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जोमनाता
पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था। इसके सम्पादक चन्द्रशेखर थे। इस पत्रिका का प्रकाशन केवल एक वर्ष तक हुआ। अनंगदीपिका - ले.- कौतुकदेव। विषय- कामशास्त्र । अनंगरंग - ले.- कल्याणमल्ल। अवधनरेश (आश्रयदाता) को प्रसन्न करने के हेतु रचना हुई। 10 अध्याय। नायिकाभेद तथा उनकी विशेषताएं, इत्यादि कामशास्त्रीय विषयों की जानकारी के लिए यह लघुकोश सा है। अनुभवरस - ले.- हरिसखी। अनुरागरस - ले. नारायणस्वामी । अनूपसंगीतरत्नाकरः - ले. भवभट्ट। अनूपसंगीतविलास - ले. भवभट्ट । अनूपसंगीताकुंश - ले.- भवभट्ट । अनर्घराघव - 7 अंकों का नाटक। ले. मुरारि कवि। इसमें संपूर्ण रामायण की कथा नाटकीय प्रविधि के रूप में प्रस्तुत की गई है। कवि ने विश्वामित्र के आगमन से लेकर रावण-वध, अयोध्यापरावर्तन तथा रामराज्याभिषेक तक संपूर्ण कथा को नाटक का रूप दिया है। किंतु रामायण की कथा को अपने नाटक में निबद्ध करने में, मूल कथानक बिखर गया है। फिर भी रोचकता तथा काव्यात्मकता का इस नाटक में अभाव नहीं।
संक्षिप्त कथा :- इस नाटक के प्रथम अंक में महर्षि विश्वामित्र दशरथ के पास से राम लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा करने के लिए अपने आश्रम में ले जाते हैं। द्वितीय अंक में राम विश्वामित्र की आज्ञा से ताडका का संहार करते हैं। तृतीय अंक में विश्वामित्र राम लक्ष्मण को मिथिला ले जाते हैं जहां जनक के प्रण के अनुसार शिवधनुष पर शरसंधान कर राम सीता प्राप्ति के अधिकारी हो जाते है। तभी रावण का पुरोहित शोष्कल सीता की मंगनी रावण के लिए करता है, किन्तु रामकृत धनुर्भग को देख निराश हो चला जाता है। चतुर्थ
अंक में हरचापभंग सुन परशुराम क्रुद्ध होकर मिथिला आते हैं। तब सीता के विवाह का उत्सव होता है। इसी बीच कैकयी अपनी दासी के हाथ पत्र भेजकर दशरथ से दो वर(राम को वनवास और भरत को राज्य प्राप्ति) मांगती है। पिता का आदेश स्वीकार कर सीता और लक्ष्मण सहित राम बन जाते है। पंचम अंक में रावण सीता का अपहरण करता है। जटायु प्रतिकार करते हुए मारा जाता है। राम की सुग्रीव से भेंट होती है। सप्तम अंक में अग्निपरीक्षा से परिशुद्ध सीता सहित राम पुष्पक विमान से अयोध्या लौटते हैं। वहां उनका राज्याभिषेक होता है।
अनर्घराघव में अर्थोपक्षेकों की संख्या 29 है। इनमें 5 विष्कम्भक और 24 चूलिकाएं हैं।
मुरारि कवि ने भवभूति को परास्त करने की कामना से 'अनर्घराघव' की रचना की थी, किन्तु उन्हें नाटक लिखने की
कला का सम्यक् ज्ञान नहीं था। उनका ध्यान पद-लालित्य एवं पद-विन्यास पर अधिक था, पर वे भवभूति की कला को स्पर्श भी न कर सके। 'अनर्घराघव' में 5 प्रकार के दोष परिलक्षित होते है- 1) नाटक का कथानक निर्जीव है, 2) वर्णनों एवं संवादों का अत्यधिक विस्तार है, 3) असंगठित तथा अतिदीर्घ अंक रचना का समावेश है, 4) सरस भावात्मकता का अभाव है और 5) इसमें कलात्मकता का प्रदर्शन है, फिर भी मुरारि को 'बालवाल्मीकि' उपाधि दी है। अनर्घराघव नाटक के टीकाकार :
(1) पूर्णसरस्वती, (2) हरिहर, (3) मानविक्रम, (4) रुचिपतिदत्त, (5) वरदपुत्र कृष्ण, (6) लक्ष्मीधर, (रामानन्दाश्रम) (7) विष्णुपण्डित, (8) विष्णु भट्ट (मुक्तिनाथ का पुत्र), (9) लक्ष्मण सूरि, (10) जिनहर्षगणि, (11) श्रीनिधि, (12) पुरुषोत्तम, (13) त्रिपुरारि, (14) नवचन्द्र, (15) अभिराम, (16) भवनाथ मिश्र, (17) धनेश्वर और (18) उदय । अनंग-जीवन (भाण) - ले- कोच्चुण्णि भूपालक (जन्म 1858)। त्रिचूर के मंगलोदयम् से तथा 1960 में केरल वि.वि.की संस्कृत सीरीज से प्रकाशित । मुकुन्द महोत्सव में अभिनीत। अनंगदा-प्रहसनम् - ले- जग्गू श्रीबकुलभूषण। रचना- सन 1958 में। जयपुर की 'भारती' पत्रिका में प्रकाशित । कथासारवारांगना अनंगदा बिना अंग दिये ही अभीष्ट प्राप्ति करने में चतुर है। दो धनिक भाई उस पर लुब्ध हैं। छोटा भाई उसको एकावली देकर प्रणयालाप करता है। इतने में बड़ा भाई द्वार खटखटाता है। अनंगदा उसका मुंह काला कर भीतर छिपाती है और कहती है कि में पुरुषवेष में आकर मिलूंगी। फिर बडे भाई को भी वैसा ही बताती है। भीतर दोनों भाई परस्पर को ही नायिका समझकर प्रेमालाप करने लगते हैं। अन्त में दोनों अपनी मूर्खता पर पछताते हैं। अनंगब्रह्मविद्याविलास - कवि- वरदाचार्य। अनंग-रंग - ले- कल्याणमल्ल। विषय- कामशास्त्र । अनंगविजय (भाण) - ले. जगन्नाथ। अठारहवीं शती। प्रथम अभिनय तंजौर में प्रसन्न वेडकट नायक के वसन्त-महोत्सव पर। अनंगविजय - कवि- शिवराय कृष्ण और जगन्नाथ । अनन्तचरित - कवि- श्रीवासुदेव आत्माराम लाटकर, काव्यतीर्थ। विषय- बम्बई के प्रसिद्ध व्यापारी अनन्त शिवाजी देसाई टोपीवाले का चरित्र। अनंतनाथस्तोत्रम् - ले- छत्रसेन । समन्तभद्र के शिष्य। ई. 18 शती। अनन्तव्रतकथा - ले- श्रुतसागर सूरि। (जैनाचार्य) ई. 16 वीं शती।
8/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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