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इसकी अर्वाचीनता सिद्ध होती है। ऐसे उद्धरणों में "ईश", "कठ", "मुंडक" व "बृहदारण्यक" के उद्धरणों का समावेश है। मैत्रायणीय आरण्यक (बृहदारण्यक- चरकशाखोक्तयजुर्वेदीय)- इस आरण्यक में कुल सात प्रपाठक और उनमें खण्ड संख्या 73 है। यह आरण्यक मैत्रयुपनिषत् नाम से प्रसिद्ध है। मैत्रायणीगृह्यपद्धति - मैत्रायणी शाखा के अनुसार 16 संस्कारों का प्रतिपादन । अध्याय, का नाम पुरुष है। मैत्रायणीय शाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय) - मैत्रायणीय संहिता मुद्रित हुई है। माध्यन्दिन, काण्व, काठक और चारायणीय संहिताओं के समान मैत्रायणीय में भी चालीस अध्याय हैं। इस शाखा के कल्प अनेक हैं। मैत्रायणीय गृह्य और मानवगृह्य में समानता होने के कारण इन्हें एक ही मानने की प्रवृत्ति है। एक ही संहिता को मैत्रायणी, मानव तथा वाराहसंहिता के नाम से उल्लिखित करने का प्रवृत्ति भी दीखती है किन्तु इन तीन शाखाओं के शुल्व सूत्रों में शाखाभेद के कारण पर्याप्त विभिन्नता है। मैत्रायणी-कालापसंहिता (कृष्ण यजुर्वेदीय) - कृष्ण यजुर्वेद की मैत्रायणी संहिता में 4 काण्ड, 54 प्रपाठक तथा 634 मंत्र हैं। इस में उच्चारणचिन्ह नहीं मिलते। 'कालाप' नाम से भी प्रसिद्ध यह शाखा 'चरणव्यूह' के समय से प्रधान शाखा के रूप में मानी जाती रही है। कृष्ण यजुर्वेदकी इन शाखाओं में रुद्र दैवत तथा अन्य अनेक बातों में समानता होने पर भी इसमें शैब-सम्प्रदाय का विशेष महत्त्व है। यह शाखा गुजरात तथा दक्षिण में विशेष प्रसिद्ध है। रामायण तथा पतंजलि के अनुसार प्राचीन काल में इसका बहुत बड़ा महत्त्व था। (चरक- कृष्ण यजुर्वेद की कण्ठक, कपिष्ठल-कठ और मैत्रायणी कालापी शाखाओं की व्यापक परिभाषा 'चरक' है। भाषा की दृष्टि से इनमें परस्पर सम्बन्ध है। इनमें कुछ रूप ऐसे मिलते हैं जो अन्यत्र नहीं हैं। विक्रम-पूर्व तक बहुत दूर तक इसका प्रभाव और प्रचार रहा।) मैत्रेयव्याकरणम् - ले.- आर्यचन्द्र। इस लेखक की यह एक ही रचना उपलब्ध है। विषय- मैत्रेय का भविष्यकथन । एक ही अपूर्ण हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है। उसमें नामनिर्देश नहीं है, किंतु तोखारियन तथा युगुरियन अवशेषों की पुष्पिका में नामनिर्देश है। चीनी भाषा में इसके अनेक अनुवाद उपलब्ध हैं। इनमें से तीन धर्मरक्ष (255-316 ई.) कुमारजीव (402 ई.) तथा ईसिंग (701 ई.) द्वारा संपन्न हुये। जर्मन, तोखारियन, तिब्बती तथा मध्य एशियाई अनुवाद भी उपलब्ध । यह रचना भारत के बाहर विशेष रूप से परिचित है। भावी बुद्ध मैत्रेय का जन्म, स्वरूप तथा स्वर्गीय जीवन संवलित है। इसके अनुसार धार्मिक व्रतों में नाटक भी व्रत रूप में व्यवहृत होता था। मैथिलीकल्याणम् (नाटक)- ले.- हस्तिमल्ल। पिता-
गोविंदभट्ट। जैनाचार्य। ई. 13 वीं शती। (पांच अंक)। मैथिलीयम् (रूपक) - ले.- नारायणशास्त्री (1860-1911 ई.) प्रथम अभिनय कुम्भेश्वर के वसन्तोत्सव में। नायिकाप्रधान। अंकसंख्या- दस। नाट्योचित सरल भाषा, मोहक चरित्र-चित्रण। सहज अनुप्रासों का प्रचुर प्रयोग। भावानुरूप शैली। छायातत्त्व का प्रयोग। राम-कथा के द्वारा लोकजीवन का दर्शन । संविधान का दक्ष प्रस्तुतीकरण इसकी विशेषता है। मैथिलेशचरितम् - कवि रत्नपाणि । दरभंगा के राजवंश का चरित्र । मैसूरसंस्कृतकॉलेज-पत्रिका- प्रकाशन बन्द । मोक्षप्रासाद - ले.- बेल्लमकोण्ड रामराय । मोक्षमन्दिरस्य द्वादशदर्शनसोपानावलि - ले.- श्रीपाद शास्त्री हसूरकर। इ. 287 पृष्ठों के उत्कृष्ट प्रबन्ध में चार्वाक, बौद्ध (वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार, माध्यमिक), जैन, सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा इन 12 दर्शनों का इतना व्यवस्थित परिचय देने वाला अन्य ग्रंथ अर्वाचीन संस्कृत साहित्य में नहीं है। हसूरकर शास्त्री की मुद्रित पुस्तकों का परिचय यथास्थान दिया है। अमुद्रित पुस्तकें इस प्रकार हैं- (1) श्रीवर्धमानस्वामि-चरितम्, (2) श्रीबुद्धदेवचरितम्, (3) राजस्थानसती-नवरत्नहारः (4) महाराष्ट्रसती-नवरत्नहारः (5) महाराष्ट्रक्षत्रियवीर-रत्नमंजूषा, (6) सौराष्ट्र-वीर-रत्नावलिः (7) महाराष्ट्रवीररत्नमंजूषा। (8) श्रीशंकराचार्यचरितम् (9) विजयानगर-साम्राज्यम्। मोक्षमूलर-वैदुष्यम् (नाटक) - ले.- भवानीशंकर । विश्वविख्यात जर्मन पंडित मैक्समूलर ने अपना निर्देश "मोक्षमूलर" इस संस्कृत शब्द से किया है। संस्कृत एवं वैदिक वाङ्मय के अध्ययन से मोक्षमूलर के अन्तःकरण में भारतभूमि और विशेष कर वाराणसी के विषय में एक गूढ श्रद्धा उत्पन्न हुई थी। श्री भवानीशंकर ने वाराणसी में सम्पन्न पंचम विश्वसंस्कृत सम्मेलन के अवसर पर सन् 1981 में इस तीन अंकी नाटक का लेखन और प्रकाशन किया। इसमें स्वामी विवेकानंद, केशवचंद्र सेन इन भारतीय पात्रों के अतिरिक्त मोक्षमूलर, ब्रोक हाऊस, रुडोल्फ रोथ, विल्सन जैसे यूरोपीय संस्कृत पंडित रंगमंच पर आते हैं। स्त्री पात्रों में सभी यूरोपीय हैं। "आर्यभारती" नामक संस्कृत संजाती भारोपीय आर्यभाषा संस्थान (दिल्ली) द्वारा हिंदी अनुवाद के संहित इस नाटक का प्रकाशन सन् 1981 में हुआ। श्रीमती कमलारत्नम्, सत्यप्रकाश हिंदबाण, रामगोपाल सक्सेना आदि महानुभावों ने दिल्ली आकाशवाणी से इस का प्रयोग प्रसारित किया था। मोक्षलक्ष्मीसाम्राज्यतंत्रम् - ले.-काण्डद्वयातीत योगी। तान्त्रिक
और वेदान्त सिद्धान्त में सामंजस्य करने का प्रयत्न इस ग्रंथ में किया गया है। मोक्षसोपानटीका - ले.- काण्डद्वयातीत योगी।
280/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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