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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बैलकर, व्यंकटेश बापूजी जन्म ई. 1797 रचनाएं ज्योतिर्गणितम्, सौरार्य ब्रह्मपक्षीयतिथिगणितम् केतकी भाष्यम्, केतकीग्रहगणितम्, वैजयन्ती, भूमण्डलीय सूर्यग्रहगणितम् मराठी में भी ज्योतिःशास्त्र विषयक लेखन किया है। www.kobatirth.org केदारभट्ट सम्भवतः ई. 12 वीं शती । बंगाल के निवासी । "वृत्तरत्नाकर" के कर्ता पिता पब्बेक (संभवतः "वासनामन्जरी" के प्रणेता) इनके वृत्तरत्नाकर ग्रंथ पर 20 से अधिक टीकाएं लिखी गई है। - केरलवर्मा श्रवणकोरनरेश (19-20 वीं शती) इन्होंने प्रभूत तथा उत्कृष्ट साहित्यनिर्मिति की है। केरल - कालिदास की उपाधिप्राप्त रचनाएं गुरुवायुरेशशतकम् व्याधालयेशशतकम् द्रोणाद्विशतकम्, विशाखराजमहाकाव्यम् क्षमापनसहस्रम् और शृंगारमंजरीभाण । 302 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड I केवलानन्द सरस्वती समय ई.स. 1877-1955 महाराष्ट्र के वाई नामक ग्राम में स्थित प्राज्ञ पाठशाला के संस्थापक । इनका पूर्वनाम नारायण सदाशिव मराठे था। प्रज्ञानंद सरस्वती स्वामी इनके गुरु थे। संस्कृत भाषा और प्राचीन धर्मग्रन्थों के गहरे अध्ययन के बाद आपने अध्यापन क्षेत्र में प्रवेश किया और राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत धर्मप्रचारक तैयार करने के उद्देश्य से नयी शिक्षा पद्धति तैयार की धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में कालानुरूप परिवर्तन एवं सुधार के वे पक्षपाती थे। आपने अनेक ग्रन्थों का संपादन किया जिनमें से कुछ इस प्रकार है- 1. मीमांसाकोश (खण्ड 7 ), 2. अव्दैतसिद्धि का मराठी अनुवाद 3. ऐतरेयविषयसूची 4. कौषीतकीब्रह्मण की सूची, 5. तैत्तिरीय मंत्र - सूची, 6. सत्याषाढसूत्र - विषयसूची, 7. अद्वैतवेदान्तकोश 8. ऐतरेय ब्राह्मण आरण्यक कोश तथा, 9. धर्मकोश (6 खण्ड) के संपादक तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशी आपके प्रमुख शिष्यों में सुप्रसिद्ध कार्यकर्ता हैं । केशव पिता- श्रीनिवास । रचना - सत्यध्यानविजयम् । 5 सर्गात्मक। इनके छोटे भाई ने इस पर टीका लिखी है। केशव एक ज्योतिष शास्त्रज्ञ इन्होंने "विवाहवृंदावन" और "करणकंठीरव" नामक दो ग्रंथों का प्रणयन किया है। इनमें से केवल प्रथम ग्रंथ ही उपल्बध है। समय- 14 वीं शती । केशव काश्मीरी- समय ई. 13-14 शती । निबार्क संप्रदाय के एक प्रसिद्ध दिग्विजयी आचार्य। कहा जाता है कि इन्होंने 3 बार दिग्विजय कर "दिग्विजयी" की उपाधि प्राप्त की थी। काश्मीर में अधिक काल तक निवास करने के कारण "काश्मीरी" उपनाम से विख्यात थे। ये अलाउद्दीन खिलजी (शासन काल 1296-1320 ई.) के समकालीन माने जाते है। इनका अपर नाम "केशवभट्ट" है। कहते हैं कि मथुरा के किसी मुसलमान सुबेदार के आदेशानुसार, एक फकीर ने लाल दरवाजे पर एक मंत्र टांग दिया। जो भी हिन्दु उधर से निकलता, मंत्र के प्रभाव से उसकी शिखा कट जाती और - वह मुसलमान बन जाता। इस बात की सूचना पाकर काश्मीरीजी उस स्थान पर अपने शिष्यों सहित पहुंचे, और अपने प्रभाव से उस मंत्र को निष्प्रभ कर डाला। केशव काश्मीरी मथुरा में ध्रुव टीले पर निवास करते थे इनके अंतर्धान का स्थान मथुरा का नारद-टीला है, जहां इनकी समाधि बनी हुई है। इनका जन्मोत्सव ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है। काश्मीरीजी के विषय में निम्र श्लोक प्रसिद्ध हैवागीशा यस्य वदने हृत्-कंजे श्रीहरिः स्वयम्। यस्यादेशकरा देवा मंत्रराजप्रसादतः ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाभादासजी ने इनके द्वारा किया गया चमत्कार तथा संपन्न दिग्विजय को व्यक्त करने वाला निम्न छप्पय लिखा हैकासमीर की छाप पात तापन जगमंडन, दृढ हरि-भक्ति-कुठार आनमत विटप विहंडन । मथुरा मध्य मलेच्छ दल करि वर बट जीते, काजी अजित अनेक देखि परचे भय भीते । विदित बात संसार सब, संत साखि नाहिन दुरी । श्री "केशवभट" नरमुकुट मणि, जिनकी प्रभुता निस्तरी ।। (छप्पय 75) श्री. केशव काश्मीरी के ग्रंथ निंबार्क संप्रदाय की अतुल संपत्ति है इनके द्वारा प्रणीत ग्रंथ है- (1) तत्त्व- प्रकाशिका (गीता का निर्कमतानुयायी भाष्य), (2) कौस्तुभ प्रभा (श्रीनिवासाचार्य के "वेदांत कौस्तुभ" का पांडित्यचूर्ण भाष्य), (3) प्रकाशिका (दशोपनिषद् पर भाष्य जिसमें केवल "मुण्डक" का भाष्य प्रकाशित हो चुका है) (4) भागवत टीका, (जिनकी केवल "वेद-स्तुति' का भाष्य उपलब्ध तथा प्रकाशित है और (5) क्रमदीपका (सतिलक) जो पूजा पद्धति का विवरणात्मक ग्रंथ है। केशवदैवज्ञ - ज्योतिष शास्त्र के एक आचार्य । 'ग्रहलाघवकार" गणेश दैवज्ञ के पिता पश्चिमी समुद्र तटवर्ती नंदिग्राम के निवासी । आविर्भाव-काल सन् 1456 ई. । पिता कमलाकर, गुरु- वैजनाथ। इनके द्वारा रचित ग्रंथों के नाम हैं; ग्रहकौतुक, वर्षमहसिद्धि तिथिसिद्धि जातक पद्धति, जातक पद्धतिविवृत्ति, ताजिक-पद्धति सिद्धान्तवासनापाठ, मुहूर्ततस्त्व, कायस्थादिधर्मपद्धति, कुंडाप्टकलक्षण और गणित-दीपिका। ग्रह - गणित व फलितज्योतिष दोनों के ही मर्मज्ञ थे । केशवपण्डित- रचना- "राजारामचरितम्"। इसमें राजाराम महाराज (छत्रपति शिवाजी के सुपुत्र) और मरहठा वीरों द्वारा, औरंगजेब से अपने साम्राज्य के रक्षण हेतु किये गए महान् संघर्ष का वर्णन है। - For Private and Personal Use Only केशवभट्ट 'नृसिंहचंपू' या 'प्रह्लादचंपू' नामक काव्य के रचयिता । गोलाक्षी परिवार के केशवभट्ट इनके पितामह थे । पिता - अनंतभट्ट । इनका जन्म गोदावरी जिले के (आंध्र) पुण्यस्तंब नामक नगर में हुआ था। "नृसिंहचंपू" (प्रह्लादचंपू)
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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