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लिए राक्षसी माया के प्रयास हास्योत्पादक बन पडे हैं। गर्भाङक में सीतापहरण के कारण राम के विलाप से लेकर वालि के वध तक की कथा अद्भुत रस का उपयोग। प्रकाशन- 1) तन्जोर से 1906 ई. में। 2) मुम्बई से 1866 में (मराठी। अनुवाद सहित)। 3) मद्रास से 1881 मे अनूदित)। 4) मद्रास से 1883 तथा 1892 में प्रकाशित। इसी नाम के नाटक की रचना निम्न कवियों ने भी की है : 1) भट्टनारायण 2) सीताराम। जानकीपरिणयम् (काव्य)- ले.चक्रकवि। 17 वीं शती। पिता- अंबालोकनाथ। सर्गसंख्या 8। जानकीपरिणय (रूपक)- ले. मधुसूदन। रचनाकाल सन 1861 । सन 1894 में दरभंगा से प्रकाशित । अंकसंख्या- चार । जानकी-विक्रमम् - ले. हरिदास सिद्धान्तवागीश। रचनाकाल 1894 ई.। लेखकद्वारा 18 वर्ष की अवस्था में लिखा गया नाटक। कोटलिपाडा में अभिनीत । जानकीस्तवराज - इस ग्रंथ के 69 श्लोकों में से आरंभिक 45 पद्यों में भगवती सीताजी का नखशिखान्त वर्णन कवित्वपूर्ण शैली में किया गया है। वैष्णव संप्रदाय का यह मान्य सिद्धान्त है कि जब तक भगवती सीता के चरणों में नैसर्गिक अनुराग नहीं होता तब तक कोई भी साधक भगवान् श्रीराम के पादारविंद का दास नहीं बन सकता। जानकीहरणम् - कवि-कुमारदास। ई. 7 या 8 वीं शती। सर्ग- 201 विषय- रावणवध तक की रामकथा। यह काव्य रघुवंश की योग्यता का माना गया है। एक सुभाषितकार कहता है कि
जानकीहरणं कर्तुरघुवंशे स्थिते सति। कविः कुमारदासश्च रावणश्च यदि क्षमः ।। भावार्थ यह है कि रघुवंश के होते हएि अगर रावण जानकी हरण करने में समर्थ था तो रघुवंश (काव्य) होते हुए कुमारदास कवि भी जानकीहरण करने में समर्थ है। संपूर्ण काव्य का प्रथम प्रकाशन हिन्दी अनुवाद के साथ प्रयाग के पं. व्रजमोहन व्यासजी ने किया। जानक्यानन्दबोध - कवि- श्रीपति गोविन्द। . जाबालदर्शनोपनिषद - सामवेद का योगपरक उपनिषद् । दत्तात्रय द्वारा अपने शिष्य संकृति को यह उपनिषद् कथन किया गया। जाबालोपनिषद् - अथर्ववेद से संबंधित उपनिषद्। इसके छह खण्ड हैं। जाबाल्युपनिषद् - शैव उपनिषद् । जामविजयम् - ले. कवितार्किक । ई. 17 वीं शती। वाणीनाथ का पुत्र । सात सर्गों के इस काव्य में कच्छ के जामवंश का वर्णन है। जाम्बवती-कल्याणम् (नाटक) - ले. विजयनगर के राजा
कृष्णदेवराय। ई. 16 वीं शती। इसका प्रथम अभिनय विजयनगर के देवता विरूपाक्ष के महोत्सव के अवसर पर चैत्र मास में हुआ था। इस नाटक में श्रीकृष्ण के द्वारा स्यमन्तक मणि की प्राप्ति तथा जाम्बवती के साथ उनके परिणय की कथा पांच अंकों में निबद्ध है। जारजातशतकम् - ले.नीलकण्ठ। जॉर्जप्रशस्ति - 1) ले. भट्टनाथ। विजगापट्टण के निवासी। 2) ले. लालमणि शर्मा, मुरादाबाद के निवासी। जॉर्ज-चरितम् - ले. व्ही.जी.पद्मनाभ । विषय- आंग्ल अगिपति पंचमजार्ज का चरित्र। जॉर्जपंचकम् - रचयिता - महालिङ्गशास्त्री। मद्रास -निवासी। विषय- पंचम जॉर्ज की स्तुति । जॉर्जराज्यभिषेकम् - कवि- शिवराम पाण्डे । प्रयाग के निवासी। रचनां- सन ई. 1911 में। जॉर्जदेवचरितम् (नामान्तर राजभक्तिप्रदीपः ( ले. जी.व्ही. पद्मनाभ शास्त्री। श्रीरंगनिवासी। 2) ले. लक्ष्मणसूरि । जॉर्जवंशम् - ले. विद्यानाथ के. एस. अय्यास्वामी अय्यर । जॉर्जमहाराजविजयम् - ले. कोचा नरसिंह चारलु । जॉर्जाभिषेकदरबारम् - कवि- शिवराम पाण्डे । प्रयाग-निवासी। ई. 1911 में रचित। जालन्धरपीठदीपिका - ले. प्रह्लादानंद । श्लोक 600 । जिनचतुर्विंशातिस्तोत्रम् - ले. जिनचन्द्र। ई. 15 वीं शती। जिनदत्तचरितम् - ले. गुणभद्र । जैनाचार्य । ई.9 वीं शती। जिनशतकम् - ले.समन्तभद्र। जैनाचार्य। ई. प्रथम शती। पिता- शान्तिवर्मा। जिनसहस्रनामटीका - ले. श्रुतसागरसुरि। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। जीरापल्ली-पार्श्वनाथस्तवनम् - ले. पद्मनन्दी। जैनाचार्य। ई. 13 वीं शती। इस स्तोत्र में पद्म नामक 10 अध्याय हैं। जीवच्छ्राद्धप्रयोग - ले. नारायणभट्ट। ई. 16 वीं शती। पितारामेश्वरभट्ट। जीवनतत्त्वप्रदीपिका - ले. तृतीय नेमिचन्द्र। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। जीवनसार - लेखक- श्रीराम वेलणकर। अपने गुरु भारतरत्न डा.पाण्डुरंग वामन काणे का, अमृत महोत्सव के उपलक्ष में, चरित्र वर्णन । मराठी के पुराने और नए छन्द इस में प्रयुक्त हैं। जीवन्धरचरितम् - ले. शुभचन्द्र । जैनाचार्य । ई. 16-17 वीं शती। जीवन्मुक्ति-कल्याणम् (नाटक) - ले. नल्ला दीक्षित (भूमिनाथ) ई. 17-18 वीं शती। कवि की प्रगल्भ अवस्था में लिखी हुई कृति। प्रथम अभिनय मध्यार्जुन प्रभु की यात्रा
114/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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