________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit --000- संस्कार-तरं // तचोत्तरवर्षेएवभवति // अतोभूभृदंतवर्षांतरमित्यर्थः // तथाचोक्तं // भास्कर // 21 // यश्चैत्रशुद्धप्रतिपद्यदैकोवारःसराजामुनिभिःप्रतिष्ठितइति // वर्षतुमानुषमानेने ? तिप्रागुक्तं // कुलेसापिंडयेशेषस्पष्टं // यत्तुमेधातिथिवचनं // पुरुषत्रयपर्यंतंप्रति / कूलंचगोत्रिणां // प्रवेशनिर्गमौतइत्तथामंडनमुंडनमिति // एतद्भिन्नजातीयेषुसापि डयेवेदितव्यं // यतस्तेषांसापिंडयंत्रिपुरुषमेव // तथाहशंखः // यद्येकजातबहवः / पृथक्षेत्रा:पृथक्जनाः // एकपिंडाःष्टथक्शौचाःपिंडेष्वावर्ततेत्रिष्विति // अथ / शशोभनसन्निपातनिर्णयः // तत्रसायणीये // एकस्मिञ्च्छोभनेवृत्तेहिशुभंनैवकार येत् // यदिकुर्यात्प्रमादेनतत्रनस्याच्छुभंध्रुवमिति // वृत्तेप्रत्तेसमाप्तइतियावत् // ततःसंवत्सरेटत्तेचूडाकर्मविधीयते // द्वितीयेवातृतीयेपिकर्तव्यं श्रुतिचोदनादित्या // 211 // दिप्रयोगदर्शनात् // इदमेकमंडपविषयं // एकमंडपेशोभनदयस्यप्रानिषिद्धत्वात् | OASAGARAOrche For Private and Personal Use Only