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व्याकरणकार थे। इन्होंने अपने व्याकरण पर वृत्ति और महान्या नामक ग्रंथ लिखे है ।
1) ले. नेमिचन्द्र ।
ले. माधवचन्द्र
क्षपणकसार ( क्षपणक शास्त्रसार) जैनाचार्य । ई. 10 वीं शती का (उत्तरार्ध) । 2 ) त्रैविद्य। जैनाचार्य । ई. 13 वीं शती का प्रथम चरण । क्षीरतरंगिणी ले. क्षीरस्वामी । ई. 11 से 12 वीं शती । पिता- ईश्वरस्वामी । क्षीराब्धिशयनम् (रूपक) ले. श्रीनिवासाचार्यई 19 वीं शती । क्षत्क्षेमीयम् (प्रहसन ) - ले. जीव न्यायतीर्थ (जन्म सन 1894) सन 1972 में कलकत्ता से रूपकचक्रम्" संग्रह में प्रकाशित हुआ। इसका प्रथम अभिनय संस्कृत साहित्य समाज के प्रतिष्ठा दिवस पर हुआ। कथासार यमराज का कर्मकर चित्रगुप्त सेठ रंगनाथ से सत्कार पाता है और उसे बताता है। कि तुम्हारी आयु केवल एक वर्ष शेष है किन्तु दीनदुखियों के घरों पर तृणाच्छादन कराओगे तो दीर्घायु बनोगे। द्वितीय मुखसन्धि में यम तथा चित्रगुप्त की उपस्थिति में रंगनाथ यमपुरी पहुंचता है। चित्रगुप्त की मंत्रणा से यम के आते ही रंगनाथ छींक देता है। यम के मुख से "जीव, जीव" शब्द निकलते हैं। चित्रगुप्त कहता है कि अब तो इसे जीवित करना पडेगा । फिर उसके पुण्य का लेखा-जोखा देखा जाता है, और तृणाच्छादन के पुण्य के बल पर उसे फिर से जीवदान मिलता है। क्षेत्रतत्त्वदीपिका १) ले इलातुर रामस्वामी शास्त्री । ई. 1823 में लिखित भूमितिशास्त्रीय रचना |
क्षेत्रतत्त्वदीपिका - 2 ) ले. योगध्यान मिश्र । सन 1928 में लिखित भूमिति विषयक रचना ।
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खंडखाद्यम् ले. ब्रह्मगुप्त ई. 6 वीं शती विषय ज्योतिषशास्त्र । खण्डनखण्डखाद्य ले. श्रीहर्ष। ई. 12 वीं शती । वेदान्त शास्त्र का एक दुर्बोध ग्रंथ । इसमें उदयनाचार्य के मत का खंडन किया है।
खण्डनखण्डखाद्यदीधिति
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ले. रघुनाथ शिरोमणि । खलावहेलनम् ले. वेङ्कटराम नरसिंहाचार्य ।
खाण्डवदहनम् (महाकाव्यम्) ले. ललितमोहन भट्टाचार्य किरातार्जुनीयम् की शैली में लिखित
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खिलपांठ इस नाम का कोई स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है। व्याकरणशास्त्र में शब्दानुशासन अथवा सूत्रपाठ प्रमुख है। धातुपाठ, गणपाठ, उणादिपाठ तथा लिंगानुशासन गौण होने से उन्हे "खिलपाठ" कहते हैं। काशिका, (अष्टाध्यायी की व्याख्या) ह्रदयहारिणी (सरस्वतीकंठाभरण की व्याख्या) आदि ग्रंथों में धातुपाठ आदि शब्दानुशासन के चार अंगों के लिए "खिलपाठ" शब्द का प्रयोग किया है। स्वयं पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन
से संबद्ध धातुपाठ, गणपाठ, उणादिपाठ और लिंगानुशासन इन चार खिलपाठों का प्रवचन किया था। पाणिनीय व्याकरण के ये खिलपाठ, उनके व्याख्यान ग्रंथों सहित उपलब्ध हैं। पाणिनि से उत्तरकालीन प्रायः सभी व्याकरणशास्त्रकारों ने अपने खिलपाठ लिखे हैं। खांडिकीय शाखा खाण्डिक का नाम पाणिनीय सूत्र, मैत्रायणी संहिता तथा जैमिनीय ब्राह्मण में मिलता है। इस शाखा की संहिता या ब्राह्मण इनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं । चरणव्यूह में खाण्डिकेयों की पांच शाखाएं कही गई है । चरणव्यूह के अनुसार खाण्डिकीय शाखा के विषय में दो प्रकार के पाठ उपलब्ध है- 1) कालेता, शाट्यायनी, हिरण्यकेशी, भारद्वाजी आपस्तम्बी 2) आपस्तम्बी, बोधायनी, सत्याषाढी, हिरण्यकेशी और औधेयी आपस्तम्ब, बौधायन, सत्याषाढ, हिरण्यकेशी और भारद्वाज ये सौत्र शाखाएं हैं। इन सब के कल्प ग्रंथ उपलब्ध हैं। कालेता, शाट्यायनी और औधेयी शाखाएं नाममात्र शेष है।
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खादिरगृहसूत्रम् - यह गोभिल गृह्यसूत्र की संक्षिप्त आवृत्ति है। खेचरीपटलम् पिशाची या भूतिनी को वश में लाने के लिए उनकी गुप्तपूजा का विधान इसमें वर्णित है। यह माना जाता है कि यह किसी तंत्र से अंशतः गृहीत हुआ है। खेचरीविद्या महाकाल - योगशास्त्रान्तर्गत उमा महेश्वर संवादरूप यह ग्रंथ चार पटलों में पूर्ण है। श्लोक संख्या 300 है। खेटकृतिले राजपण्डित खाण्डेकर विषय ज्योतिषशास्त्र
ख्रिस्तचरितम् (अर्थात् मिथि मार्क लूक योहन-विरचितम्- सुसंवादचतुष्टयम्) बैटिस्ट मिशन मुद्रणालय कलकत्ता द्वारा, ई. 1878 में मुद्रित।
ख्रिस्तधर्मकौमुदी ले. जे. आर. बेलंटाइन विषय-हिन्दुत्व । दर्शन से ईसाई धर्म की भिन्नता । ई. 1859 में लन्दन में प्रकाशित । ख्रिस्तधर्मकौमुदी - समालोचना ले. वज्रलाल मुखोपाध्याय । विषय- डॉ. बेलेन्टाइन ने ख्रिस्तधर्मकौमुदी में हिन्दुधर्म की निंदा की। उस निंदा का प्रत्युतर सन् 1894 में कलकत्ता में प्रकाशित ।
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ख्रिस्तयज्ञविधि - मूल लैटिन ग्रंथ का अनुवाद । अनुवादकएम्ब्रोस सुरेशचन्द्र राय । कलकत्ता में 1926 में प्रकाशित । ख्रिस्तुभागवतम् ले पी.सी. देवासिया ख्रिस्ती मतानुयायी । केरल निवासी । ईसा मसीह का चरित्र पौराणिक पद्धति से पद्य रूप में लिखा गया है। 1980 में प्रस्तुत महाकाव्य को साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ। गकारादि-गणपति सहस्रनाम इस स्तोत्र का समावेश रुद्रयामलतंत्र में होता है। शिव-पार्वती संवाद रूप श्लोक - 250। गंगागुणादर्शचम्पू - ले दत्तात्रेय वासुदेव निगुडकर ई.
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 89