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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (इ) प्रमाता1) मध्व- अणुरूप श्रीहरि का सेवक 2) रामानुज- चेतनावान् अणुरूप 3) वल्लभ- ज्ञान एवं भक्ति का आश्रयभूत श्रीकृष्णसेवक । 4) शंकर- अन्तःकरणयुक्त चैतन्य। (ई) अज्ञान1) मध्व- परमात्मा की निमिति पर स्वत्व की भावना । 2) रामानुज- विषयों के प्रति ममत्वबुद्धि । 3) वल्लभ- अपने आपको स्वतंत्र एवं सुखदुःख का भोक्ता मानना । 4) शंकर- अपने आपको देहादिस्वरूप मानना। (उ) ज्ञान1) मध्व- मै श्रीहरि का सेवक हूँ यह प्रतीति । 2) रामानुज- ईश्वर नित्य एवं असंख्य मंगलगुणयुक्त है यह प्रतीति । 3) वल्लभ- मै श्रीकृष्ण का सेवक हूँ यह प्रतीति । 4) शंकर- "अहं ब्रह्माऽस्मि-" यह प्रतीति । (ऊ) दुःख1) मध्व- नानाविध योनियों में जन्म पाना । 2) रामानुज- नानाविध मानसिक पीड़ाएं। 3) वल्लभ- नानाविध योनियों में जन्म पाना । 4) शंकर- असत्य को ही सत्य मान कर भोगों का अनुभव। (ऋ) मोक्ष1) मध्व- मरणोत्तर उत्तम लोक की प्राप्ति और दिव्यसुखों की अनुभूति । 2) रामानुज- परमात्मा की कृपा से पुनरपि दुःखानुभव न होना। 3) वल्लभ- गोलोक की प्राप्ति और भक्ति सुख में भेद की विस्मृति । 4) शंकर- जीव-ब्रह्म का अद्वैत। वेदान्त दर्शन के इन महनीय आचार्यों के द्वारा विशिष्ट आचारपद्धति तथा विचारप्रणाली को स्थिरपद करने के लिए स्वतंत्र संप्रदायों के समान इन वेदानुकूल भक्तिप्रधान संप्रदायों का महत्त्व है। आज का समस्त हिंदु समाज इन सभी संप्रदायों की आचारपद्धति तथा विचारप्रणाली से प्रभावित है। ऐतिहासिकों के मध्ययुग में इसी वैष्णवी विचारधारा का सर्वत्र प्रचार करने वाले स्वनामधन्य संतो की महती परंपरा निर्माण हुई। उनके ग्रंथ प्रादेशिक भाषीय साहित्य के रत्नालंकार हैं। वैष्णव संतों में दक्षिणभारत (तामिलनाडु) के आलवार संतों का महान योगदान है। आलवार शब्द का अर्थ है परमात्मा की भक्ति में निमग्न सत्पुरुष । आलवारों में पोडगई, भूतचार, पेई, तिरुमलिसे, नम्म, मधुरकवि, कुलशेखर, आंडाल, पेरी तोंडरडिप्पोडी, तिरुप्पाण और तिरुमई नामक 12 आलवार संत तामिलनाडु में आविभूर्त हुए। प्रादेशिक परंपरा के अनुसार उनका समय ईसा पूर्व 20 से 28 वीं शती तक माना जाता है। आधुनिक इतिहासज्ञ ई. 4 थी से 8 वीं शती में उनका कार्यकाल मानते है। इनमें आंडाल महिला थी और कुछ आलवार तो शूद्रवर्णीय भी थे, परंतु सारा समाज उन्हे पूजनीय मानता रहा है। "प्रबन्धम्" नामक तामिल ग्रंथ में इन सभी आलवारों के सुविचारपरिप्लुत एवं भावविभोर काव्यों का संग्रह हुआ है। तामिलनाडु के वैष्णव संप्रदाय में प्रबन्धम् ग्रंथ को भगवद्गीता के समान प्रमाणभूत माना जाता है। आलवारों की वैष्णव विचारप्रणाली में जातिभेद, वर्णभेद इत्यादि माने नहीं जाते। रामानुजी वैष्णव संप्रदाय के "प्रपत्तिवाद" (ईश्वर के प्रति संपूर्ण शरणागति) का मूल आलवार संतों की विचारधारा में मिलता है। स्वंय रामानुजाचार्य सभी आलवारों को गुरु मान कर उन्हीं का विष्णुभक्ति प्रचार का कार्य आगे चलाते रहे। दक्षिण के श्रीरंगम् आदि प्रमुख देवालयों में आलवारों की मूर्तियों की पूजा होती है। इन आलवार संतों में नम्मआलवार की विशेष ख्याति है। वे बाल्यावस्था में अंध हो गए थे। परमात्मा की कृपा से दृष्टि लाभ होने पर उन्होंने विष्णुभक्तिपर काव्यों की रचना आरंभ की। उनके शिष्य मधुर कवि ने वे सारी भक्ति रचनाएं ताडपत्र पर लिखकर संरक्षित की। नम्मालवार के देहांत के बाद पांड्य् राजा की पंडितसभा में वह काव्यसंग्रह मधुकरकवि ने प्रकाशित किया। "तिरुवोयमोली" नाम से यह एक सहस्र कविताओं का संग्रह प्रख्यात है। इस संग्रह में वेदों का रहस्य समाया हुआ माना जाता है और उसे "द्राविड वेद" कहते हैं। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 185 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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