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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस नाटक में कुल चार अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें एक विष्कम्भक । 1 प्रवेशक और 2 चूलिकाएं हैं। प्रतिज्ञावादार्थ - ले. अनंतार्य। ई. 16 वीं शती । प्रतिज्ञाशान्तनवम् - (लघुरूपक) ले. जगू श्रीबकुल भूषण। "संस्कृतप्रतिभा' में प्रकाशित । अंकसंख्या-दो। भीष्मप्रतिज्ञा का कथानका प्रतिक्रिया (रूपक)- ले. वेंकटकृष्ण तम्पी। सन 1924 में प्रकाशित। राजपूत-इस्लामी संघर्ष युग का अंकन आधुनिक युरोपीय शैली में किया है। प्रतिनैषधम् - ले. विद्याधर तथा लक्ष्मण । ई. 17 वीं शती। प्रथिततिथिनिर्णय - ले. नागदैवज्ञ। प्रतिभा- काशीधर्मसंघ द्वारा प्रकाशित पत्रिका । प्रतिमा (नाटक) - ले.महाकवि भास। रचनाकाल- कालिदास पूर्व। संक्षिप्त कथा - प्रथम अंक में राम के राज्याभिषेक की तैयारियां की जाती हैं किन्तु कैकेयी के द्वारा दशरथ के वरों के रूप में राम को 14 वर्ष का वनवास और भरत को राज्यप्राप्ति मांगने से दशरथ मूर्च्छित हो जाते हैं। राम सीता और लक्ष्मण के साथ वनगमन के लिए उद्यत होते हैं। द्वितीय अंक में रामादि के वनगमन का समाचार पाकर दशरथ अनेक प्रकार से विलाप करते हुए प्राणत्याग करते हैं। तृतीय अंक में ननिहाल से लौटते हुए भरत को प्रतिमागृह में दशरथ की मृत्यु का परिज्ञान होता है। वहां वे कौसल्यादि राजमाताओं से मिलकर तथा कैकेयी को दशरथ की मृत्यु का दोषी ठहराकर राज्याभिषेक छोडकर राम के पास चले जाते हैं। चतुर्थ अंक में भरत राम को अयोध्या लौटाने में असमर्थ हो राम की चरणपादुकाओं को राम का प्रतिनिधि मानकर राज्यभार धारण करना स्वीकार कर अयोध्या लोटते हैं। पंचम अंक में रावण ब्राह्मणवेष में आकर सीता का अपहरण करता है। मार्ग में जटायु उस पर आक्रमण करता है। षष्ठ अंक में सुमंत्र से सीताहरण का समाचार पाकर भरत कैकेयी की निंदा करते हैं, तब सुमंत्र दशरथ को श्रवणकुमार के मातापिता से मिले शाप के बारे में बताते हैं। सप्तम अंक में राम, रावण का वध कर बिभीषण को राज्याभिषेक कर पंचवटी लौटते हैं जहां भरत भी सपरिवार पहुंच कर राम का राज्याभिषेक करते हैं। बाद में सभी पुष्पक विमान से अयोध्या जाते हैं। इसमें 9 अर्थोपक्षेपक हैं जिनमें विष्कम्भक 3, प्रवेशक 2 और चूलिका 4 हैं। प्रतिमाप्रतिष्ठा - ले.नीलकंठ। प्रतिराजसूयम् (रूपक) - ले. महालिंगशास्त्री। मद्रास संस्कृत एकेडेमी से सन 1929 में पुरस्कृत। सन 1957 में साहित्य चन्द्रशाला,तिरुवलंगुडू, तंजौर से प्रकाशित। अंकसंख्या सात । महाभारत के वनपर्व का कथानक है। प्रतिष्ठाकल्पलता - ले. वृन्दावन शुक्ल । प्रतिष्ठाकौमुदी - ले. शंकर । श्लोक 1500 | विषय- शिल्पशास्र। प्रतिष्ठाकौस्तुभ - ले. शेषशर्मा। श्लोक 400। विषयशिल्पशास्त्र। प्रतिष्ठाचिन्तामणि - ले.गंगाधर । विषय- शिल्पशास्त्र। प्रतिष्ठातंत्रम् - ले. मय । विषय-शिल्पशास्त्र । (2) सुप्रभेदान्तर्गत, महेश्वर- महागणपति संवाद रूप। श्लोक- 13201 विषयमुख्य रूप से विमान-स्थापनाविधि, रसदीक्षा-विधान, अष्टमीभजनविधि, क्षेत्रपालार्चनविधि, नाडीचक्र आदि। (3) आदिपुराण के अन्तर्गत। श्लोक- 13700। विषय- शिव, विष्णु, ब्रह्म, विघ्न, शास्तू, रवि, कन्यका, मातृ, शेष पूजा आदि देवताओं के भाग तथा प्रत्येक भाग में 12 आश्वास हैं। कुल 144 आश्वास हैं। तंत्रों की उत्पत्ति, लक्षण, संख्या, शिष्य-संख्या, उनके नाम आदि विषय भी वर्णित हैं। (4) निःश्वास-महातंत्र के अंतर्गत, उमा-महेश्वर संवाद रूप। 70 पटलों में पूर्ण । स्थापक तथा स्थपति के लक्षण, लिंगयोनि पटल, रत्नज और पार्थिव लिंग का लक्षण, वनप्रवेश, वृक्षलक्षण और पाषाणलक्षण,वनाधिवास, वृक्षग्रहण इ. 70 पटलों के पृथक्-पृथक् विषय हैं। लिंगादि निर्माण, विविध देवप्रतिमा के लक्षण, जीर्णोद्धार-प्रतिष्ठा, प्रासाद तथा मन्दिर निर्माण इ. विस्तारपूर्वक वर्णित हैं। प्रतिष्ठातत्त्वम् (या देवप्रतिष्ठातत्त्व) - (1) ले- रघुनन्दन । (2) ले- मय। प्रतिष्ठातिलक - ले. ब्रह्मदेव (या ब्रह्मसूरि) जैनाचार्य। ई. 12 वीं शती। श्लोक- 500। प्रतिष्ठादर्पण - ले. पद्मनाभ। नारायणात्मज गोपाल के पुत्र । ई. 18 वीं शती। प्रतिष्ठानिर्णय - ले. गंगाधर । प्रतिष्ठापद्धति - ले.अनन्तभट्ट (बापूभट्ट) प्रतिष्ठापद्धति - (1) ले. महेश्वरभट्ट हर्षे। (2) ले. नीलकण्ठ । (3) ले. त्रिविकमभट्ट। पिता- रघुसूरि । (4) ले- राधाकृष्ण ।। (5) ले- शंकरभट्ट। प्रतिष्ठापाद - ले. नेमिचन्द्र जैनाचार्य। ई. 10 वीं शती। प्रतिष्ठाप्रकाश - ले. हरिप्रसाद शर्मा। प्रतिष्ठाप्रयोग - ले. कमलाकर। श्लोक- 180। प्रतिष्ठामयूख (नामान्तर- प्रतिष्ठाप्रयोग) - ले. नीलकण्ठ। घारपुरे द्वारा मुद्रित। प्रतिष्ठाकर्मपद्धति - ले.दिवाकर। प्रतिष्ठालक्षणसमुच्चय - ले. हेमाद्रि । ई. 13 वीं शती। पिताकामदेव। प्रतिष्ठालक्षणसारसमुच्चय - ले. वैरोचनि। गुरु- ईशानशिव । संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 201 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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