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शक्ति को परास्त किया और अंत में सुदास की हत्या करवा दी।
वसिष्ठ से वैमनस्य के सन्दर्भ में विश्वामित्र ने कुछ ऋचाएं। लिखी हैं जो "वसिष्ठद्वेषिणी" के नाम से जानी जाती हैं। वसिष्ठ गोत्री जन इन ऋचाओं का पाठ नहीं करते। दुर्गाचार्य नामक वसिष्ठ-गोत्री भाष्यकार ने ऋग्वेद के अपने भाष्य में उन ऋचाओं को अछूत छोड दिया।
विश्वामित्र को अपने कर्तृत्व का अभिमान था। एक ऋचा में उनका यह अभिमान झलकता है "विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनम्" - अर्थात् विश्वामित्र का यह ब्रह्म (याने सूक्त) ही भारतजनों की रक्षा कर रहा है।
इनके 100 पुत्र थे, जिनमें से आधे पुत्रों को अपनी आज्ञा की अवहेलना करने पर इन्होंने शाप दिया जिससे वे आगे चल कर दस्यु जमात के जनक बने। शुनःशेष को बलिवेदी से मुक्त कराने की गाथा से यह ध्वनित होता है कि विश्वामित्र नरबलि के विरुद्ध थे।
महाभारत और पुराणों में वर्णित विश्वामित्र सम्बन्धी अनेक घटनाओं को विद्वज्जन अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हैं।
(2) एक धर्मशास्त्री। याज्ञवल्क्य ने धर्मशास्त्रियों की अपनी सूची में इनका नामोल्लेख किया है तथा अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका, कालविवेक आदि ग्रंथों में इनके अनेक श्लोक उद्धरित किये गये हैं। ये श्लोक पंचमहापातक, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि विषयों से सम्बन्धित हैं। इनकी धर्म सम्बन्धी व्याख्या इस प्रकार है :
यमार्याः क्रियमाणं तु शंसन्त्यागमवेदिनः।
स धर्मों यं विगर्हन्ति तमधर्म प्रचक्षते ।। अर्थात् वेदवेत्ता आचार्य जिन कृत्यों की प्रशंसा करते है। उन्हें धर्म तथा जिनकी निंदा करते है उन्हें अधर्म कहते है। इनकी एक अन्य स्मृति श्लोकबद्ध है जिसके 9 अध्याय है। विश्वास भिक्षु - ई. 14 वीं शती। काशी में निवास । सांख्य-प्रवचन-भाष्य, सांख्यसार, योगवार्तिक, योगसारसंग्रह, ब्रह्मसूत्रभाष्यविज्ञामृत, ब्रह्मादर्श, पाखण्डमत-खंडन, श्वेताश्वेतरोपनिषद्भाष्य आदि ग्रंथों की रचना आपने की। अपने ग्रंथों में आपने शंकराचार्यजी के अनुयायियों को पाखंडी कहा है और उनके अद्वैत वेदान्त मत का खंडन भी किया है। विश्वेश्वर कवि - 18 वीं शती। अल्मोडा के निवासी। रचनाएं- रुक्मिणी-परिणय व नवमालिका नामक दो रूपक। विश्वेश्वर तर्काचार्य - कातन्त्र व्याकरण की पंजिका नामक व्याख्या के लेखक। इसके अलावा जिन प्रभासूरि, रामचंद्र
और कुशल की पंजिका-व्याख्या अप्राप्य है। विश्वेश्वर दयालु • ई. 20 वीं शती। इटावा (उ.प्र.) के निवासी। चिकित्सक-चूडामणि। “अनुभूत-योगमाला' पत्रिका के सम्पादक। वैद्य सम्मेलन में प्रायः अध्यक्षपद प्राप्त । मुकुन्दलीलामृत तथा प्रसन्नहनुमन्नाटक के प्रणेता। एक ख्यातनाम देशभक्त।
विश्वेश्वरनाथ रेऊ (म.म.) - जोधपुर के निवासी। इन्होंने विश्वेश्वर-स्मृति एवं आर्यविधान आदि धर्मशास्त्रविषयक ग्रन्थों की रचना की है। विश्वेश्वर पाण्डेय - समय- ई. 18 वीं शती का प्रारंभिक काल। "अलंकारकौस्तुभ", "व्याकरणसिद्धांतसुधानिधि" आदि प्रौढ ग्रंथों के प्रणेता। 15 वर्षों की अवस्था में काव्यरचना प्रारंभ। उत्तरप्रदेश के अंतर्गत अल्मोडा जिले के पटिया नामक ग्राम के निवासी। पिता-लक्ष्मीधर । व्याकरण-सिद्धान्त -सुधानिधि इनका उल्लेखनीय ग्रंथ है। न्यायशास्त्र पर इन्होंने "तर्ककुतूहल" व “दीधिति-प्रवेश" नामक ग्रंथों की रचना की है। साहित्य-शास्त्रविषयक इनके 5 ग्रंथ हैं - अलंकारकौस्तुभ, अलंकारमुक्तावली, अलंकारप्रदीप, रसचंद्रिका व कवींद्रकंठाभरण (चित्रकाव्य)। इनका अलंकार कौस्तुभ ग्रंथ एक असाधारण रचना है, जिस पर इन्होंने स्वयं ही टीका लिखी थी जो रूपकालंकार तक ही प्राप्त होती है। ये एक अच्छे कवि भी थे। इन्होंने अलंकारों पर अनेक स्वरचित सरस उदाहरण अपने ग्रंथों में दिये हैं। मृत्यु के समय इनकी आयु 40 से कम थी। अन्य रचनाएं- (उपलब्ध) - आर्यासप्तशती, (चित्रकाव्य), नवमालिका (नाटिका), नैषधीय टीका, मन्दारमंजरी (गद्य), रस-चंद्रिका, रस-मंजरी (टीका), रोमावलीशतक, लक्ष्मी-विलास, वक्षोजशतक, शृंगारमंजरी (सट्टक), होलिकाशतक (विनोदप्रधान काव्य), काव्यरत्न, रुक्मिणी-परिणयम् (नाटक) आदि । अनुपलब्ध ग्रंथ - काव्यतिलक, तत्त्वचिन्तामणि-दीधिति-प्रवेश, तर्ककुतूहल, तारासहस्रनाम-व्याख्या, षड्ऋतुवर्णन और अलंकार-कुलप्रदीप । विश्वेश्वर पंडित - काश्मीरी। रचनाएं - स्कन्दास्तिप्रश्नाः (दर्शन शास्त्र) और रणवीर-ज्ञानकोश।। विश्वेश्वर भट्ट - ई. 14 वीं शती के एक धर्मशास्त्री। ये कौशिक गोत्री पेलिभट्ट के पुत्र थे। माता-अंबिका । गुरु-व्यासारण्य मुनि। द्रविड प्रदेश के वासी। विज्ञानेश्वर की मिताक्षरा पर "सुबोधिनी" नामक भाष्य ग्रंथ लिखा। फिर विश्वेश्वर ने उत्तर की ओर प्रयाण किया। यमुनातटवर्ती प्रदेश के मदनपाल नामक काष्ट-परिवार के राजा ने इन्हें आश्रय दिया। यहां इन्होंने मदनपारिजात, तिथि-निर्णय-सार और स्मृति-कौमुदी नामक ग्रंथों की रचना की।
मदनपारिजात के 9 स्तबक हैं जिनमें ब्रह्मचर्य, गृहस्थधर्म, नित्यकर्म, गर्भाधान से आगे के संस्कार, जनन मरण शोध, शुद्धि-क्रिया, श्राद्ध, दायभाग व प्रायश्चित्त का विवेचन है। स्मृति-कौमुदी के चार कल्लोल हैं जिनमें शूद्र के धर्म, कर्तव्य, आचार आदि का विवेचन है। विश्वेश्वर विद्याभूषण - चट्टाला नगरी (बंगाल) के निवासी। पिता-कृष्णकान्त कविरत्न। माता-कुसुमकामिनी देवी। कुलगुरुश्रीमन्महेशचंद्र भट्टाचार्य । चट्टल संस्कृत महाविद्यालय से शिक्षा प्राप्त। वहीं अध्यापक। पश्चिम बंगशिक्षाधिकार सेवा के
संस्कृत वाङ्मय कोश
ग्रंथकार खण्ड / 455
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