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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट (उ) - (सूत्र-वेदसंबंध) श्रोतसूत्र ऋग्वेदीय (1) शांखायन (2) आश्वालायन शुक्ल यजुर्वेदीय (1) कात्यायन कृष्ण यजुर्वेदीय (1) आपस्तंब (2) हिरण्यकेशी (3) बौधायन (4) भारद्वाज (5) मानव (6) वैखानस सामवेदीय (1) मशक (2) लाट्यायन (3) द्राह्यायण अथर्ववेदीय (1) वैतान गृह्यसूत्र ऋग्वेद (1) शांखायन (2) आश्वालायन (3) शांबव्य सामवेद (1) गोभिल (2) खादिर अथर्ववेद (1) कौशिक कृष्णजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद (1) आपस्तंब (1) पारस्कर (2) हिरण्यकेशी (वाजसनेय अथवा काठक) (3) बौधायन (4) भारद्वाज (5) मानव (6) वैखानस (7) काठक धर्मसूत्र ऋग्वेद शुक्ल यजु साम अथर्व कृष्णयजु (1) आपस्तंब (2) हिरण्यकेशी (3) बौधायन (4) मानव (5) वैखानस 3 "धर्मशास्त्र" संस्कृत वाङमय में वेदों से लेकर अनेक ग्रथों में "धर्म" शब्द का भिन्न भिन्न स्थानों पर विविध अर्थों में प्रयोग हुआ है। मीमांसको ने “वेदप्रतिपाद्यः प्रयोजनवदर्थो धर्मः" अथवा "वेदेन प्रयोजनम् उद्दिश्य विधीयमानोऽयो धर्मः" इत्यादि वाक्यों में धर्म शब्द का विशिष्ट अर्थ बताया है, जिस के अनुसार मानव जीवन की उद्देश्य पूर्ति के लिए, वेद वचनोंद्वारा आदेशित कर्तव्य को धर्म कहा है। मनुस्मृति में "वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः । एतच्चतुर्विधं प्राहु। साक्षाद् धर्मस्य लक्षणम्।। (2-12) इस सुप्रसिद्ध श्लोक में वेदवचन, स्मृतिवचन, सजनों का आचार और स्वतः का प्रिय ये चार धर्म के अर्थात् कर्तव्य कर्मों के प्रबोधन, तत्त्व बताये हैं। याज्ञवल्क्य स्मृति की टीका-मिताक्षरा में" स च धर्मः षड्विधः। वर्णधर्मः आश्रमधर्मः वर्णाश्रमधर्मः, गुणधर्मः, निमित्तधर्मः साधारणधर्मश्च" - इस वाक्य में धर्म के छ: प्रकार बताये हैं। मनुस्मृति में ही संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 35 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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