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नाटक में विष्कम्भक नहीं है "मुद्राराक्षस" विशाखदत्त की नाटककला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी वस्तुयोजना एवं उसके संगठन में प्राचीन नाट्यशास्त्रीय नियमों की अवहेलना करते हुए स्वच्छंद वृत्ति का परिचय दिया गया है। कथावस्तु जटिल राजनीतिक होने के कारण, इसमें माधुर्य व लालित्य का अभाव है, और करुण तथा श्रृंगार रस नहीं दिखाई पड़ते । इसमें न तो किसी स्त्री पात्र का महत्वपूर्ण योग है और न विदूषक को ही स्थान दिया गया है। संस्कृत में एकमात्र यही नाटक है जिसमें नाटककार ने रस-परिपाक की अपेक्षा घटना - वैचित्र्य पर बल दिया है। उसमें नाटककार की दृष्टि अभिनय पर अधिक रही है। कथावस्तु की दृष्टि से "मुद्राराक्षस", संस्कृत के अन्य नाटकों की अपेक्षा अधिक मौलिक है। इसमें घटनाओं का संघटन इस प्रकार किया गया है, कि प्रेक्षक की उत्सुकता कभी नष्ट नहीं होती। संकलन त्रय के विचार से "मुद्राराक्षस" एक सफल नाट्यकृति है। इसके नायकत्व का प्रश्न विवादास्पद है । नाट्यशास्त्रीय विधि के अनुसार इसका नायक चंद्रगुप्त ज्ञात होता है, किंतु कतिपय विद्वान् कुछ कारणों से चाणक्य को ही इसका नायक स्वीकार करते हैं। इस नाटक का नामकरण वर्ण्य वस्तु के आधार किया गया है। राक्षस की नामंकित मुद्रा (मुहर) पर ही चाणक्य की समस्त कूटनीति केंद्रित हुई है, जिससे राक्षस के सारे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए । अतः नाटक का नामकरण 'मुद्राराक्षस' सार्थक है । मुद्राराक्षस के टीकाकार : (1) वटेश्वर (मिथिला के गौरीपति मिश्र के पुत्र) (2) दुण्डिराज ( पिता लक्ष्मण) समय- 17-18 वीं शती। (3) स्वामी शास्त्री अनन्तसागर। (4) तर्कवाचस्पति । (5) महेश्वर । (6) घटेश्वर-प्राकृताचार्य। (7) केशव उपाध्याय । (8) अभिराम । (9) ग्रहेश्वर । (10) जे. विद्यासागर । (11) शरभभूप तंजोर-नरेश सरफोजी भोसले इनके अतिरिक्त । अनन्तपंडित ने गद्यात्मक और रविकर्तन ने पद्यमय कथासार लिखा है ।
मुद्रार्णव ले. श्रीरामकृष्ण।
मुद्रालक्षणम् - ले. कृष्णनाथ। श्लोक 1151 मुद्रालक्षणसंग्रह ले पौण्डरीक भट्ट श्लोक 3521 मुद्राविचार श्लोक- 961
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मुद्राविवरणम् - श्लोक 100। विषय- तंत्रराज, प्रयोगसार, लक्षण संग्रह, राजतंत्र आदि तांत्रिक ग्रंथों से अंकुशमुद्रा, कुंभमुद्रा, अग्निप्राकारमुद्रा, ऋष्यादिन्यासमुद्रा, षडंगमुद्रा, मालिनीमुद्रा, शंखमुद्रा, मत्स्यमुद्रा आवाहनादि नौ मुद्राएं, 7 गणेशमुद्राएं 10 शाक्तमुद्राएं 19 वैष्णवमुद्राएं 10 शैवमुद्राएं, 5 गन्धादिमुद्राएं चक्रमुद्रा, प्रासमुद्रा, प्राणादि 5 मुद्राहं, 7 जिह्वामुद्राएं, भूतबलिमुद्रा नाराचमुद्रा, तमस्करमुद्रा, संहारमुद्रा, पाशमुद्रा, गदामुद्रा, शूलमुद्रा तथा खड्गमुद्रा और उनके लक्षण ।
274 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
मुद्रितकुमुदचंद्रम् (प्रकरण ) - ले. यशश्चन्द्र । पिता पद्मचंद्र । इस प्रकरण में 1124 ई. में संपन्न एक शास्त्रार्थ का वर्णन है, जो श्वेतांबर मुनि देवसूरि व दिगंबर मुनि कुमुदचंद्र के बीच हुआ था। इस शास्त्रार्थ में कुमुदचंद्र का मुख-मुद्रण हो गया था। इसी के आधार पर प्रस्तुत प्रकरण का नामकरण किया गया है। इसका प्रकाशन काशी से हो चुका है। मुनित्रयविजय ( वीथि) - ले. रामानुजाचार्य ।
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मुनिद्वात्रिंशत्का ले. विमलकुमार जैन। कलकत्ता निवासी । मुनिमतमणिमाला ले. वामदेव मुमुर्षुमृतकृत्यादिपद्धति - ले. शंकर शर्मा | मुरलीप्रकाश ले भावभट्ट विषय संगीत । मुरारिनाटक व्याख्या ले. बेल्लमकोण्ड रामराय । मुरारिविजयम् (रूपक) - ले. शेषकृष्ण । ई. 16 वीं शती । मुहूर्तकलीन्द्रले शीतल दीक्षित
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मुहूर्तकल्पद्रुम 1) ले. केशव। 2 ) ले. विट्ठल दीक्षित । गोत्र-कृष्णात्रि । सन 1628 में लिखित। इस पर लेखक की मंजरी नामक टीका है।
मुहूर्त कल्याकर - ले. दुःखभंजन | मुहूर्त गणपति ले. गणपति रावल । पिता हरिशंकर । सन 1685 में लिखित। इस पर परमसुख कृत और परशुराम मिश्र कृत टीकाएं है।
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मुहूर्तचन्द्रकला ले. - हरजी भट्ट । ई. 17 वीं शती । ले. रामभट्ट । 2) ले. वेंकटेशभट्ट ।
मुहूर्तचिंतामणि मुहूर्तचिन्तामणि ले. रामदेवज्ञ पिता अनन्त सन 1600 । । में काशी में प्रणीत सन 1902 में मुंबई में मुद्रित । लेखक के बड़े भाई नीलकण्ठ अकबर के सभापंडित थे। इनके पूर्वज विदर्भ निवासी थे। इस पर लेखक ने प्रमिताक्षरा नामक टीका लिखी है जो सन 1848 में वाराणसी में मुद्रित हुई । लेखक का भतीजे गोविन्द ने पीयूषधारा टीका सान 1603 में लिखी जो सन 1873 में मुंबई में मुद्रित हुई। इस टीका पर रघुदैवज्ञ ने उपटीका लिखी अन्य टीकाएं कामधेनु एवं षटसाहस्त्री । मुहूर्तचूडामणि ले. शिव देवश भारद्वाजगोत्र श्रीकृष्ण के पुत्र । मुहूर्ततत्त्वम् - ले. - केशव ।
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मुहूर्तदर्पण ले. - लालमणि । पिता जगद्राम। अलर्कपुर
विद्यामाधव। इस
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(प्रयाग के समीप) के निवासी। 2) ले
पर माधवभट्ट की टीका है।
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मुहूर्तदीप - ले. जयानन्द । 2) शिवदैवज्ञ के पुत्र ।
मुहूर्तदीपक ले. महादेव पिता कान्हजित् (कान्हुजी) सन 1661 में लिखित। इस पर लेखक की टीका है। 2) ले. रामसेवक । पिता- देवीदत्त । 3) ले नागदेव ।
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मुहूर्तपरीक्षा
ले. देवराज ।