________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नाटक समाप्त हो जाता है। पंचरात्र में पांच अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें एक विष्कम्भक। प्रवेशक और 2 चूलिकाएं हैं। पंचरुद्रप्रकारकथनम् - नन्दिकेश्वर शतानन्द संवादरूप। इसमें पंचरूद्र के प्रकार, उसके अधिकारी, कलशरुद्र-प्रकरण, मण्डप-निर्माण, तोरण और द्वारो का निर्माण, जयप्रकरण वेदीनिर्माण, ध्वजारोपण, कुण्डनिर्माण, सर्वतोभद्रनिर्माण, न्यास आदि विषय वर्णित हैं। पंचवस्तुप्रक्रिया - ले. देवनंदी। ई. 5 वीं शती। पंचसंस्कारदीपिका - ले. विजयीन्द्र भिक्षु। गुरु- सुरेन्द्र।। मध्वाचार्य के सिद्धान्तानुसार वैष्णवपद्धति का निवेदन इसका विषय है। पंचसायकम् - ले. कविशेखर ज्योतिरीश्वर। इस के चार विभागों में नायिकाभेद, रति के 3 प्रकार तथा मन्त्रतन्त्रादि का विवरण है। पंचसिद्धान्तिका - ले.वराहमिहिर। ई. 5 वीं शती। विषयज्योतिष शास्त्र। इस ग्रंथ में उस समय प्रचलित पुलिश, रोमक, वसिष्ठ, सौर तथा पैतामह इन पांच ज्योतिषविषयक सिद्धान्तों की चर्चा है। वराहमिहिर ने अपने सौरसिद्धान्त के आधार पर ग्रह-नक्षत्रों की आकाश में स्थिति निश्चित की और ग्रहणों तथा ग्रहयुति का काल निश्चित करने के नियम बनाये हैं। पंचस्कन्धप्रकरणभाष्यम् - ले. स्थिरमति। यह वसुबन्धु के पंचस्कंध का भाष्य है। विषय- बौद्धदर्शन। पंचस्तवी - इसमें 5 अध्यायों में दुर्गास्तुति की गई है। ये पांच अध्याय हैं- लघुस्तव, सरसास्तव, घटस्तव, अम्बास्तव
और सकलजननीस्तव। पंचाक्षरीभाष्यम् - ले. पद्मपादाचार्य। ई. 8 वीं शती। पंचाक्षरीमुक्तावली - ले. सिद्धेश्वर पण्डित । गुरु- विद्याकर। 5 श्रेणियों (अध्यायों) में वर्णित। श्लोक- 765। विषयनित्य नैमित्तिक जप, नित्य नैमित्तिक होमविधि, लघुदीक्षाविधि, देश, काल, जपस्थान, जपनियम, पुरश्चरणनियम इ.। पंचांगार्क - ले. राघव पण्डित खाण्डेकर।। पंचाध्यायी - ले. राजमल पांडे। ई. 16 वीं शती। पंचायतनपद्धति • ले. दिवाकर। महादेव के पुत्र। विषयसूर्य, शिव, गणेश, दुर्गा एवं विष्णु के पंचायतन की उपासना । पंचायुधप्रपंच - ले. त्रिविक्रम। सन 1864 में मुंबई से प्रकाशित। इसमें विट प्रबलदाम के प्रयास से, कन्दर्पविलास का कलहंसलीला से, तथा मन्दारशेखर का कमलज्योत्स्रा से स्नेहसंबंध होने की कथा वर्णित है। पंचालिका-रक्षणम् (रूपक) - ले. पेरी काशीनाथ शास्त्री। ई. 19 वीं शती। पंचाशत्सहस्त्री- महाकालसंहिता - शिव-पार्वती संवादरूप। विषय- कामकला काली की पूजा ।
पंचस्तिकायटीका - ले. अमृतचन्द्रसूरि । जैनाचार्य। ई. 10-11 वीं शती। पंजिकाउद्योत - ले.त्रिविक्रम । पंजिका पर टीका ग्रंथ । पंजिकाव्याख्या - ले. विश्वेश्वर तर्काचार्य। इनके अतिरिक्त जिनप्रभसूरि, रामचंद्र और कुशल द्वारा रचित पंजिका टीकाओं का भी उल्लेख मिलता है। पण्डितचरितप्रहसनम् - ले. काव्यतीर्थ मधुसूदन । पण्डितपत्रिका - सन 1898 में वाराणसी से संस्कृत-हिन्दी में प्रकाशित इस मासिक पत्रिका के सम्पादक थे बालकृष्ण शास्त्री। यह समाचार-प्रधान पत्रिका थी। फिर भी इसमें उच्च कोटि के लेख प्रकाशित होते थे। सन 1953 में अखिल भारतीय पण्डित महापरिषद्, धर्मसंघ दुर्गाकुण्ड काशी, से इस पत्रिका का प्रकाशन पुनश्च आरंभ हुआ। इसके संरक्षक श्री. पण्डित रामयश त्रिपाठी थे तथा सम्पादक मण्डल में सर्वश्री महादेव शास्त्री, दीनानाथ शास्त्री, रामगोविन्द शुक्ल, सीताराम शास्त्री और बालचन्द दीक्षित थे। पत्र के प्रकाशन का उद्देश्य धर्मप्रचार था। चार पृष्ठों वाली इस मासिक पत्रिका में सैद्धान्तिक, वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि विषयों से सम्बद्ध सामग्री प्रकाशित होती थी। इसका वार्षिक मूल्य चार रुपये था तथा यह प्रति सोमवार को प्रकाशित होती. थी। यह पत्रिका 1960 तक प्रकाशित हुई। आर्थिक समस्या के कारण यह बन्द हुई। पंडितसर्वस्वम् - ले. हलायुध । ई. 12 वीं शती। पिता- धनंजय। पतंजलिचरितम् - ले. रामचन्द्र दीक्षित। आठ सर्गों के इस महाकाव्य में व्याकरण महाभाष्यकार पतंजलि का चरित्र वर्णन किया है। यह कवि अठारहवीं शताब्दी के तंजौर-अधिपति सरफोजी भोसले का आश्रित था। पतितत्याग-विधि- ले. दिवाकर। विषय- धर्मशास्त्र । पतितसंसर्गप्रायश्चित्तम् - तंजौर के राजा सरफोजी भोसले के तत्त्वावधान में पंडितों की परिषद द्वारा प्रणीत । पतितोद्धार-मीमांसा - ले. म.म. कृष्णशास्त्री घुले, नागपुरनिवासी। छात्रावस्था में लिखित निबंध। अन्य धर्म में गए हिन्दुओं को वापिस अपने धर्म में लेना योग्य है वह मत इसमें प्रतिपादन किया है।। पत्रपरीक्षा- ले. विद्यानन्द । जैनाचार्य। ई. 8-9 वीं शती। पथ्यापथ्य-विनिश्चय - ले. विश्वनाथ सेन । पदचन्द्रिका - ले. बृहस्पति मिश्र (अपरनाम रायमुकुट)। अमरकोश पंजिका पर भाष्य। रचनाकाल- सन 1431 । पदचन्द्रिका - ले. दयाराम । पदभूषणम् - ले, रघुनाथ शास्त्री पर्वते। विषय- भगवद्गीता की टीका। पदवाक्यरत्नाकर - गोकुलनाथ। ई. 17 वीं शती।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /177
For Private and Personal Use Only