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सम्मेलन द्वारा दो खण्डों में प्रकाशित “हिन्दी साहित्य कोश" की भांति ये दोनों कोश संस्कृत वाङ्मय के जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त उपादेय सिद्ध हुए।
किन्तु समग्र संस्कृत वाङ्मय का विवेचन प्रस्तुत करनेवाले सर्वांगीण कोश का अब तक एक प्रकार से अभाव ही रहा। संस्कृत के प्रतिष्ठित विद्वान और समर्पित कार्यकर्ता डा. श्रीधर भास्कर वर्णेकर द्वारा सम्पादित इस महत्वपूर्ण ग्रंथ "संस्कृत वाङ्मय कोश" के माध्यम से इस अभाव को दूर करने का विनम्र प्रयास भारतीय भाषा परिषद कर रही है। यह परिषद का अहोभाग्य है कि इस अमोघ कार्य को सम्पन्न करने के लिए डॉ. वर्णेकर जैसे वाङ्मय तपस्वी की अनर्घ सेवाएं मिली हैं। विश्वविद्यालय की सेवा से निवृत्त होते ही परिषद के अनुरोध पर केवल वाङ्मय सेवा की भावना से प्रेरित होकर वे इस बृहद् योजना में प्रवृत्त हुए और पांच छह वर्षों में उन्होंने यह महान कार्य सम्पन्न किया। संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति के प्रकांड विद्वान, समालोचक, कवि और चिंतक होने के कारण डॉ. वर्णेकर इस दुष्कर कार्य को सुकर बना सके, अन्यथा संस्कृत वाङ्मय, संस्कृत के प्रसिद्ध कोशकार वामन शिवराम आपटे के शब्दों में, इतना विशालकाय है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी मनीषी और मेधावी क्यों न हो, जीवन भर सश्रम अध्ययन करने पर भी समग्र रूप से इसमें निष्णात नहीं बन सकता। वैदिक वाङ्मय से लेकर अधुनातन सृजनात्मक रचना तक हजारों वर्षों से चली आ रही इस विराट् परंपरा को कोश की कौस्तुभ काया में समाविष्ट करना साधारण कार्य नहीं है और यही कार्य डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर ने किया है।
इस कोश के दो खण्ड हैं - ग्रंथकार खण्ड और ग्रंथ खण्ड। प्रथम खण्ड (ग्रंथकार खण्ड) की पूर्व पीठिका के रूप में "संस्कृत वाङ्मय दर्शन" के नाम से समस्त संस्कृत वाङ्मय के अंतरंग का दिग्दर्शन बारह प्रकरणों में किया गया है। प्रथम खण्ड में लगभग 2700 प्रविष्टियां हैं और द्वितीय खण्ड में 9000 से अधिक हैं। ग्रंथकार
खण्ड के अंतर्गत ग्रंथों का भी संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक होता है जब कि ग्रंथ खण्ड में उन्हीं ग्रंथों का विस्तार से विवेचन किया जाता है। इससे कहीं कहीं पुनरूक्ति का आभास हो सकता है। पर जहां तक संभव है, इससे कोश को मुक्त रखने का ही प्रयास किया गया है।
इस कोश की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें केवल संस्कृत साहित्य से संबंधित प्रविष्टियां ही नहीं, बल्कि धर्म, दर्शन, ज्योतिष, शिल्प, संगीत आदि अनेक विषयों पर संस्कृत में रचित विशाल तथा वैविध्यपूर्ण वाङ्मय का संक्षिप्त परिचय समाविष्ट है। इसलिए यह केवल संस्कृत 'साहित्य' कोश न होकर सच्चे अर्थों में संस्कृत 'वाङ्मय' कोश है। इस दृष्टि से हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में यह अपने ढंग का पहला प्रयास है।
__ यह सारा कार्य निष्काम कर्मयोगी डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर ने अर्थ-निरपेक्ष दृष्टि से सम्पन्न कर परिषद को मान-सम्मान प्रदान किया है, इसलिए वे सच्चे अर्थो में मानद और मान्य हैं।
यह बात डॉ. वर्णेकर भी स्वीकार करते हैं और हम भी बड़ी विनम्रता के साथ निवेदित करना चाहते हैं कि इस कोश में संस्कृत वाङ्मय के संबंध में “बहुत कुछ" होने पर भी "सब कुछ" नहीं है। यह एक महान कार्य का शुभारंभ है जो कि न समग्र होने का दावा कर सकता है और न मौलिक कहा जा सकता है। यह ध्येयनिष्ठ और अध्ययन साध्य संकलन है जिसमें विवेक विनय का आश्रय लेकर विकास के पथ पर आगे बढ़ना चाहता है।
इस महत्त्वपूर्ण प्रकाशन को यथोचित महत्त्व देकर स्तवनीय मनोदय से मुद्रण कार्य को सुरुचिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए भाग्यश्री फोटोटाईपसेटर्स एण्ड ऑफसेट प्रिंटर्स, नागपुर के प्रति आभार प्रकट करना परिषद अपना कर्तव्य समझती है।
आशा है, संस्कृत के विद्वान, अध्येता, प्रेमी और आराधक इस साधना का स्वागत करेंगे और परिषद के इस प्रयास को अपने "परितोष"पूर्वक साधुवाद से सप्रत्यय बनाएंगे।
पांडुरंग राव निदेशक
भारतीय भाषा परिषद 36-ए, शेक्सपीयर सरणी, कलकत्ता-700017
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