________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir REPORUAGASAGARoc हालपद्मवत् // 4 // अंजलिंशिरस्याधायप्रणमत्रिःपुनःपुनः॥ हस्तेकलशमृत्धृत्यनमे / स्त्रीणिपदानिच // 5 // अथवाचयितुंबाहुंदक्षिणांगसमाश्रितः॥ मनइत्यादिरूपेण / एकाग्रमितिचादिशेत् // 6 // मनसःस्मइतिब्रूयुस्तेसमाहितपूर्वकाः // प्रसीदविति / कर्तारःप्रसन्नाःस्मइतिद्विजाः // 7 // शांतिरस्त्वितिविघ्नांता शब्दाःपंचदशैवतु // स्तुवाक्यंदिजमुखाच्छ्रावयित्वातथापरैः // 8 // षड्वाक्यानिअस्वितिचइतरैरेकविं शतिः॥प्रीयतांवाक्यपठितैरुदकस्यनिषेचनं // 9 // ततःषड्वाक्यपठितैर्बहिरापोनि / षेचनं // अंतेदशशुभंवाक्यंनिकामेतिततोजपः॥ 10 ॥शुक्रादयोग्रहाश्चैकंभगवां स्यभिषेचनं // उदकस्यप्रकुर्वीतपुण्याहवाचयेत्ततः // 11 // पुण्याहादित्रिरभ्यास मंत्रमध्यावनिःस्वनैः॥ पुण्यकल्याणमृद्धिश्चस्वस्तिःश्रीत्यादिपंचकं // 12 // प्रा। राणवायत्रिराचष्टेभवत्पूर्वभवन्विति // प्रत्युक्तविषयेप्रेषनिवारंखतिरित्यतः॥१३॥ For Private and Personal Use Only