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हैं। याकोबी का यह मत है कि राजा के मंत्री शूर द्वारा इस ग्राम। ये कुछ काल नवानगर के जाम शत्रुशाल्य के आश्रय नाटक का अभिनय कराया गया था पर इसके संबंध में कोई में रहे। वहां इन्होंने "शत्रुशल्यचरित" नामक महाकाव्य रथा। प्रमाण प्राप्त नहीं होता। डा. काशीप्रसाद जायसवाल, स्टेन बाद में मेवाड के रावलवंशी राजा जगत्सिंह के आश्रय में कोनो और एस. श्रीकंठ शास्त्री ने विशाखदत्त को चंद्रगुप्त रहकर उनकी प्रशंसा में “जगत्प्रकाश" नामक 14 सर्गों का द्वितीय का समकालीन माना है। (समय- 375-413 ई.)। काव्य रचा। चापेंटियर इन्हें अंतिम गुप्तवंशियों में से समुद्रगुप्त का समकालीन "कोशकल्पतरु" इनका प्रमुख ग्रंथ है जो विभिन्न विषयों मानते हैं। कीथ के अनुसार इसका समय ई. 9 वीं शती एवं वर्गों का कोश है। प्रथम खंड में परमात्मवर्ग, स्वर्ग-वर्ग, है। चंद्रगुप्त को गुप्तवंशी राजा मानने वाले कोनो, इन्हें व्योम-वर्ग, कलावर्ग, धीवर्ग व नाट्यवर्ग आदि प्रकरण हैं। कालिदास का कनिष्ठ समसामयिक मानते हैं।
दूसरे खंड में वनौषधि वर्ग की चर्चा है जिसमें वन-उपवन, "दशकरूपक" व "सरस्वतीकंठाभरण' में "मुद्राराक्षस" के । फल-फूल, औषधियों आदि की जानकारी दी गयी है। उद्धारण प्राप्त होते हैं। इन दो ग्रंथों का रचना काल ई. 10 विश्वनाथ कविराज - उत्कल के प्रतिष्ठित पंडित-कुल में वीं या 11 वीं शती है। अतः "मुद्राराक्षस" का स्थितिकाल जन्म। पिता-चंद्रशेखर, जिन्होंने "पुष्पमाला" व "भाषार्णव" ई. 9 वीं शती से पूर्व निश्चित होता है।
नामक ग्रंथों का प्रणयन किया था। उनके इन ग्रंथों का संप्रति विद्वानों का बहुसंख्यक समुदाय, विशाखदत्त का उल्लेख "साहित्य-दर्पण" में है। इनके पिता विद्वान्, कवि व समय छठी शती का उत्तरार्ध स्वीकार करने के पक्ष में हैं। सांधिविग्रहिक थे। नारायण नामक विद्वान् इनके पितामह या "मुद्राराक्षस' की रचना, विशाखदत्त ने छठी शती के अंतिम वृद्धपितामह थे। इनका समय 1200 ई. से लेकर 1350 ई. चरण में और कन्नोज के मौखरी-नरेश अवंतिवर्मा की हूणों के मध्य है, क्योंकि इनके साहित्य-दर्पण में (4-4) जिस पर प्राप्त विजय के उपलक्ष्य में की थी। वास्तव में समस्त अलावदीन नृपति का वर्णन है, उस दिल्ली के बादशाह संस्कृत नाट्य-साहित्य में केवल विशाखदत्त ही एक ऐसा अल्लाउद्दीन खिलजी का समय 1296 ई. से 1316 ई. तक था। नाटककार है जिसने परंपरागत रूढियों का सम्मान नहीं किया।
ये कवि, नाटककार व सफल आचार्य थे। इन्होंने उसने समस्त सैद्धान्तिक परंपरागत रूढियों का उल्लंघन किया है।
राघव-विलास (संस्कृत महाकाव्य) कुवलयाश्वचरित (प्राकृत विश्वक कार्ष्णि - ऋग्वेद के आठवे मंडल के 86 वें
काव्य), प्रभावती-परिणय व चंद्रकला (नाटिका), सूक्तों के द्रष्टा। इसमें अश्विनीकुमार की स्तुति जगती छंद में
प्रशस्ति-रत्नावली काव्यप्रकाश-दर्पण (काव्य-प्रकाश की टीका) की गयी है। विश्वक, कृष्ण आंगिरस के पुत्र थे, अतः इन्हें
व साहित्य दर्पण नामक ग्रंथों का प्रणयन किया था। इनकी कार्ष्णि कहा जाने लगा। ऋग्वेद में इस बात का उल्लेख
कीर्ति का स्तम्भ, एकमात्र साहित्यदर्पण ही है, जो सभी अलंकार आया है कि अश्विनीकुमार की कृपा से ही ये अपने खोये
शास्त्रविषयक प्रमुख ग्रंथों में है। इस पर चार टीकाएं लिखी हुए पुत्र विष्णापु को पुनः पा सके।
गई हैं। कविराज (महापात्र) विश्वनाथ, रसवादी आचार्य हैं। विश्वकर्मा शास्त्री - पिता-दामोदर विज्ञ। पितामह-भीमसेन।।
इन्होंने रस को ही काव्य की आत्मा माना है और उसका रचना-प्रक्रियाव्याकृतिः (प्रक्रियाकौमुदी की टीका)।
स्वतंत्र रूप से विवेचन किया है। विश्वनाथ - ई. 17 वीं शती। रचना- "न्यायसूत्रवृत्तिः” (गौतम
विश्वनाथ चक्रवर्ती - ई. 17 वीं सदी का उत्तरार्ध व 18 के न्यायसूत्र की टीका)।
वीं सदी का प्रथम चरण! गौडीय वैष्णवों के अवांतरकालीन विश्वनाथ - त्रिमालदेव का पुत्र । ई. 18 वीं शती। आन्ध्र आचार्यों में प्रधानतम। गौडीय षट्गोस्वामियों के तिरोधान के प्रदेश के गोदावरी जिले के निवासी। जीवन का अधिक काल पश्चात ब्रजधाम की महिमा को अक्षण्ण बनाये रखने का श्रेय काशी में व्यतीत किया। रचना- मृगाङ्कलेखा।
श्री. चक्रवर्ती को प्राप्त है। इन्होंने तपस्या एवं ग्रंथ-निर्माण विश्वनाथ - (1) ई. 16 वीं शती के एक टीकाकार । तैत्तिरीय द्वारा परंपरा के सूत्र को विच्छिन्न होने से बचाया। शाखा के भारद्वाज गोत्री ब्राह्मण व गोलग्रामस्थ दिवाकर के बंगाल में जन्म तथा शिक्षित। विश्वनाथ ने वैराग्य धारण पुत्र। इन्होंने सूर्यसिद्धान्त पर उदाहरणरूप अनेक टीकाएं लिखी कर वृंदावन को अपना साधनास्थल बनाया और वहीं राधाकुंड हैं। इनके 18 टीकाग्रंथ हैं। इनमें कुछ नाम हैं : गहनप्रकाशिका के समीप रह कर अपने अधिकांश ग्रंथों का प्रणयन किया। टीका, सिद्धान्तशिरोमणि टीका, करणकुतूहल टीका, मकरंद ___षट्गोस्वामियों द्वारा विरचित ग्रंथ, सामान्य जनों की समझ के टीका, ग्रहलाघवटीका, पातसारणी टीका और सामतंत्र-प्रकाशिका बाहर थे। विश्वनाथ ने उन पर टीकाएं लिख कर, उन्हें टीका।
सरल-सुबोध बनाया। इनके द्वारा प्रणीत टीकाएं बहुमूल्य हैं। ___ (2) ई. 17 वीं शती के एक संस्कृत कोशकार। इन्होंने इन्होंने अपनी भागवत टीका का रचनाकाल टीका के अंत में अत्रि गोत्री ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। जन्मस्थान- देवलपट्टण दिया है। तदनुसार इस टीका का निर्माण काल है 1626
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 453
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