________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit ठ आह // गर्गः // सर्वत्रापिशुभंदद्याद्वादशाब्दात्परंगुरुः ॥पंचषष्ठाब्दयोरेक्शी भगोचरतामता // सप्तमात्पंचवर्षेनुस्खोच्चस्वर्भगतोयदि // अशुभोपिशुभंद्याच्छ / भऋक्षेषुकिंपुनः // रजस्वलायाः कन्यायागुरुशुद्धिंनचिंतयेत् // अष्टमंपिप्रकत / / व्योविवाहस्त्रिगुणाचनात् // अर्कगुर्वोबलंगौर्यारोहिण्यर्कवलास्मृतः // कन्याचंद्रा बलाप्रोक्तावलीलग्नतोबला // अष्टवर्षाभवेद्गौरीनववर्षाचरोहणी // दशवर्षाभवे / कन्या अतऊवरजस्वला // // अथवृहस्पतिशाणी // शौनकः // कन्यको / हाहकालेतुआनुकूल्यंनविद्यते ॥ब्राह्मणस्योपन गुराविधिरुदाहृतः॥ सुवर्णेनगुरु कृत्वापीतवस्त्रेणवेष्ट्रयेत् // ऐशान्यांधवलंकुंभधान्योपरिनिधायच // मदनमधुपु | द्वाष्पंचपलाशंचैवसर्षपान् // मांसीगुड़ध्यपामार्गविडंगीशंखिनीवचा // सहदेवीह | शरिकांतासरूषधिशतावरी // बलाचसहदेवीचनिशाद्वितयमेवच // कृत्वाज्यभागा। For Private and Personal Use Only