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टीका सहित भानोपषित् यह इस ग्रंथ का स्वरूप है। भामह-विवरणम् - ले.- उद्भट (भट्टोभट) अलंकार शास्त्र के आचार्य उद्भट काश्मीर-नरेश जयापीड के सभापंडित थे, और उनका समय 8 वीं शती का अंतिम चरण और 9 वीं शती का प्रथम माना जाता है। यह भामह कृत "काव्यालंकार" की टीका है जो संप्रति अनुपलब्ध है। कहा जाता है कि यह ग्रंथ इटली से प्रकाशित हो गया है पर भारत में दुर्लभ है। इस ग्रंथ का उल्लेख प्रतिहारेंदुराज ने अपनी "लघुविवृत्ति" में किया है। अभिनवगुप्त, रुय्यक तथा हेमचंद्र भी अपने ग्रंथों में इसका संकेत करते हैं। भामाविलास (काव्य)ले.- गंगाधरशास्त्री मंगरूळकर । नागपुरनिवासी। भामिनीविलास टीका - ले.- अच्युतराय मोडक। नासिक निवासी। भारतचम्पू - कवि- राजचूडामणि (रत्नखेट के पुत्र) ई. 17 वीं शती । इस पर घनश्याम (ई. 18 वीं शती) की टीका है। भारतचम्पू - ले.- अनंतभट्ट। ई. 11 वीं शती। इसमें संपूर्ण "महाभारत" की कथा कही गई है। श्लोकों की संख्या 1041
और गद्यखंडों की संख्या 200 से उपर है। यह वीर रस प्रधान काव्य है। इसका प्रारंभ राजा पाण्डु के मृगया वर्णन से होता है। प्रस्तुत भारतचंपू पर मानवदेव की टीका प्रसिध्द है जिसका समय 16 वीं शती है। पं. रामचंद्र मिश्र की हिन्दी टीका के साथ इसका प्रकाशन चौखंबा विद्याभवन से 1957 ई. में हो चुका है। भारतचंपूतिलक - ले.-लक्ष्मणसूरि । ई. 17 वीं शती। पितागंगाधर। माता-गंगांबिका। प्रस्तुत चंपू-काव्य में "महाभारत" की उस कथा का वर्णन है, जिसका संबंध पांडवों से है। पांडवों के जन्म से लेकर युधिष्ठिर के राज्य करने तक की घटनाएं इसमें वर्णित हैं। ग्रंथ के अंत में कवि ने अपना परिचय दिया है। भारततातम् (नाटक) - ले.-डॉ. रमा चौधुरी । अंकसंख्या-छः। विषय-महात्मा गांधी का चरित्र। बापू शताब्दी महोत्सव के अवसर पर भारत शासन के शिक्षा मन्त्रालय के तत्त्वावधान में अभिनीत। भारतदिवाकर - सन् 1907 में अहमदाबाद से श्री नारायणशंकर
और हरिशंकर के सम्पादकत्व में संस्कृत-गुजराती में यह पत्रिका प्रकाशित हुई। इसमें धर्म और विज्ञान विषयक लेख प्रकाशित होते थे। भारतपथिक (रूपक) - ले.-डॉ. रमा चौधुरी। दृश्य संख्या-5। विषय- राजा राममोहन राय की चरित गाथा। प्रमुख घटनाएं हैं : सती प्रथा का उन्मूलन, अंग्रेजी शिक्षा की प्रेरणा, ब्राह्मसमाज की स्थापना, विदेश यात्रा तथा ब्रिस्टल में स्वर्गवास।
भारतपारिजात - ले.-स्वामी भगवदाचार्य। इस महाकाव्य में महात्मा गांधी का जीवन-चरित तीन भागों में वर्णित है। प्रथम भाग में 25 सर्ग हैं, जिनमें गांधीजी की दांडी यात्रा तक की कथा है। द्वितीय भाग में 1942 के भारत छोडो आंदोलन तक की कथा 29 सर्गों में वर्णित है। तृतीय भाग के 21 सर्गों में नोआखाली तक की यात्रा का उल्लेख है। इसमें कवि का मुख्य लक्ष्य रहा है गांधीदर्शन को लोकप्रिय बनाना । भाषा की सरलता इस की विशेषता है। भारतभूवर्णनम् - ले.-म.म.टी. गणपति शास्त्री। विषय-भारत इतिहास का वर्णन। भारतयुद्धचम्पू - ले.-नारायण भट्टपाद । भारत-राजेन्द्र (रूपक) - ले.-यतीन्द्रविमल चौधुरी । विषय-राष्ट्रपति राजेन्द्रप्रसाद की जीवनगाथा। कलकत्ता वि.वि. में प्रथम स्थान पाना, स्वतंत्रता-आंदोलन में भाग लेना, नमक कानून का भंग, हिन्दू-मुस्लिम एकता हेतु प्रयास, सेंट स्टॅसवर्ग के अधिवेशन में उन पर आक्रमण, भागलपुर आन्दोलन, छपरा जेल की घटनाएं और अन्त में राष्ट्रपति बनने तक के प्रसंगों का चित्रण। भारतलक्ष्मी (रूपक) - ले.-यतीन्द्रविमल चौधुरी। सन् 1967 में प्रकाशित। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवनचरित्र । अंकसंख्या-दस। भारतवाणी - सन् 1955 में पुणे से डॉ. ग.वा. पळसुले के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। वसंत अनंत गाडगील उनके सहयोगी संपादक थे। आगे चलकर इसके संपादन का भार डॉ. वसंत गजानन राहूरकर पर आया। इस पत्रिका का वार्षिक मूल्य 5 रु. था। यह पत्रिका सचित्र थी। इसमें उच्च कोटि के निबन्ध, कविताएं, कहानियां, अनूदित साहित्य, देश-विदेश के समाचारों का समालोचन आदि का प्रकाशन किया जाता। इसके कुछ विशेषांक भी प्रकाशित हुए। भारतविजयम् (नाटक) - ले.- मथुराप्रसाद दीक्षित। रचना सन् 1937 में। सोलन की राजसभा में उसी वर्ष अभिनीत । शासन द्वारा जप्त होने पर बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् प्रकाशित हुआ। अंकसंख्या-सात। इसमें 18 वीं शती में अंग्रेजों के पदार्पण से आगे की घटनाएं निबद्ध हैं। संक्षिप्त कथा- इस नाटक में सात अंक हैं। प्रथम अंक में गोरे लोग भारत में आकर व्यापार करने के लिए अपनी कंपनी स्थापित करते हैं और भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करते हैं। द्वितीय अंक में क्लाइव बंगाल के अधिपति सिराज के सेनापति मीर जाफर को, सिराज के विरुद्ध भडका कर उससे एक संधिपत्र लिखवाता है। तृतीय अंक में मीर कासिम द्वारा इस संधि का विरोध करने पर कंपनी के लोग मीर कासिम के विरुद्ध युद्ध छेड उसे पराजित कर देते हैं। चतुर्थ अंक
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड 1235
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