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भोजराजांकम् - ले.- सुन्दरवीर रघूद्वह। ई. 19 वीं शती। 'मलयमारुत' पत्रिका के द्वितीय स्पन्द में प्रकाशित पुरी (तिरुक्कोवलूर) में दक्षिण पिनाकिनी (पैष्णार) नदीके तट पर रामनवमी के अवसरपर होने वाली विष्णु की यात्रामें प्रदर्शन हेतु लिखित। शृंगार के साथ करुण रस से परिप्लुत। अंक में विष्कम्भक का विधान न होते हुए भी इसमें विष्कम्भक का प्रयोग हुआ है। कथासार- नायक भोज के पिता ने उसका विवाह आदित्यवर्मा की कन्या लीलावती के साथ निश्चित किया है, परन्तु भोज के चाचा मुंज उसका अपहरण कराते है। वे सेनापति वत्सराज द्वारा भोज की हत्या का षडयंत्र रचते है, किन्तु वत्सराज उसे वन में छोड़ देते है। मंत्री बुद्धिसागर मुंज के अत्याचारों से क्षुब्ध हो, उसपर आक्रमण करने हेतु आदित्यवर्मा को उकसाते है। यहा वन में भोज को प्रेयसी विलासवती की स्मृति सताती है। दैववशात् नायिका उसे देख उस पर मोहित हो, वटपत्रपर ताम्बूल से प्रेमपत्र लिखती है। पत्र पढ कर भोज उसे ढूंढने निकलता है, इतने में मुंज द्वारा भेजे हुए हत्यारों से उसकी मुठभेड होती है। प्रसंग में अरण्यराज जयपाल भोज का मित्र बनता है। अपहृत लीलावती का पालक पिता जयपाल उसे पुरुषवेष में साथ लेकर मुंज पर आक्रमण करता है। अंत में भोज अपनी माता शशिप्रभा, तथा पत्नी विलासवती से मिलता है, उस का राज्यभिषेक होता है। और लीलावती के साथ उसका विवाह होता है। भोजराज्ये संस्कृतसाम्राज्यम् - ले.- वासुदेव द्विवेदी (श. 20 वीं) संस्कृत प्रचार पुस्तकमाला में प्रकाशित एकांकी रूपक। इसमें मध्यकालीन भारत का सांस्कृतिक दृश्य चित्रित है। भोसलवंशावली - ले.-गंगाधर । व्यंकोजी के अमात्य । व्यंकोजी के पुत्र शाहजी (तंजौरनरेश) की प्रशस्ति। भोसल-वंशावली (चंपू) - ले.- वेंकटेश कवि। पिताधर्मराज। तंजौरनरेश शरभोजी भोसले के राजकवि। रचना काल 1711 से 1728 के मध्य । इसमें तंजौर के भोसले वंश का वर्णन और मुख्यतः शरभोजी का जीवनवृत्त वर्णित है। यह काव्य एक ही आश्वास में समाप्त हुआ है। भ्रमभंजनम् (नाटक) - ले.- सत्यव्रत शर्मा । पंजाब के निवासी। भ्रमरदूतम् - ले.- रुद्र न्यायवाचस्पति। ई. 16 वीं शती। श्रीराम द्वारा सीता के प्रति अशोकवन में भ्रमर को दूत बनाकर भेजने की कल्पना चित्रित है। भ्रष्टवैष्णवखंडनम् - ले.- श्रीधर । भ्राजसूत्रम् - ले.- कात्यायन। विषय- व्याकरणशास्त्र । भ्रान्तभारतम् - ले.- नागेश पण्डित, अच्युत पाध्ये और शालिग्राम द्विवेदी। विबुध-वाग्विलासिनी सभा द्वारा प्रकाशित । कथासार- विबुधवागविलासिनी सभा के अधिवेशन में विवाह योग्य आयु के विषय में चर्चा चलती है। नागेश शर्मा के
सभापतित्व में निर्णय होकर वाइसराय को प्रस्ताव भेजा जाता है कि शासन इस विषय में हस्तक्षेप न करे।
विशेषताएं - एक अंक में अनेक दृश्य। पटल सन्देश के स्थान पर डुग्गी बजाना। प्राकृत के स्थान पर आधुनिक भारतीय भाषाएं। अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग। राजकीय सत्ता की स्पष्ट शब्दों में भर्त्सना आदि। भ्रान्तिविलासम् - ले.- श्रीशैल दीक्षित। शेक्सपियर के "कॉमेडी ऑफ एरर्स' नाटक का संस्कृत अनुवाद। मकरंद - ले.-पक्षधर मिश्र । ई. 13 वीं शती। (उत्तरार्ध)। मकरन्दप्रकाश - ले.- हरिकृष्ण सिद्धान्त। (ई. 17 वीं शती) विषय- आह्निक, संस्कार। मकरन्दिका - ले.- उपेन्द्रनाथ सेन। यह आधुनिक पद्धति का उपन्यास है। मकर-संक्रान्तीयम् (काव्य) • ले.- हेमंतकुमार तर्कतीर्थ । मुकुटतंत्र - श्लोक- 280। मंखकोश - ले.- मंखक। ई. 12 वीं शती। काश्मीर निवासी। यह शब्दकोश है। मंगलनिर्णय - ले.- गणेश (केशव देवज्ञ के पुत्र) विषयउपनयन, विवाह आदि। मंगलविधि - रुद्रयामलान्तर्गत । विषय- मंगल ग्रह की तांत्रिक पूजा। मंजरी (पत्रिका)- कार्यालय- तिरुवायुरु। ई. 1913 । मंजरीमकरन्द (नामान्तर परिमल) - ले.-रंगनाथ यज्वा । पदमंजरी की टीका। मंजुकवितानिकुंज - ले.- भट्ट मथुरानाथशास्त्री। इसमें संस्कृतसर्वस्वम् और काव्यकलारहस्यम् नामक काव्य भी समाविष्ट
मंजुभाषिणी - ले.- राजचूडामणि। पिता- श्रीनिवास दीक्षित (रत्नखेट नाम से प्रसिद्ध)। कवि ने इसका लेखन एक ही दिन में संपन्न किया। इस काव्य का प्रत्येक शब्द श्लेषगर्भ है। विषय-रामकथा। मंजुभाषिणी - सन 1900 के मई मास से कांचीवरम् से इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसके सम्पादक थे पी.व्ही. अनन्ताचार्य, जो रामानुज सिद्धान्त के प्रकाण्ड पंडित थे। प्रथम छह अंकों तक यह पनि प्रति मास छपती रही, बाद में दो वर्षों तक मास में त... बार तथा चौथे वर्ष से यह प्रति सप्ताह छपने लगी। इसमें मधुर काव्य और सरस गीतों का भी प्रकाशन होता रहा। चार भागों में विभक्त इस पत्रिका में वैष्णव धर्म से सम्बन्धित सामग्री, महापुरुषों की जीवनी, देशवृत्तान्त और दर्शन सम्बधी रचनाओं के अलावा भ्रमणवत्तान्त प्रकाशित किये जाते थे। इसका प्रकाशन व्ययभार प्रतिवादि भयंकर मठ कांचीवरम् द्वारा वहन किया जाता था।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/245
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