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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लम्बोदर की स्तुति कर। लम्बोदर अपने दांत से राक्षस को चरक, कनिष्क के राजवैद्य थे पर इस संबंध में विद्वानों में विदीर्ण कर नायिका को छुडा कर नायक को सौंपता है। शुभ । मतैक्य नहीं है। चरक संहिता में मुख्य रूप से काय-चिकित्सा मुहूर्त पर उनका विवाह होता है। का वर्णन है। इसमें वर्णित विषय हैं- रसायन, वाजीकरण, चंद्रिका - महादेव दंडवते कृत हिरण्यकेशि श्रौतसूत्र की टीका । ज्वर, रक्त, पित्त, गुल्म, प्रमेह, कुष्ट, राजयक्ष्मा, उन्माद, अपस्मार, चन्द्रोदयांकजालम् - ले. दिनकर। विषय- ज्योतिषशास्त्र। क्षत, शोध, उदर अर्श ग्रहणी पाण्डु, श्वास, कास, अतिसार, चन्द्रोन्मीलनम् - पटल 49। बहुत से ग्रंथों से संगृहीत । छर्दि, विसर्य, तृष्णा, विष, मदात्यय, द्विवर्णीय, त्रिमर्मीय, ऊरुस्तंभ, रुद्रयामल, ब्रह्मायामल, विष्णुयामल, उमायामल, बुद्धयामल इन वातव्याधि वात-शोणित व योनिव्यापद्। “चरक-संहिता" में पांच यामलों के उद्धरण विशेष रूप से लिये गये हैं। विविध दर्शन व अर्थशास्त्र के भी विषय वर्णित हैं तथा अनेक स्थानों तांत्रिक विषयों का वर्णन करने वाला विशाल ग्रंथ । व व्यक्तियों के संकेत के कारण इसका सांस्कृतिक महत्त्व अत्यधिक बढा हुआ है। यह ग्रंथ भारतीय चिकित्सा-शास्त्र चापस्तव - ले. रामभद्र दीक्षित। कुम्भकोणं निवासी। ई. 17 की प्रमाणभूत रचना के रूप में प्रतिष्ठित है। इसका अनुवाद वीं शती। चपेटाहतिस्तुति - ले.श्रीकृष्ण ब्रह्मतन्त्र परकालस्वामी। ई. 19 संसार की प्रसिद्ध भाषाओं में हो चुका है। इसकी हिन्दी वीं शती। व्याख्या (विद्योतिनी) पं. काशीनाथ शास्त्री व डॉ. गोरखनाथ चतुर्वेदी ने की है। चमत्कार-चन्द्रिका - 1) विश्वनाथ चक्रवर्ती। ई. 17 वीं शती। 2) ले. कृष्णरूप । विषय- कृष्णचरित्र। 3) ले. कर्णपूर।। चरित्रशुद्धिविधानम् - ले. शुभचन्द्र। जैनाचार्य। ई. 16-17 कांचनपाड (बंगाल) के निवासी ई. 16 वीं शती। शती। चम्पूराघवम् - ले. आसुरी अनन्ताचार्य। ई. 19 वीं शती। चाणक्य -विजयम् (नाटक) ले. विश्वेश्वर विद्याभूषण (श. चंपूरामायणम् (युद्धकांड) - ले. लक्ष्मण कवि। इस ग्रंथ 20) रूपकमंजरी ग्रंथमाला में 1967 ई. में कलकत्ता से पर भोज कृत "चंपूरामायण" का अत्यधिक प्रभाव है और प्रकाशित । अंकसंख्या- पांच। प्रत्येक अंक दृश्यों में विभाजित। यह चंपूरामायण के ही साथ प्रकाशित है। ग्रंथारंभ में भोज विष्कम्भक या प्रवेशक का अभाव। प्रसंगोचित एकोक्तियाँ । की वंदना की गयी है। संवाद सरल तथा लघु। छायातत्त्व का समावेश। नृत्य, वीणा 2) सीताराम शास्त्री। काकरपारती (आंध) निवासी। वादन, गीत आदि से भरपूर। इसमें चाणक्य की सहायता से चरणव्यूह - इसके रचयिता शौनक मुनि कहे जाते हैं। इसमें चन्द्रगुप्त की नन्द पर विजय वर्णित है और अन्त में है चार भागों में क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद भारतीय एकता का सन्देश। की जानकारी दी गयी है। चाणक्य-विजयम्- ले.रमानाथ मिश्र। जन्म 1904। रचना ऋग्वेद - वेदाध्ययनविधि और पारायण विधि के चार-चार सन 1938 में । ऑल इंण्डिया ओरिएन्टल कान्फरेन्स के भेद बताये गये हैं। चर्चा, श्रावक, चर्चक और श्रवणीयपार बीसवें अधिवेशन में 1959 में भुवनेश्वर में अभिनीत । अंकसंख्या वेदाध्ययन-विधि के और क्रमपार, क्रमपद, क्रमजटा और पांच। अंक दृश्यों में विभाजित । कथावस्तु है नन्द का वध, क्रमदण्ड, पारायण-विधि के भेद हैं। चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक तथा राक्षस द्वारा चन्द्रगुप्त के मंत्रिपद यजुर्वेद के 86, सामवेद के 1000, अथर्ववेद के 9 भेद की स्वीकृति। बताये गये हैं। इस ग्रंथ की महीधरकृत टीका वेदविषयक चातुर्मास्यप्रयोग - ले. वैद्यनाथ पायगुंडे । ई. 18 वीं शती। सामान्यज्ञान की दृष्टि से अत्यंत उपोदय मानी जाती है। चान्द्रवृत्ति - इस ग्रंथ पर अनेक वृत्तियां लिखी हैं, वे अप्राप्य इसके फलश्रुति खण्ड में कहा गया है कि गर्भिणी स्त्री हैं। केवल एक वृत्ति जर्मनी में रोमन अक्षरों में है। इस पर को इस ग्रंथ के श्रवण से पुत्रसंतति होगी। किसी धर्मदास का कर्तृत्व अंकित है पर युधिष्ठिर मीमांसक चरकन्यास- ले. हरिचन्द्र। ई. 4 थी शती। जैनकवि। पिता- को संदेह है कि यही चन्द्रगोमी की है। आदिदेव। माता-रथ्या। चांद्रव्याकरणम् - ले. चन्द्रगोमी। ई. 5 वीं शती। पाणिनीय चरकसंहिता - आयुर्वेद शास्त्र का सुप्रसिद्ध ग्रंथ। इस ग्रंथ सिद्धान्तों का सरलीकरण इस ग्रंथ में किया है। पारिभाषिक के प्रतिसंस्कर्ता चरक हैं। इनका समय इसा की प्रथम शताब्दी संज्ञाओं का प्रयोग न करना इस व्याकरण का वैशिष्ट्य है। के आसपास माना गया है। विद्वानों का कहना हैं कि चरक पाणिनीय तन्त्र की अपेक्षा तघु। विस्पष्ट तथा कातन्त्र की एक शाखा है, जिसका संबंध वैशंपायन से है। "कृष्णयजुर्वेद" अपेक्षा संपूर्ण है। पाणिनीय तन्त्र के जिन शब्दों का साधुत्व से संबद्ध व्यक्ति चरक कहे जाते थे। उन्ही में से किसी एक वार्तिक और इष्टि द्वारा होता है, वे शब्द इसमें सूत्रों में ने इस संहिता का प्रतिसंस्कार किया है। कहा जाता है कि समाविष्ट हैं। पतंजलि द्वारा प्रत्याख्यात शब्द इसमें नहीं हैं। चाद्रयामा 106/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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