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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तत्त्वदीपिका - ले. चित्सुखाचार्य । ई. 13 वीं शती । विषयअद्वैत वेदान्त तत्त्वप्रकाश ले. ज्ञानानन्द ब्रह्मचारी । कल्प 12 प्रथम कल्प (अपर नाम कुलसंगीता ) 5 विरामों में पूर्ण है। बहुत से तन्त्रों का अवलोकन कर ग्रन्थकार ने शाक्तों के आनन्द के लिए इस ग्रंथ का 1808 ई. में निर्माण किया । ग्रन्थकार की प्रतिज्ञा है कि मैं आत्मतत्त्व के प्रबोध तथा भ्रमविनाश के लिए इस ग्रंथ के प्रथम कल्प में कुलसंगीता का प्रतिपादन करता हूं। तत्त्व - प्रकाशिका माध्वमत की गुरुपरंपरा में 6 वें गुरु जयतीर्थ इस ग्रंथ के प्रणेता हैं। मध्वाचार्य रचित ब्रह्मसूत्र भाष्य की यह प्रौढ टीका मूल भाष्य के भावों को स्पष्ट करती हुई अनेक तर्क- युक्तियों को अग्रेसर करती है। इस पर रची गई व्याख्याएं प्रस्तुत ग्रंथ के महत्त्व तथा प्रामाण्य की बलवती निदर्शक है। अपने गुणों के कारण इस टीका ने पूर्व व्याख्याकारों को विस्मृत करा दिया। इसमें मंडन ही अधिक है। पर पक्ष का खंडन कम है। 1 तत्त्वप्रकाशिका ले. केशव काश्मीरी, ई. 13 वीं शती । गीता का निवार्कमतानुयायी भाष्य । तत्त्वप्रकाशिका (वेदस्तुति) - ले. केशवभट्ट काश्मीरी। तत्त्वप्रदीप ले. त्रिविक्रम पंडित । ई. 13 वीं शती । पिता सुब्रहमण्यभट्ट | तत्त्वप्रदीपिका ले. राधामोहन । गौतमीयतन्त्र पर टीका । तत्त्वबोध ले. प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज । - - - - www.kobatirth.org तत्त्वबोधिनी (1) नामान्तर श्री तत्त्वबोधिनी । ले. कृष्णानन्द जिज्ञासु । कल्प 15 | विषय - कल्प 1 में गुरुस्तोत्र, कवच । 2 में नित्य कर्मों का अनुष्ठान, पूजा ई. । 3 में शिवपूजा विधान 4 में पूजा के आधार तथा न्यासविवरण । 5 में साधारण पूजा। 6 में जपरहस्य । में पंचांग, पुरश्चरण । 8 में ग्रहण - पुरश्चरण इ. विवरण। 9 और 10 में होम का विवरण 11 में कुमारी पूजा इ. । 12 में षट्चक्रविधि, इ. । 13 में शान्ति, वश्य इ. षट्कर्म। 14 में शान्तिकल्प विधान । 15 में आथर्वणोक्त ज्वरशान्ति । तत्त्वबोधिनी (टीका) ले. ज्ञानेन्द्र सरस्वती। यह प्रायः प्रौढमनोरमा का संक्षेप है इनके शिष्य नीलकण्ठ वाजपेयी ने तत्त्वबोधिनी पर गूढार्थदीपिका नाम की व्याख्या लिखी है। इसी नीलकण्ठ ने महाभाष्यपर भाष्यतत्त्वरविवेक, सिद्धान्तकौमुदी पर सुखबोधिनी (अपरनाम व्याकरण- सिद्धान्तरहस्य) तथा परिभाषावृत्ति इन ग्रंथों की रचना की है। - - तत्त्वबोधिनी ले. महादेव विद्यावागीश । शंकराचार्य कृत आनन्दलहरी की टीका । रचनाकाल 1605 ई. । तत्त्वबोधिनी ले. नृसिंहाश्रम ई. 16 वीं शती - I तत्त्वमसि (रूपक) ले श्रीराम वेलणकर "सुरभारती" भोपाल से 1972 में प्रकाशित। एकांकी रूपक । छान्दोग्य उपनिषद् की वेतकेतु को आरुणी द्वारा दी गयी "तत्त्वमसि " की शिक्षा रूपकायित । कुलपात्र आठ । गीतसंख्या चार । तत्त्वमुक्तावलि ले नंदपंडित ई. 16-17 वीं शती । तत्त्वयोगबिन्दु ले. रामचन्द्र । विषय- राजयोग के क्रियायोग, ज्ञानयोग, चर्यायोग, हठयोग, कर्मयोग, लययोग, ध्यानयोग, मन्त्रयोग, लक्ष्ययोग, वासनायोग, शिवयोग, ब्रह्मयोग, अद्वैतयोग, राजयोग, और सिद्धयोग, नामक 15 भेदों का प्रतिपादन । तत्त्व-विवेक ले मध्वाचार्य द्वैत मत प्रतिपादक एक दार्शनिक निबंध । इसमें द्वैत मत के अनुसार पदार्थों की गणना और वर्गीकरण है। इसी प्रकार मध्वाचार्य ने भी तत्त्व - संख्यानम् नामक ग्रंथ में द्वैत मत के अनुसार पदार्थों की गणना एवं वर्गीकरण किया है । तत्त्वसंख्यानम् उनके "दशप्रकरण" के अन्तर्गत संकलित 10 दार्शनिक निबंधों में से एक निबंध है। तत्त्वविवेकपरीक्षा ले. बापूदेव शास्त्री विषय ज्योतिषशास्त्र । (2) ले. नृसिंह। ई. 19 वीं शती तत्त्वविमर्शिनी पाणिनीय प्रत्याहारसूत्रों पर नन्दिकेश्वर ने जो काशिकावृत्ति लिखी थी उस पर उपमन्यु ने लिखी हुई यह टीका है। उपमन्यु ने इन्द्र को धातुपाठ का प्रथम प्रवक्ता माना है। तत्त्वशतकम् ले. डॉ. ब्रह्मानंद शर्मा, भूतपूर्व निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान अजमेर निवासी। हिंदी अनुवाद के साथ प्रकाशित विषय श्रम का महत्त्व । तत्त्वसंख्यानम् (देखिए - तत्त्वविवेक) ले. मध्वाचार्य (ई. 12-13 वीं श) द्वैत मत विषयक ग्रंथ । तत्त्वसंग्रह ले. सोज्योति शिवाचार्य श्लोक 300 इसके ज्ञान, क्रिया और योग नामक तीनपाद हैं। विषय- शैवतन्त्र । तत्त्वसंग्रह - ले. शान्तरक्षित । ब्राह्मणों तथा बौद्धों के अन्यान्य सम्प्रदायों की कटु आलोचना इस में की है। इनके शिष्य कमलशील ने ग्रंथ पर टीका की है। लेखक ने दिङ्गनाग, धर्मकीर्ति आदि महान बौद्ध आचार्यों तथा उनके सिद्धान्तों की कड़ी आलोचना की है। न्याय मीमांसा, स्वख्य का खण्डन किया है। यह ग्रंथ, लेखक की अलौकिक प्रतिभा तथा पाण्डित्य का परिचायक है। कमलशील की व्याख्या सहित इस ग्रंथ का सम्पादन ए. कृष्णमाचार्य द्वारा हुआ है। तत्त्वसंग्रहदीपिका टिप्पणी ले. रामचन्द्र तर्कवागीश तत्त्वसंग्रहपत्रिका ले. कमलशील। बौद्धाचार्य । ई. 8 वीं शती। मूलग्रंथ अप्राप्य। केवल तिब्बती अनुवाद उपलब्ध है। शांतरक्षित नामक बौद्धाचार्य के तत्त्वसंग्रह नामक ग्रंथ पर लिखी हुई टीकाओं का सार इस ग्रंथ में संकलित किया है। तत्त्वसद्भावतन्त्रम् - देवी भैरव संवादरूप। यह तन्त्र दक्षिणाम्नाय से सम्बद्ध है अर्थात् इसका प्रतिपादन शिवजी ने अपने मुख 1 संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 119 For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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