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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकाशन होता है। प्रकाशन स्थल- जयतु संस्कृतम् कार्यालय, रानी पोखरी 10/558 भोटाहिटी काठमाण्डू । जयधवला टीका ले- वीरसेन । जैनाचार्य। ई. 8 वीं शती । कषायप्राभृत की टीका । श्लोकसंख्या 20,000 1 जयनगररंगम् कवि - मल्लभट्ट हरिवल्लभ । विषय-जयपुर का इतिहास और नरेशों के चरित्र मुंबई में मुद्रित। जयन्तिकाले जग्गु श्री बकुल भूषण का अनुसरण करने हेतु लिखित कथा । जयन्ती 1 जनवरी 1907 से त्रिवेन्द्रम मारुताचार्य और लक्ष्मीनन्दन स्वामी के वाणभट्ट की पद्धति - (केरल) से कोमल सम्पादकत्व में इस प्रथम संस्कृत दैनिक पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ । ग्राह और अर्थाभाव के कारण यह पत्र शीघ्र पड़ गया। जयन्ती ले- हरिदास सिद्धान्तवागीश (ई. 19-20 वीं शती) श्रीहर्ष के नैषधीय काव्य की व्याख्या । जयन्तीनिर्णय ले मध्वाचार्य ई. 12-13 वीं शती । जयन्तु कुमाउनीयाः - लेखिका-लीला राव दयाल । सन् 1966 में "विश्वसंस्कृतम्" में प्रकाशित दृश्यसंख्या तीन भावुकतापूर्ण संवाद। कुमाउनी गीतों का समावेश । सैनिक जीवन का वास्तव चित्रण इसमें है । कथासार जनरल हरीश्वर दयाल के नेतृत्व में भारतीय सेना सक्रिय है। अधिकांश सैनिक फुफुस रोग, आदि से पीड़ित हैं, उनके अस्त्र शस्त्र अपर्याप्त एवं पुराने हैं और उनके पास ऊनी वस्त्रों की कमी है। कर्नल शेखर के साथ जनरल हरीश्वर के नेतृत्व में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है, परंतु विदेशमंत्री वर्मा आदेश देते हैं कि इतने संकटों से प्राप्त इस प्रदेश को अमरीकादि देशों के मन्त्रियों की इच्छानुसार छोड देना है। जयपुरराजवंशावली ले श्रीरामनाथ नन्द। जयपुर के निवासी । जयपुरविलास - कवि आयुर्वेदाचार्य कृष्णराम । जयपुर निवासी । (ई. 19 वीं शती)। जयपुर के अनेक राजाओं का चरित्र इस काव्य में वर्णित है । - - www.kobatirth.org - - जयमंगला मराठी के प्रसिद्ध कवि यशवन्त के काव्य का अनुवाद अनुवादक - श्रीराम वेलणकर। जयरत्नाकरम् (नाटक) ले- शक्तिवल्लभ अर्ज्याल । सन् 1792 में लिखित । नेपाल सांस्कृतिक परिषद् द्वारा सन् 1965 में प्रकाशित। प्रथम अभिनय राजा रणबहादुर के समक्ष । भिन्न नाट्यपरम्परा । अंकों के स्थान पर "कल्लोल" शब्द का प्रयोग किया है। कल्लोल संख्या - ग्यारह । शास्त्रोचित रंगमंच की आवश्यकता नहीं। चारों ओर प्रेक्षक और बीच में पात्र पात्रों को 'समार्जि" संज्ञा और नाट्यप्रयोग को "ताण्डव" । सभी पात्रों से बढ कर सूत्रधार तथा नटी का महत्त्व है। वे दोनों अन्त तक मंच पर उपस्थित रहते हैं। सभी पात्रों की भाषा संस्कृत है, प्राकृत का प्रयोग नहीं । कथावस्तु का प्रपंच सूत्रधार 112 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - नटी के संवादों द्वारा प्रस्तुत होता है । कतिपय स्थानों पर नाट्यशास्त्रीय नियमों का उल्लंघन हुआ है। चम्पूतत्त्व की विशेष योजना । अनङ्गमंजरी नामक सारिका तथा वंजुल नामक शुक का अन्य पात्रों के साथ संवाद । ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जानकारी इसमें भरपूर है । ब्राह्मणों की तथा कुलाङ्गनाओं की भ्रष्टता, प्रतिलोभ विवाह से उत्पन्न वर्णसंकर जातियां, फिरंगी, गनीम, कूर्माचल की कन्या का दहेज लेने की प्रथा इत्यादि पर प्रकाश डाला है। प्रमुख कथावस्तु की उपेक्षा करने वाले लम्बे संवादों की भरमार है। नेपाली रहनसहन की झांकियां, स्त्रीजाति की निन्दा और कहीं कहीं अश्लील वर्णन भी है। प्रधान रूप से श्रीरणबहादुर शाह के पराक्रम का वर्णन इसमें है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयवंशम् - ले-पर्वणीकर सीताराम। ई. 18 वीं शती । जयद्रथयामलम् पार्वती महेश्वर संवादरूप। 4 षट्कों में विभक्त । प्रत्येक षट्क में 6000 श्लोक। उत्तरषट्क में बगलामुखी की पूजा प्रतिपादित है। दुर्योधन की बहिन का पति सिन्धुदेश का राजा जयद्रथ भूतल के सकल भोगों को अनित्य समझकर, विशाल समृद्ध राज्य त्याग कर हिमालय स्थित बदरिकाश्रम चला गया। जगन्माता पार्वती को उसने प्रसन्न किया। पार्वतीजी ने उसका शिवजी से परिचय करा दिया। इन तीनों का संवादरूप यह ग्रंथ है। जयद्रथ ने मुक्ति के विषय में प्रथम प्रश्न पूछा। उसका भगवान् शिवजी ने सांख्य मत के अनुसार उत्तर दिया। मुक्ति के लिए काल-संकर्षिणी अत्यन्त सरल उपाय बता कर अमुक-अमुक व्यक्ति इसका अवलम्बन कर सफल मनोरथ हुए। उन व्यक्तियों के नाम भी इसमें वर्णित हैं। जयसिंहकल्पद्रुम - - रत्नाकर पण्डित | जयसिंहराजं प्रति श्रीमच्छत्रपतेः शिवप्रभोः पत्रम् - शिवाजी महाराज का राजा जयसिंह को अव्याज देशभक्ति से ओतप्रोत मूल पारसी पत्र का अनुवाद अनेक प्रादेशिक भाषाओं में हुआ है। संस्कृत अनुवाद कविराज ने 60 श्लोको में किया है। उत्कृष्ट अनुवाद का यह एक उदाहरण है। जयसिंहाश्वमेधीयम् - ले. मु. नरसिंहाचार्य । जयाक्षरसंहिता (या जयाख्यसंहिता ज्ञानलक्षणी)- ले. एकायनाचार्य नारायण । अध्याय 27 विषय- स्नानविधि मानसयाग मल्लसन्तर्पण, चार आश्रमों के कर्म, प्रेतशास्त्रविधि, अन्त्येष्टिविधि प्रायश्चित्तविधि इ. श्लोक 4800 For Private and Personal Use Only जयाख्य -संहिता पांचरात्र साहित्य के अंतर्गत निर्मित 215 संहिताओं में से एक प्रमुख संहिता। इसका मुद्रण भी हो चुका है। इस संहिता में 33 पटल हैं। इस संहिता के वक्ता हैं साक्षात् नारायण । इस संहिता में सात्वत पौष्कर व जयाख्य इन तीन तंत्रों को, "रत्नत्रय" बताया गया है।
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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