________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit संस्कार-ग्रहोक्तेः // स्मृतिकौस्तुभेचौलप्रसंगेतुआरंभोत्तरंमृतकप्राप्तेविशेषः // संग्रहेइत्य भास्कर. // 217 // क्त्वाकूष्मांडीभिघृतंहुत्वेतिसंग्रहवाक्यमुपन्यस्तं // एवंशुद्धिपूर्वकंविवाहाधनुष्ठान तदंगत्वेनसंकल्पितानभोजनेनदोषइतिबृहस्पतिनोक्तं // विवाहोत्सवयज्ञेषुत्वंतराम तस्तके // पूर्वसंकल्पितान्नेननदोषःपरिकीर्तितइति // मृतमूतकमध्यविवाहाद्यनु / ठानेउक्तशुद्धिपूर्वकमारब्धेइत्यर्थः // नांदीश्राद्धोत्तरंसूतकादौविवाहारंभोत्तरमपि / संकल्पितान्नेनैवविशेषइतिषट्त्रिंशन्मते // पूर्वार्धतुपूर्ववत् // परैरन्नंप्रदातव्यंभो ? शक्तव्यंचद्विजोत्तमैरिति // विवाहादिमध्येसूतकादिप्राप्तावित्यर्थः // पूर्वसंकल्पिता नभोजनसमयेसूतकादौतुविशेषस्तत्रैव // मुंजानेषुतुविप्रेपुत्वंतरामृतसूतक॥ अन्य गेहोदकाचांताःसर्वेतेशुचयःस्मृताइति // भोक्तृभिभुक्तशेषस्त्याज्यः // पक्कशेषः / // 217 // सूतकीभिर्भोक्तव्यइत्याशयः // // अथविवाहेवधूवरजननीरजोदोषनिर्णयः // MARRIAGROCRes सत-NAVPRACROADCA For Private and Personal Use Only