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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी एवं अंग्रेजी शब्द कोश 453 चतुःषष्टिकला = 64 कलाएँ- संगीत, मृदंग आदि बाजे बजाना, नृत्य, अभिनय, चित्रकला, बहुरूपिथा बनाना, साँझी बनाना, मिस्सी कपड़े व उबटन आदि बनाना, संगमरमर आदि के पक्के फर्श डालना, बिस्तर सजाना, जलतरङ्म या पानी में तैरना व एक-दूसरे पर पानी फेंकना, लड़के को बूढ़ा और बूढ़े को बालक बनाना, तरह-तरह की मालाएँ गूंथना, सेहरा बनाना व बाँधाने की तरकीब, विभिन्न चरित्रों के अनुरूप वेष रचना, कर्णाभूषण व कोनों के ऊपर रखने के लिए फूलों की सज्जा, इत्र आदि बनाना, गहने पहनाना, शृंगार व आकृति सुन्दर बनाने की चतुराई, हाथ की सफाई, देखते-देखते चीज गायब कर देना व फुर्ती, पाक कला, शर्वत, पाक, मिठाई, अचार, मद्य आदि बनाने का ढ़ग, सिलाई-कढ़ाई आदि का काम, धागों के द्वारा मनोरंजन, पहेली बुझाना, अन्त्यारी, ठग-विद्या पुस्तक बाँचना, नाटक, चित्र आदि देखना, समस्यापूर्ति ( पद्य का एक अंश लेकर पूरा पद्य बनाना जिसके अन्त में वह अंश आए), बेंत की कुर्सी आदि और नीवार की पट्टी आदि बुनना, वाद-विवाद, किसी विषय के पक्ष व विपक्ष में बोलना, बढ़ईगिरी, मकान-चिनाई, भवन-निर्माण, असली- निकली, रत्नों की जाँच, कीमियागिरी (पारे से सुवर्ण आदि बनाना), रत्नों के रंग व उनकी खान का ज्ञान पाना, वृक्ष व पौधों की चिकित्सा (केड़े आदि से उनकी रक्षा व उनकी वृद्धि आदि के उपाय, मुर्गे, मेंढ़े, तीतर व बटेर लड़ाना, तोता-मैना आदि पक्षियों को सिखना-पढ़ाना, शत्रु नाश के लिए उच्चाटन आदि अभिचार कर्म (witchcraft), केश सँवारने का कौशल, आर्योतर जातियों का रहन-सहन, उनके रीति-रिवाज, कला-कौशल की जानकारी, देश-देशान्तरों की बोली जानाना, बच्चों के मन बहलाव के लिए फूलों को जोड़कर उनसे गाड़ी बनाना, शकुन विज्ञान, शगुन-अपशगुन की पहचान रखना, यन्त्रं आदि बनाना, कुछ मूंछ लगाकर अपने रूप बदलने की कला, दूसरे के द्वारा कही गई या पढ़ी गई बात को ज्यों की त्यों दोहराना,खाली समय में मन ही में काव्य-रचना करना, अनेक शब्दकोषों का ज्ञान रखना, काव्य-रचना छन्दोमय होती है, इसलिए भले-बुरे सभी उपाय करना, वस्त्रों की सुरक्षा, द्यूत-क्रीड़ा में निपुणता, पाँसे फेंककर खेलने में दक्षता, बच्चों के लिए खिलौने बनाने की योग्यता, सेवा और चापलूसी करने की कुशलता, युद्ध में विजय प्राप्त करने के गुर, कथा-पुराण व व्यायाम-क्रिया की अभिज्ञता, इत्र, फुलैल आदि का निर्माण तिलक या बिन्दी के साँचे तैयार करना, बर्तन निर्माण(pottery), सारथ्य (driving), घुड़सवारी आदि। आगमों में पुरुषों की बहत्तर और स्त्रियों की चोसठ कलाएँ प्रतिपादित की गई है। कलाकेलि- कलाकेलि (स्त्री०) प्रसन्न;gay.(पुं०) कामदेव का नाम; name of cupid. कलाङ्कर - कलंकुरो (पुं०) स्तेयशास्त्रप्रवर्तक कर्णीसुत __ मूलदेव; Muladeva, the founder of the science of stealing. कलाद - कलाओ (पुं०) सुनार; gold,mith. स्वर्णकार। कलाधर - कलाहरो (पुं०) चंद्रमा; the moon. कलानिधि - कलाणिहि (पुं०) चन्द्र; moon. कलाप - कलावो (पुं०) जत्था, बण्डल, वस्तुओं का समूह, बहभार, मोर की पुच्छ, काञ्ची;a band, bundle, collection of things, peacock's tail, ornament for woman's loin. कलापिन् - कलावि (पुं०) मोर;peacock. कलाय - कलाय (पुं०) मटर;peas. कलावत् - कलावं (1) (वि०) (त्रि०) विदग्ध; ___skilled. (2) (पुं०) चन्द्र; moon. कलाविद् - कलाविउ (वि.)(त्रि०) कला जाननेवाला; artist. कलि - कलि (पुं०) (वाचिक) झगड़ा, टण्टा, For Private and Personal Use Only
SR No.020644
Book TitleSanskrit Prakrit Hindi Evam English Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2011
Total Pages611
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit, English
ClassificationDictionary
File Size17 MB
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