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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मानसपूजा, शंखस्थापनादि प्रकार पीठपूजा, देवतापूजन इ. (2) श्लोक- 2672 (अपूर्ण) www.kobatirth.org तान्त्रिक प्रयोगसंग्रह ले श्लोक 925। विषय काम्य शिवलिंग पूजाविधि, काम्य-प्रयोग, स्तोत्र, कवच इ. । श्लोक 40 विषय- त्रिपुरसुन्दरीकल्पोक्त तांत्रिक प्रातःकृत्य तान्त्रिक स्नानविधि और पूजा । तांत्रिकमुक्तावली ले नागेशभट्ट ई. 12 वीं शती पितावेंकटेशभट्ट । 1 - तान्त्रिकसन्ध्याविधि ले- श्लोक 500। वियष- वैदिक संध्या करने के अनन्तर तांत्रिक संध्या का विधान तथा प्रयोग । तान्त्रिकहवनपद्धति ले- प्रकाशानन्दनाथ । श्लोक 1501 तान्त्रिकहोमविधि ( नामान्तर शवाग्निहोमविधि) श्लोक 100 I तापनीय (यजुर्वेद की एक शाखा का नाम ) इस शाखा का संहिता या ब्राह्मण उपलब्ध नहीं है । तापनीय श्रुति के नाम पर दिया गया वचन- "सप्तद्वीपवती भूमिर्दक्षिणार्थं न कल्प्यतेइति" तापनीय उपनिषद् में न होने के कारण यह वचन तापनीय ब्राह्मण या आरण्यक में हो ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है। - - तापार्तिसंवरणम् (महाकाव्य) ले वाक्तोलनारायण मेनन। तापसवत्सराजनाटकम् ले मायुराज महिष्मती के अधिपति । पिता- नरेंद्रवर्धन । संक्षिप्त कथा नाटक के प्रथम अंक में मंत्री यौगन्धरायण वत्सदेश पर पांचाल नरेश आरुणि द्वारा आक्रमण कर देने पर भी वत्सराज की उदासीनता को देख राजा प्रद्योत से सहायता लेता है और वासवदत्ता के साथ योजना बनाता है जिसके अनुसार कुछ समय तक वासवदत्ता राजा से अलग रहने का निश्चय करती है। द्वितीय अंक में अन्तःपुर में वासवदत्ता और यौगन्धरायण के जलकर मरने की वार्ता पर राजा विलाप करता है और मंत्री रुमण्वान् के कहने से सिद्धदर्शन के लिए प्रयाग जाता है। तृतीय अंक में यौगन्धरायण ब्राह्मण वेष में वासवदत्ता को अपनी प्रोषितपति बहन बताकर मगधराजपुत्री पद्मावती के पास छोड़ देता है। पद्मावती उदयन से प्रेम करती है। वह तपस्विनी बन जाती है। राजा भी तापसवेष में राजगृह में आता है और तपस्विनी पद्मावती को देखता है। चतुर्थ अंक में राजा पद्मावती को अपने लिए कष्ट साधना करते हुए देख दुःखी होता है और पद्मावती के साथ विवाह करता है। पंचम अंक में आरुणि पर विजय प्राप्ति की वार्ता पाकर राजा प्रयाग होते हुए. कौशाम्बी लौटना चाहता है । वासवदत्ता दुःखी होकर प्रयाग में संगम के पास चिता में प्रवेश करना चाहती है। उधर राजा भी चिता देख कर उसमें अपना प्राणोत्सर्ग करने को उद्यत होता है, किन्तु वहां राजा यौगन्धरायण को और पद्मावती वासवदत्ता को पहचान लेती है । सब का मिलन होने से सभी प्रसन्न होते हैं। तापसवत्सराज नाटक में कुल 10 अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें 4 विकम्भक 1 प्रवेशक और 5 चूलिकाएं हैं। तारकासुरवधम् (काव्य) - ले मलय कवि । पिता- रामनाथ । ताराकल्पलता ले नारायणभट्ट । ताराकल्पलतापद्धति विद्यानन्द ( श्रीनिवास) । ले- नित्यानन्द (नारायणभट्ट) । गुरु ताराचन्द्रोदयम् - ले- मैथिल कवि जगन्नाथ। 17 वीं शती । 20 सर्गों के इस काव्य में ताराचंद्र नामक साधारण भूपति का चरित्र ग्रंथित किया है। तारातन्त्रम् ले पटल- 61 भैरव भैरवी संवादरूप। विषयतारा की तांत्रिक पूजा । राजशाही की वारेन्द्र सोसाइटी द्वारा सन् 1913 में प्रकाशित । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - तारापंचांगम् - ले- देवी-भैरव संवादरूप विषय 1. तारापटल, 2. तारापूजापद्धति, 3. तारासहस्रनाम, 4. त्रैलोक्यमोहन नामक ताराकवच (भैरवीतन्त्रोक्त), 5. महोग्रतारास्तवराज (ताराकल्पीय) । तारापद्धति श्लोक- 600 विषय संक्षेपतः तारा की पूजापद्धति । For Private and Personal Use Only - तारापूजारसायनम् ले- काशीनाथ। पिता भडोपनामक जयरामभट्ट । श्लोक- 280 विषय तारा पूजापद्धति तथा साधक के प्रातःकृत्य इ. । 1 ताराप्रदीपले लक्ष्मणदेशिक । श्लोक 1260 पटल- 5। ताराभक्तितरंगिणी (1) ले विमलानन्दनाथ । श्लोक20001 (2) ले. प्रकाशानन्दनाथ । 4 तरंग | विषय - कुल धर्मानुसार तारादेवी की पूजाविधि (3) से काशीनाथ नदिया के महाराज कृष्णचंद्र की प्रेरणा से लिखित । श्लोक - 6451 तरंग 61 विषय- प्रथम तरंग में नदिया के महाराज कृष्णचंद्र का वंशवर्णन। 2 से 5 तक मोक्षोपायों का निरूपण । तरंग 6 में कतिपय स्तुतियों द्वारा ताराभक्ति तथा तारा के शरणागतों की संसारनिवृत्ति का निवेदन । ताराभक्तिसुधार्णव गदाधर । ले- नरसिंह । पितामह श्रीकृष्ण । पिता - तारारहस्यम्ले श्रीकिशोरपुत्र श्रीराजेन्द्र शर्मा परिच्छेद । 22 | विषय - प्रथम 3 परिच्छेदों में प्रातःकृत्य, गुरुस्तोत्र आदि का विवरण, 4 में ज्ञान आदि का विधान, 5 में स्नान-शुद्धि, 6 में प्राणायामविधि, 7 में भूतशुद्धि, कालपुरुष, आदि का निरूपण, 8 में मानसपूजा का विवेचन, 9 में मंत्र आदि का विवेचन तथा 10 में अर्ध्य-शोधन निरूपण, 11 में पूजा पुष्प आदि का विचार, तारा स्तोत्र 12 में देवी पूजा का निरूपण, इ. । तारारहस्थवृत्तिटीका तारारहस्यतंत्र की यह 15 पटलों में टीका है। विषय नित्यपूजा, दीक्षाविधि, पुरवरण, काम्यनिर्णय, रहस्यनिर्णय, कुमारीपूजा, पुरारणरहस्य, तंत्रनिर्णय एवं नीलतंत्र संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 125
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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