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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गया। विद्याधर शास्त्री ने अनेक प्रकार के काव्यों, नाटकों एवं प्रचार दक्षिण में अधिक है। इसका प्रकाशन मुंबई संस्कृत स्तोत्रों का प्रणयन किया। वे हैं- 1) वैचित्र्य-लहरी, 2) सीरीज से हुआ है। सहित्य के क्षेत्र में विद्यानाथ का यह मत्तलहरी, 3) लीलालहरी, 4) विद्याधर-नीतिरत्नम्, 5) एक नवीन उपक्रम था, जिसका अनुकरण आज तक होता हरनामामृतम् (महाकाव्य), 6) शिवपुष्पांजलि (स्तोत्र), 7) आ रहा है। अन्य रचनाएं- प्रतापरुद्रकल्याणम् (नाटक) और आनंदमंदाकिनी, 8) अनुभवशतकम्, 9) विक्रमाभ्युदय (चंपू), हेमन्त-तिलक (भाण)। 10) काव्यवाटिका, 11) विश्वमानवीय, 12) हिमाद्रिमाहात्म्य, विद्यारण्य - ई. 14 वीं शताब्दी। इनका पूर्वनाम माधवाचार्य 13) सूर्यप्रार्थना, 14) सत्यसन्दोहिनी, 15) कलिपलायन, 16) था। इन्होंने हरिहर व बुक्क इन दो सरदारों को शुद्ध कर हिंद पूर्णानन्द, 17) दुर्बलबल (तीनों नाटक), 18) नीतिकल्पतरु, धर्म में वापस लिया और उनकी सहायता से विजयनगर का 19) नीतिकल्पलता, 20) नीतिकाव्य, 21) नीतिचन्द्रिका, 22) राज्य स्थापित किया। 30 वर्षों तक वे विजयनगर के प्रधानमंत्री नीतिद्विषष्ठिका, 23) नीतिनवरत्नमाला, 24) नीति-प्रदीप, 25) थे। सन् 1380 में शृंगेरीपीठ के शंकराचार्य भारतीतीर्थ के नीति-मंजरी, 26) नीतिमाला, 27) नीतिरहस्य, 28) निधन के बाद, उस पीठ का आचार्य-पद इन्हीं को प्राप्त नीति-रामायण, 29) नीतिलता, 30) नीति-वाक्यामृत, 31) हुआ। इनका वेदान्त विषयक “पंचदशी" नामक ग्रंथ अत्यंत नीति-विलास, 32) नीतिशास्त्र-समुच्चय, 33) नीति-कुसुमावली, महत्त्वपूर्ण है। अपरचना-संगीतसारः (अप्राप्य) 34) नीतिरत्न। विद्यालंकार भट्टाचार्य - विजयिनीकाव्यम्" में आपने रानी विद्यानन्द - कर्नाटकवासी। जैनधर्मी नन्दिसंघ के ब्राह्मणकुलीन व्हिक्टोरिया का चरित्र ग्रथन किया है। आचार्य। वादिराज आदि आचार्यों द्वारा उल्लिखित। समय ई. विद्यावागीश - आसाम नरेश प्रमत्तसिंह (1744-51 ई.) के 8-9 वीं शताब्दी। गंगनरेश शिवभाट द्वितीय (ई. 9 वीं शती) मंत्री गंगाधर बडफूकन द्वारा सम्मानित । पिता- आचार्य पंचानन । तथा राचमल्ल सत्यवाक्य-प्रथम (ई. 10 वीं शती) के श्रीकृष्ण-प्रयाण नामक अंकिया नाटक के रचयिता। समकालीन। रचनाएं- (1) स्वतंत्र ग्रंथ आप्तपरीक्षा विद्यासागर मुनि - प्रक्रियामंजरी नामक व्याकरणविषयक (स्वोपज्ञवृत्तिसहित) प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा, काशिका टीका के लेखक। इस टीका के दो हस्तलिखित श्रीपुरपार्श्वनाथ-स्तोत्र, विद्यानन्द-महोदय। (2) (टीका ग्रंथ) उपलब्ध है। अष्टसहस्त्री, तत्त्वार्थ-श्लोकवार्तिक और युक्त्यनुशासनालंकार। विधुशेखर भट्टाचार्य शास्त्री (म.म.) - समयइन कृतियों पर पूर्वपर्ती ग्रंथकार समन्तभद्र, सिद्धसेन, पात्रस्वामी, 1877-1946 ई.। जन्म कालीवाटी (बंगाल) में। भट्टाकलंक, कुमारसेन आदि आचार्यों का प्रभाव दृष्टिगोचर पिता-त्रैलोक्यनाथ भट्टाचार्य। 1897 में काशी जाकर कैलाशचन्द्र होता है। इसी तरह माणिक्यनन्दि, वादिराज, प्रभाचंद्र, अभयदेव, तर्कशिरोमणि से विविध विषयों (विशेषकर न्याय) का अध्ययन देवसूरि आदि आचार्य विद्यानंद से प्रभावित हैं। किया। सन् 1904 में "मित्रगोष्ठी' में प्रकाशित हुई इनकी विद्यानन्दी - बलात्कारगण की सूरत शाखा के संस्थापक अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं : दुर्गासप्तशती, भरतचरित, देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य। मंदिरमूर्ति प्रतिष्ठापक। जाति-पोखाड। उमापरिणय, हरिश्चन्द्र-चरित (महाकाव्य), चित्तविलास पिता-हरिराज। कार्यक्षेत्र-गजरात और राजस्थान । समय- वि.सं. (खण्डकाव्य). अपत्यविक्रय, क्षत्कथा. दीनकन्यका आदि कहानियां 1499-1538| रचनाएं- सुदर्शनचरित (1362 श्लोक) और और जयपराजयम चन्द्रप्रभा (उपन्यास) व मिलिन्द्रप्रश्नाः (प्राकृत सुकुमालचरित। तत्कालीन अनेक राजाओं द्वारा सम्मानित। मिलिन्द पन्हों का अनुवाद) विद्यानंदी - ई. 9 वीं शती के एक जैन आचार्य। इन्होंने विनयचन्द्र - विनयचन्द्र नाम के अनेक विद्वान हुए हैं। एक अकलंकदेव की "अष्टशती" पर "अष्टसाहस्त्री" नामक टीका वे हैं जो रविप्रभसरि के शिष्य हैं। समय वि.सं. 1300 के लिखी। इसके अलवा तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, युक्त्यनुशासनालंकार, लगभग। ग्रंथ-मल्लिनाथ-चरित, मुनिसुव्रतनाथ-चरित और आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा व सत्यशासन आदि ग्रंथों । पार्श्वनाथ-चरित। दूसरे वे हैं जो आदिनाथ-चरित के रचयिता की रचना भी इन्होंने की है। हैं। समय- वि. सं. 1474। तीसरे- रत्नसिंह सूरि के शिष्य विद्यानाथ - समय- ई. 14 वीं शती। मूल नाम अगस्त्य । हैं। ई. 14 वीं शती)। ग्रंथ-कालकाचार्यकथा, पर्युषणकल्प काव्यशास्त्र के आचार्य। "प्रतापरुद्रयशोभूषण" या "प्रतापरुद्रीय" और तन्त्रदीपमालिकाकल्प । इस नाम के और भी विद्वान् हुए हैं। नामक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ के प्रणेता। आंध्र प्रदेश के काकतीय विनय-विजयगणि - "इंदुदूत" नामक संदेश-काव्य के प्रणेता । राजा प्रतापरुद्र के आश्रित-कवि, जिनकी प्रशंसा में इन्होंने समय- 18 वीं शती का पूर्वार्ध । वैश्य-कुलोत्पन्न श्रेष्ठी तेजःपाल "प्रतापरुद्रीय" के उदाहरणों की रचना की है। इनके "प्रतापरुद्रीय" के पुत्र। दीक्षागुरु-विजयप्रभ सूरीश्वर। इनका एक अधूरा पर कुमारस्वामी कृत रत्नायण-टीका मिलती है। "रत्नशाण" काव्य-ग्रंथ "श्रीपालरास" भी प्राप्त होता है जिसे इनके मित्र नामक अन्य अपूर्ण टीका भी प्राप्त होती है। इस ग्रंथ का यशोविजयजी ने पूरा किया। इन्होंने संस्कृत, प्राकृत व गुजराती संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड । 451 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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