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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (3) बोधायनगृह्यसूत्र - यह ग्रंथ अप्रसिद्ध है। (4) मानव गृह्यसूत्र - मानव श्रौतसूत्र से इसका अधिकांश संबंध है। "विनायक पूजा" विषयक प्रतिपादन इसकी विशेषता है। (5) काठक गृह्यसूत्र - इसका संबंध मानव गृह्यसूत्र और विष्णुस्मृति से है। (6) भारद्वाज गृह्यसूत्र - अप्रसिद्ध है। (7) वैखानस गृह्यसूत्र - इस प्रथ का आकार बड़ा है। इसकी रचना उत्तरकालीन मानी जाती है। कृष्ण यजुर्वेद के उपरिनिर्दिष्ट सात गृह्य सूत्रों में से तीन ही प्रकाशित हुए हैं। शुक्ल यजुर्वेदीय - पारस्कर गृह्यसूत्र - इसे वाजसनेय अथवा काटेय गृह्यसूत्र भी कहते हैं। कात्यायन श्रौतसूत्र से संबंधित इस ग्रंथ का सुप्रसिद्ध याज्ञवाल्क्यस्मृति पर विशेष प्रभाव दिखाई देता है। अथर्ववेदीय - कौशिक गृह्यसूत्र - इस सूत्र ग्रंथ में अभिचार इन्द्रजाल, तंत्रप्रयोग इत्यादि से संबंधित विषयों का अन्तर्भाव है। अन्य वेदों के गृह्यसूत्रों में अनुलिखित और भी विविध विषय इसमें प्रतिपादित किए हैं। वेदकालीन या सूत्रकालीन समाज-जीवन का संपूर्ण चित्र इस प्रतिपादन द्वारा दिखाई देता है। इस प्रकार के वैदिक सूत्र वाङ्मय में वैदिक धर्म के कर्मकाण्ड में अन्तर्भूत पारिवारिक तथा वैयक्तिक जीवन से संबंधित धर्मविधिविषयक जानकारी सविस्तर प्राप्त होती है। व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक की विविध संस्कारात्मक क्रियाओं से संबंधित अन्यान्य वेदांतर्गत मंत्रों का विनियोग गृह्यसूत्रकारों ने बताया है। श्रौतसूत्रों में वर्णित यज्ञविधि के लिए गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण इन तीन अग्निकुण्डों की आवश्यकता होती है किंतु गृह्यसूत्रानुसार बताए हुए देवयज्ञ में एक ही अग्निकुण्ड की आवश्यकता होती है। संपूर्ण गृह्यसूत्र वाङ्मय में मानव की "सत्त्वशुद्धि" के लिए प्रमुख चालीस संस्कारों का विधान किया है। उनमें 22 प्रकार के विशिष्ट यज्ञों एवं जीवन के 18 संस्कारों का अन्तर्भाव होता है। इन 22 यज्ञों में से आठ (पांच महायज्ञ और तीन . पाकयज्ञ मिलाकर) यज्ञ गृह्यकर्मात्मक और बाकी चौदह यज्ञ श्रौतकर्मात्मक है। गृहस्थाश्रमी के लिए ये सारे यज्ञ आवश्यक है; परंतु उनमें से (1) ब्रह्मयज्ञ (अथवा वेदयज्ञ) - याने वेदों का नित्य पठन, (2) देवयज्ञ - याने प्रति दिन देवताओं के निमित्त आहुति-समर्पण, (3) पितृयज्ञ - अर्थात् पितरों के प्रीत्यर्थ श्रद्धापूर्वक तर्पण, (4) भूतयज्ञ - भूतपिशाचों के निमित्त बलिसमर्पण और (5) मनुष्ययज्ञ (अतिथियज्ञ) - याने अतिथि अभ्यागतों का सत्कार, ये पांच यज्ञ, वैदिक धर्म पर निष्ठा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने निरलसता से करने चाहिए, ऐसी कल्पसूत्रों की अपेक्षा है। इन पांच महायज्ञों में भी ब्रह्मयज्ञ सर्वश्रेष्ठ माना गया है जिस में प्रातःसंध्या, सायंसंध्या, गायत्रीजप और यथाशक्ति वेदपारायण सर्वथा अपरिहार्य माने गये हैं। गृह्य संस्कार उपरिनिर्दिष्ट पंच महायज्ञों के व्यतिरिक्त गृह्यसूत्रों में जो विशिष्ट गृह्य संस्कार त्रैवर्णिकों के लिए बताए हैं, उनका संक्षेपतः परिचयः(1) पुसंवन - गर्भवती का अपत्य पुत्र ही हो इस निमित्त संस्कार। (2) जातकर्म - पुत्र जन्म के समय का संस्कार । (3) नामकरण - जन्म के 12 वें दिन अपत्य का नाम रखना। (4) क्षुधाकर्म - बालक का अन्नग्रहण। (5) गोदान - जन्मजात बालों को काटना । (6) उपनयन - ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण के बालक का क्रमशः 8 वें, 12 वें और 16 वें वर्ष, द्विजत्वप्राप्ति निमित्त संस्कार। इसे मौजीबंधन भी कहते हैं। (7) समावर्तन - अध्ययन समाप्ति की विधि (8) विवाह - (9) महायज्ञ - उपर बताए हुए पांच यज्ञों का नित्य आचरण । (10) दर्शपूर्णमास्यादि - विशिष्ट महान यज्ञ याग, वरिभ पर सर्पो को बलि समर्पण, गृहप्रवेश, खेती से संबंधित उत्सव, सांड इत्यादि पशुओं का विसर्जन, पूज्य पुरुषों की जयंती पुण्यतिथी समारोह। (11) अन्त्येष्टि - 2 साल से छोटे बच्चों का दफन और उनसे बड़े मृतों का दहन । (12) श्राद्ध - मृत्यु की तिथि पर प्रतिवर्ष मृतात्मा को पिंडदान। (13) पितृमेध - मृत्यु के एक वर्ष बाद मृत व्यक्ति की अस्थि पर स्मारक निर्माण करना अथवा तीर्थक्षत्र में अस्थिओं का विसर्जन करना। वैदिक गृह्यसूत्रों में वर्णित अनेक संस्कार आज भी वैदिक भारतीयों के जीवन में देशकालानुसार प्रचलित हैं। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/31 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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