहनम् - ले.- नरसिंहाचार्य । शाङ्गिधर एवं कतिपय पुराणों के प्रमाण दिये गये हैं। कलकत्ता यूरोपीयदर्शनम् - ले.-म.म. रामावतार शर्मा । काशी में प्रकाशित । ओरिएंटल सीरीज द्वारा प्रकाशित । युवचरितम् - ले.-जग्गू शिंङ्गया। ई. 1902-601 युक्तितत्त्वानुशासनम् - ले.-प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज। विदर्भनिवासी। योगकल्पलतिका - ले.-श्रीकृष्णदेव। योगविषयक ग्रंथ । योग का लक्षण यों किया है :- "ऐक्यं जीवात्मनोराहुर्योगं युक्तिप्रबोधम् (नाटक) - ले.-मेघविजय गणी। जैनाचार्य। योगविशारदाः"। अर्थात् योग में निष्णात पुरुष जीवात्मा और ई. 17 वीं शती। इसमें प्रतीकात्मक पात्रों द्वारा स्वमत-विरोधी परमात्मा की एकता (अभेद) को योग कहते हैं। पक्ष का खण्डन करने का प्रयत्न हुआ है। ऋषभदेव केसरीमल श्वेतांबर संस्था (रतलाम) द्वारा प्रकाशित। योगगुह्यम् - ले.-कण्ठनाथ । विषय- तान्त्रिक योग की शिक्षा । युक्तिमुक्तावली - ले.-नागेशभट्ट । केशव मिश्र कृत तर्कभाषा योगचिन्तामणि - ले.-हर्षकीर्ति, ई. 17 वीं शती। की टीका। (2) ले.- धन्वन्तरि। युक्तिरत्नाकर- ले. कृष्णमित्र (कृष्णाचार्य)। योगज्ञानम् - ले.-श्लोक- 50। लिपिकाल वंगसंवत् 1174 । युक्तिवाद - ले.-गदाधर भट्टाचार्य । विषय- पंचतत्त्व-लयप्रकार । संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 285 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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